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मालिनी अवस्थी ने दिया मुनव्वर राना दिया दो टूक जबाब

Special Coverage News
22 Dec 2019 3:15 AM GMT
मालिनी अवस्थी ने दिया मुनव्वर राना दिया दो टूक जबाब
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देश लाठियाँ, गोलियाँ, गोले, आँसू, ज़ख़्म, चीखें और नुक़सान गिन रहा है पर जिन्होंने ये आग लगाई-भड़काई-फैलाई व पहुँचाई है वे सारे बस सीटें और वोट गिन रहे हैं. जो वो दोनों चाहते थे और चाहते हैं, वही हो रहा है

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के नजदीकी जिले रायबरेली में जन्में मशहूर शायर मुनव्वर राना ने लिखा था कि मरना ही मुकद्दर है तो फिर लड़ के मरेंगे,खामोशी से मर जाना मुनासिब नहीं होगा. उनके इतना ही लिखना सोशल मीडिया पर वायरल हो जाना आम बात थी. इस ट्विट पर देश की जानी मानी लोक गायिका मलिनी अवस्थी ने उन्हें जबाब दिया है.



,मालिनी अवस्थी ने लिखा है कि आप को इस देश की जनता ने सिर आंखों पर बैठाया है, आपके प्रशंसकों ने आपके सामने सजदे किये हैं. आप तो माँ की शायरी के लिए जाने जाते हैं, इस नाज़ुक समय में ऐसी शायरी. मुनव्वर राणा जी, शायर, कलाकर, लेखक, समाज की उधड़ी सिलवट की तुरपाई करते हैं, उन्हें उधेड़ते नही. आज आपके कुछ कहे शब्द बहुत कुछ कह जायेंगे इसलिए माँ भारती के सपूत कुछ ऐसा कहो जो देश हित में हो.


वहीं इस पूरे मामले पर हिंदी के ओजस्वी कवि डॉ कुमार विश्वास ने कहा कि देश लाठियाँ, गोलियाँ, गोले, आँसू, ज़ख़्म, चीखें और नुक़सान गिन रहा है पर जिन्होंने ये आग लगाई-भड़काई-फैलाई व पहुँचाई है वे सारे बस सीटें और वोट गिन रहे हैं. जो वो दोनों चाहते थे और चाहते हैं, वही हो रहा है. राजघाट पर कोई ख़ामोश रो रहा है. भारत को सिर्फ़ भारत बचा सकता है.

उन्होंने कहा कि आज़ादी से पहले व बाद में क़ानून बनवाने/बदलवाने के लिए सैंकड़ों आंदोलन हुए हैं,लेकिन हर वो आंदोलन जो देश को आग में झोंकता हो,कभी सफल नहीं हो सका.अगर देश व अपने आंदोलन से ज़रा भी प्यार है तो पुलिस पर हमला करना,सरकारी सम्पत्ति को आग लगाना बंद करें.असहमति व लोकतंत्र ज़िंदा रखें


भारत-पाकिस्तान बंटवारे के समय उनके बहुत से नजदीकी रिश्तेदार और पारिवारिक सदस्य देश छोड़कर पाकिस्तान चले गए. लेकिन साम्प्रदायिक तनाव के बावजूद मुनव्वर राना के पिता ने अपने देश में रहने को ही अपना कर्तव्य माना. मुनव्वर राना की शुरुआती शिक्षा-दीक्षा कलकत्ता (नया नाम कोलकाता) में हुई. राना ने ग़ज़लों के अलावा संस्मरण भी लिखे हैं. उनके लेखन की लोकप्रियता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनकी रचनाओं का ऊर्दू के अलावा अन्य भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है.

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