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मुकुल रोहतगी ने अटॉर्नी जनरल बनने से किया इनकार, केंद्र सरकार का ऑफर ठुकराया
नई दिल्ली. वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने रविवार को कहा कि उन्होंने भारत का अगला अटॉर्नी जनरल बनने के केंद्र सरकार के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है. रोहतगी ने पीटीआई-भाषा से कहा कि उनके फैसले के पीछे कोई खास वजह नहीं है. केंद्र ने के.के. वेणुगोपाल (91) की जगह लेने के लिए इस महीने की शुरुआत में रोहतगी को अटॉर्नी जनरल पद की पेशकश की थी. वेणुगोपाल का कार्यकाल 30 सितंबर को समाप्त होगा. बता दें कि मुकुल रोहतगी जून 2014 से जून 2017 तक अटॉर्नी जनरल थे. उनके बाद वेणुगोपाल को जुलाई 2017 में इस पद पर नियुक्त किया गया था. एक अनुभवी वकील रोहतगी सुप्रीम कोर्ट के साथ-साथ देश भर के उच्च न्यायालयों में कई हाई-प्रोफाइल मामलों में पेश हुए हैं.
17 अगस्त, 1955 को मुकुल रोहतगी का मुंबई में जन्म हुआ. वह दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति अवध बिहारी रोहतगी के पुत्र हैं. मुकुल रोहतगी ने मुंबई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से अपनी शिक्षा पूरी की. साल 1978 में दिल्ली बार काउंसिल में नामांकित हुए, उन्हें 1994 में दो दशकों के भीतर एक वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नियुक्त किया गया. अटॉर्नी जनरल के तौर पर अपने पहले कार्यकाल के दौरान जो 2014 में शुरू हुआ और 2017 तक जारी रहा, रोहतगी ने विभिन्न महत्वपूर्ण मामलों में सरकार का बचाव किया.
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार के सत्ता में आने के तुरंत बाद उन्हें अटॉर्नी जनरल नियुक्त किया गया था. वह शीर्ष अदालत में विशेष जांच दल (एसआईटी) के लिए पेश हुए, जिसने 2002 के गुजरात दंगों के संबंध में जकिया जाफरी की याचिका पर सुनवाई की थी. रिपोर्टों के अनुसार, रोहतगी जून 2014 से जून 2017 तक पहली बार देश के अटॉर्नी जनरल के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल के लिए 1 अक्टूबर को कार्यभार संभालने के लिए पहले तैयार हुए थे लेकिन अब उन्होंने इस पद को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है.