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आगरा यूनिवर्सिटी पर्चा घोटाले में गिरफ्तारी की रहस्यमय परतें और एक कुलपति की कहानी
मात्र बीस साल के शैक्षणिक करियर वाले विनय कुमार पाठक कानपुर की छत्रपति शाहूजी महाराज युनिवर्सिटी के कुलपति हैं। उनका बायोडाटा हालांकि इससे कहीं ज्यादा बड़ा है। वे लगातार 14 साल से अलग-अलग विश्वविद्यालयों के कुलपति हैं। आगरे में रहते हुए उन पर एसटीएफ और सीबीआइ की जांच बैठी। फिर प्रधानमंत्री से लेकर सरसंघचालक और राज्यपाल तक, सबको उन्होंने साधा। मात्र सात महीने में उनके ऊपर मुकदमा करवाने वाला व्यक्ति खुद भीतर हो गया। पाठक जी जांच के बावजूद ससम्मान कुलपति बने हुए हैं।
विनय पाठक की रामकहानी सुना रहे हैं अमन गुप्ता
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक दिलचस्प ‘गिरफ्तारी’ हुई है। ‘गिरफ्तार’ किए गए व्यक्ति का नाम है डेविड मारियो डेनिस, जो डिजिटेक्स टेक्नोलॉजीज नाम की एक कंपनी चलाता है जो शैक्षणिक संस्थानों को परीक्षा संबंधी सेवाएं देती है। डेविड मारियो पर मनी लॉन्ड्रिंग का कथित मुकदमा है।
यह कथित गिरफ्तारी दिलचस्प इसलिए है क्योंकि इसे अंजाम देने वाला एजेंसी प्रत्यावर्तन निदेशालय (ईडी) इस गिरफ्तारी की खबर से पहले कहीं सीन में नहीं थी। जिस मामले का संदर्भ दिया जा रहा है उसकी जांच के साथ यूपी पुलिस, एसटीएफ और सीबीआइ का ही संबंध है। अब अचानक बताया जा रहा है कि ईडी भी जांच कर रही थी। यह मामला इसलिए भी दिलचस्प है क्योंकि डेनिस की गिरफ्तारी जिस मुकदमे के सिलसिले में हुई है, उसमें वे नामजद नहीं थे। तीसरी बात, यह मुकदमा जिस शख्स की शिकायत पर दर्ज हुआ था, वह खुद सीबीआइ की जांच के घेरे में है और वो भी डेनिस की शिकायत पर। इस शख्स का नाम है विनय कुमार पाठक, देश का शायद इकलौता शिक्षक जो अपने उन्नीस साल के करियर में चौदह साल से लगातार कुलपति है और भ्रष्टाचार व चोरी के अनेक मामलों में कथित रूप से लिप्त है।
डेनिस की गिरफ्तारी की सबसे ज्यादा दिलचस्प बात है उनकी पत्नी का भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाइ चंद्रचूड़ को भेजा पत्र, जिसमें उनका कहना है कि ईडी ने गैर-कानूनी ढंग से 20 जुलाई से ही उनके पति को ‘हिरासत’ में रखा हुआ है और उनके ऊपर कोई मुकदमा है ही नहीं।
डेविड मारियो डेनिस की पत्नी ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाइ. चंद्रचूड़ को 21 जुलाई को एक चिट्ठी लिखी है। चिट्ठी में लिखा गया है कि उनके पति को ईडी इसलिए प्रताड़ित कर रही है क्योंकि एजेंसी चाहती है कि डेनिस कानपुर के छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय के कुलपति विनय पाठक के खिलाफ दर्ज कराया अपना मुकदमा वापस लें। डेनिस ने लखनऊ के इंदिरा नगर थाने में पिछले साल एफआइआर संख्या 310 में आइपीसी की धाराओं 32, 386, 504, 506, और भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के अंतर्गत पाठक के ऊपर एक मुकदमा दर्ज करवाया था, जिसमें पाठक पर सीबीआइ की जांच चल रही है।
दिलचस्प यह है कि पाठक की जांच सबसे पहले यूपी एसटीएफ को सौंपी गई थी जिसका कोई नतीजा नहीं निकला। इसके बाद जांच सीबीआइ को सौंप दी गई। सीबीआइ के कठघरे में खड़े पाठक लगातार युनिवर्सिटी को न सिर्फ सेवाएं दे रहे हैं बल्कि अपने करियर की सीढ़ियां भी चढ़ते जा रहे हैं। इसी महीने उन्हें असोसिएशन ऑफ इंडियन युनिवर्सिटीज का उपाध्यक्ष चुना गया है। दूसरी ओर, उनके खिलाफ भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी का मुकदमा कराने वाले डेनिस ईडी की गिरफ्त में हैं।
भारत के मुख्य न्यायाधीश से अपने ‘निर्दोष’ पति की जान की गुहार लगाने वाली डेनिस की पत्नी की चिट्ठी में जो बातें लिखी गई हैं, समूचे मीडिया में पिछले कई महीनों से ये तमाम बातें पहले ही सार्वजनिक हैं। विनय कुमार पाठक के मुकदमे, सीबीआइ जांच और उनकी रहस्यमय आजादी पर सवाल भी उठ चुके हैं। विनय पाठक की कहानी को समझने के लिए चलते हैं आज से करीब नौ महीने पहले अक्टूबर के आखिरी दिनों में, 29 अक्टूबर को जब उनके खिलाफ लखनऊ के इंदिरा नगर पुलिस थाने में जबरन वसूली, भ्रष्टाचार और बंधक बनाने के आरोप में एफआइआर दर्ज कराई गई। इस शिकायत के आधार पर पाठक के तीन कथित सहयोगियों को गिरफ्तार भी किया गया।
पाठक का मुकदमा
विनय पाठक के खिलाफ यह शिकायत दर्ज कराई डिजिटल टेक्नोलॉजी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के मालिक डेविड मारियो डेनिस’ ने, जो दो दिन से र्डी की गिरफ्त में हैं। इंदिरा नगर थाने में दर्ज कराई अपनी शिकायत में डेनिस ने विनय कुमार पाठक पर आरोप लगाया कि उन्होंने प्रिंटिंग कार्य के बकाया बिल क्लियर करने के लिए 15 प्रतिशत कमीशन की मांग की थी, जब वे आगरा के अंबेडकर विश्वविद्यालय के कुलपति थे।
पुलिस को दिए शिकायती पत्र में डेनिस ने बताया था कि उनकी कंपनी डिजिटल टेक्नोलॉजी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड 2014 में किए गए एक एग्रीमेंट के तहत आगरा विश्वविद्यालय में प्री एक्जाम और पोस्ट एग्जाम के बाद वाले काम करती है। इसमें विश्वविद्यालय के परीक्षा पेपर छापने से लेकर परीक्षा की कॉपियों को परीक्षा सेंटर से युनिवर्सिटी तक पहुंचाने का सभी काम उनकी ही कंपनी के द्वारा किया जाता रहा है। पांच साल का एग्रीमेंट 2019 में खत्म हो गया, तो उनकी कंपनी डिजिटेक्स टेक्नोलॉजी ने आगरा विश्वविद्यालय का काम करना शुरू कर दिया। साल 2020-2021 और 2021-22 में कंपनी द्वारा किए गए काम का करोड़ों रुपया बिल बकाया हो गया था।
जनवरी 2022 में अंबेडकर विश्वविद्यालय, आगरा के कुलपति का चार्ज विनय कुमार पाठक को अतिरिक्त प्रभार के तौर पर दिया गया। डेविड डेनिस ने शिकायत दर्ज कराते हुए कहा कि बकाया बिलों को क्लियर कराने के लिए 2022 की फरवरी में उन्होंने कानपुर स्थित विनय पाठक के सरकारी आवास पर मुलाकात की, जहां बिलों को क्लियर करने की एवज में 15 फीसदी कमीशन की डिमांड रखी गई। डेनिस एम डेविड ने दावा किया कि उसने कंपनी के पेमेंट क्लियर कराने के लिए पाठक के सहयोगी अजय मिश्रा को 1.41 करोड़ रुपये अलग-अलग किस्तों कमीशन के तौर पर दिए थे।
विनय पाठक के खिलाफ डेनिस की एफआइआर
डेविड डेनिस की शिकायत के बाद पुलिस ने मामले की जांच शुरू की, लेकिन शुरुआती जांच के बाद मामला यूपी एसटीएफ को सौंप दिया गया। एसटीएफ ने पाठक से पूछताछ के लिए कुल चार नोटिस जारी किए, लेकिन वे एक बार भी वे एसटीएफ मुख्यालय नहीं पहुंचे। पाठक के खिलाफ पूछताछ के लिए एसटीएफ ने पहली बार नोटिस जारी किया 18 नवंबर 2022 को और उन्हें एसटीएफ के मुख्यालय बुलाया। इसके लिए उन्हें उनके ई-मेल पर भी संपर्क किया गया। पाठक ने इस नोटिस का जवाब देते हुए कहा कि वे बीमार हैं और इलाज करा रहे हैं, इसलिए 25 नवंबर तक नहीं आ सकते। इसके जवाब में एसटीएफ की तरफ से उनसे अस्पताल, बीमारी और शहर की जानकारी मांगी गई लेकिन पाठक ने इसका कोई जवाब नहीं दिया। यूपी एसटीएफ इसके बाद भी लगातार उनसे संपर्क करने की कोशिश करती रही लेकिन पाठक पूरे समय एसटीएफ की पहुंच से दूर रहे। इस सबके बीच यूपी एसटीएफ ने उनके खिलाफ लुकआउट नोटिस भी जारी किया लेकिन पाठक तब भी पूछताछ के लिए नहीं पहुंचे।
डेनिस की शिकायत के बाद पाठक के तीन सहयोगियों को इस मामले गिरफ्तार कर लिया गया। पहली गिरफ्तारी हुई अजय मिश्रा की। उसे एफआइईआर के अगले ही दिन गिरफ्तार कर लिया गया। दूसरी गिरफ्तारी हुई अजय जैन की, जिसे 6 नवंबर को यूपी एसटीएफ द्वारा गिरफ्तार किया गया। तीसरी गिरफ्तारी हुई 16 नवंबर को संतोष सिंह की।
जब एसटीएफ पाठक को खोज पाने में असफल रही तो उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से पाठक के मामले की जांच के लिए 29 दिसंबर को सीबीआइ जांच की सिफारिश कर दी गई। इस संबंध में केंद्र सरकार के अंतर्गत आने वाले कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने ऑफिशियल गजट नोटिफिकेशन जारी किया। नोटिस जारी होते ही सीबीआइ ने 7 दिसंबर 2022 को केस दर्ज किया और मामले की जांच शुरू कर दी।
पाठक अगर इतने दिनों तक पुलिस एसटीएफ की पकड़ से दूर रह सके तो निश्चित तौर पर कोई उन्हें बचा रहा था। वह कौन था, और पाठक की पकड़ कितनी मजबूत है, इसका अंदाजा लगाना हो, तो एक निगाह विनय कुमार पाठक के प्रोफाइल पर डालनी जरूरी है।
कौन हैं विनय कुमार पाठक?
विनय पाठक के फेसबुक का कवर
विनय कुमार पाठक के रसूख का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अपने 19 साल के शैक्षणिक करियर में वे 14 साल से कुलपति के पद पर हैं। इस दौरान वे केवल उत्तर प्रदेश नहीं, उत्तराखंड और राजस्थान के विश्वविद्यालयों तमाम विश्वविद्यालयों के भी कुलपति रह चुके हैं। पाठक अब तक तीन राज्यों के आठ विश्वविद्यालयों के कुलपति रह चुके हैं, जिसमें कानपुर के छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय का वाइस चांसलर बनना उनके अकादमिक करियर का अब तक का सर्वोच्च है।
विनय कुमार पाठक के करियर की शुरुआत होती है कानपुर के हरकोर्ट बटलर टेक्निकल इंस्टीट्यूट (एचबीटीआइ) में लेक्चरर और डीन के पद से (पाठक ने अपनी बीटेक पढ़ाई यहीं से की है)। एचबीटीआइ में रहते हुए ही वे पहली बार 25 नवंबर 2009 को हल्द्वानी स्थित उत्तराखंड ओपन यूनिवर्सिटी (यूओयू) के वाइस चांसलर नियुक्त किए गए। यहां का कुलपति रहते हुए उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया।
इसके बाद पाठक 1 फरवरी 2013 को राजस्थान के कोटा की वर्धमान महावीर ओपन यूनिवर्सिटी (वीएमओयू) के वाइस चांसलर नियुक्त किए गए। यहां वाइस चांसलर पद पर रहते हुए ही उन्हें 16 मई 2015 को कोटा में राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय के कार्यवाहक कुलपति के रूप में अतिरिक्त प्रभार दिया गया। 3 अगस्त 2015 को इन दोनों विश्वविद्यालयों का कुलपति पद छोड़ने के ठीक एक दिन बाद उन्हें लखनऊ की एपीजे अब्दुल कलाम तकनीकी विश्वविद्यालय (एकेटीयू) का कुलपति नियुक्त कर दिया गया।
पाठक को 2015 में एकेटीयू का कुलपति नियुक्त किया था, उसके बाद 2017 में सत्ता परिवर्तन के बाद भी पाठक की साख कम नहीं हुई और 9 अगस्त 2021 को समाप्त हुए एकेटीयू में अपने कार्यकाल के दौरान ही उन्हें एचबीटीयू, कानपुर के वीसी के रूप में अतिरिक्त प्रभार दे दिया गया।
इस सबके बीच जनवरी 2021 में पाठक को लखनऊ के ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय (केएमसीएलयू) का कुलपति भी बना दिया गया। इसका कारण वाइस चांसलर के पद के लिए शॉर्टलिस्ट किए गए उम्मीदवारों को राज्यपाल आनंदीबेन पटेल द्वारा अस्वीकार कर दिया गया और नए सिरे से आवेदन मांगे गए। इस दौरान उन्हें 12 अप्रैल 2021 को कानपुर के छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय का वाइस चांसलर नियुक्त कर दिया गया। जब उन्हें कानपुर विश्वविद्यालय का वाइस चांसलर नियुक्त किया गया वह एकेटीयू के वीसी का अतिरिक्त प्रभार संभाल रहे थे।
जनवरी 2021 से अप्रैल 2021 के बीच विनय कुमार पाठक तीन विश्वविद्यालयों के कुलपति के रूप में कार्य कर रहे थे, जिसमें सीएसजेएम के नियमित कुलपति तथा एकेटीयू और केएमसीएलयू के अतिरिक्त प्रभार के तौर पर वे थे।
इसके बाद जनवरी 2022 में पाठक को आगरा के डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के कुलपति का अतिरिक्त प्रभार दिया गया, पाठक यहां सितंबर 2022 तक पद पर रहे। आगरा यूनिवर्सिटी का कुलपति रहने के दौरान ही उन पर भ्रष्टाचार और जबरन वसूली के आरोप लगे थे।
विनय कुमार पाठक कुलपतियों के इतिहास में सबसे ज्यादा समय तक और सबसे ज्यादा विश्वविद्यालयों के कुलपति रहने वाले शख्स में से एक या शायद इकलौते हैं। पाठक अब तक कुल आठ विश्वविद्यालयों के कुलपति रह चुके हैं। ऐसा नहीं हैं कि पाठक की पहुंच केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित है। वे अलग-अलग समय पर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, और राजस्थान के विश्वविद्यालयों में कुलपति रह चुके हैं।
जून 1969 में कानपुर में पैदा हुए विनय पाठक ने 1991 में एचबीटीआइ कानपुर में बीटेक में एडमिशन लिया, बीटेक के बाद उन्होंने 1998 में मास्टर की पढ़ाई की और 2004 में उन्होंने अपनी पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। 2004 में पीएचडी करने के बाद पाठक 2009 में वाइस चांसलर के पद पर पहुंच गए। पाठक के करियर में हुई यह बढ़ोतरी आश्चर्यजनक है, लेकिन इससे बड़ा सवाल ये है कि उनका पांच साल के भीतर कुलपति पद पर पहुंचना। कुलपति बनने के लिए यूजीसी ने कुछ नियम तय किए हैं। इन नियमों के अनुसार कुलपति बनने के लिए कम से कम दस साल प्रोफेसर के पद पर कार्य करना अनिवार्य है। ऐसे में 2004 में पीएचडी करने वाले विनय कुमार पाठक कब और कहां कितने समय तक प्रोफेसर रहे?
पाठक के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत के बाद वे लगभग तीन महीने तक जांच एजेंसियों की पहुंच से दूर रहे। सीबीआइ द्वारा 7 जनवरी को केस दर्ज करने के बीस दिन के भीतर 25 जनवरी को वे अचानक से विश्वविद्यालय में अपने दफ्तर पहुंचते हैं और अपना कार्य संभालते हैं। उसके बाद से वे लगातार विश्वविद्यालय में जमे हुए हैं, लेकिन उनके खिलाफ चल रही जांच कहां तक पहुंची, किसी को पता नहीं है। हां, उनके खिलाफ मुकदमा करवाने वाला जरूर गिरफ्तार हो चुका है।
पाठक की इस रामकहानी में बहुत से सहयोगी पात्र हैं। कुछ घोषित, कुछ अनाम। इस रामकथा को समझने के लिए छत्रपति शाहूजी विश्वविद्यालय में आयोजित रामायण कॉन्क्लेव में शामिल हुए लोगों की लिस्ट देख लेनी चाहिए, जो इस साल मार्च के अंत में हुआ था।
राम के नाम पर
कानपुर के छत्रपति साहूजी महाराज यूनिवर्सिटी में जिस तरह से रामायण कॉन्क्लेव का आयोजन हुआ वह अपने आप में अनूठा है। कॉन्क्लेव की शुरुआत 27 मार्च को हुई। सबसे पहले विश्वविद्यालय के परिसर में स्थित सर्वेश्वर मंदिर से यूआइईटी हॉल तक भगवान राम की शोभायात्रा निकाली गई। शोभायात्रा में डीजे-बैंड तमाम साजो-सामान की व्यवस्था की गई। इस दौरान पूरे कैंपस को भगवा झंडों से सजाया गया, पूरी यात्रा में जय श्रीराम के नारे-जयकारे लगाए गए। शोभायात्रा में विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं के अलावा वहां के शिक्षक तथा विश्वविद्यालय प्रशासन से जुड़े अधिकारी भी शामिल रहे।
किसी भी राज्य सरकार द्वारा संचालित विश्वविद्यालयों का संरक्षक उस राज्य का राज्यपाल होता है (केंद्रीय विश्वविद्यालयों का कुलपति राष्ट्रपति होता है)। वह राज्य सरकार द्वारा संचालित विश्वविद्यालयों का कुलपति भी होता है, जो संविधान प्रदत्त अधिकारों के जरिये वाइस चांसलर के माध्यम से विश्वविद्यालयों का संचालन करता है। छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय में आयोजित किए गए रामायण कॉन्क्लेव पर उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल की तरफ से भी कोई आपत्ति नहीं की गई। राज्यपाल बनने से पहले पटेल गुजरात की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं।
कार्यक्रम का आयोजन उत्तर प्रदेश सरकार के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्रालय, छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय प्रशासन तथा कानपुर जिला प्रशासन द्वारा मिलकर किया गया। कॉन्क्लेव के आयोजन में उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष सतीश महाना मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल हुए। महाना कानपुर शहर की कैंट विधानसभा क्षेत्र से विधायक भी हैं। उनके अलावा कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचारक श्री राम, शिक्षक कोटे से विधायक डॉ. अरुण पाठक कार्यक्रम में शामिल दूसरे विशिष्ट व्यक्ति थे।
दो दिन तक चलने वाले इस कॉन्क्लेव में जागरण इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड मास कम्युनिकेशन कानपुर तथा मानस संगम (शिवाला) ने भी मुख्य रूप से अपना सहयोग दिया। इस कॉन्क्लेव की थीम और डिजाइन संयोजन ‘अयोध्या शोध संस्थान’ संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश द्वारा तैयार किया गया था।
किसी भी विश्वविद्यालय में होने वाली किसी भी प्रकार की गतिविधि के लिए उस विश्वविद्यालय का वाइस चांसलर जिम्मेदार व्यक्ति है, ऐसे में छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय कानपुर में आयोजित रामायण कॉन्क्लेव के लिए वहां के कुलपति विनय कुमार पाठक जिम्मेदार हैं। कार्यक्रम के लिए जारी किए गए पोस्टर को देखकर समझा जा सकता है कि विश्वविद्यालय में जो कुछ भी हुआ वह उनकी सहमति और उनकी जानकारी में हुआ है, लेकिन इस सहमति की कीमत क्या है वह विनय कुमार पाठक ही बता सकते हैं क्योंकि पाठक के कारनामे कुछ ऐसी ही कहानी बयां करते हैं जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उन्होंने रामायण कॉन्क्लेव जैसे किसी कार्यक्रम की अनुमति इतनी आसानी से तो नहीं दी होगी। और अगर दी भी, तो उसका उद्देश्य क्या था?
खासकर तब, जब वे एसटीएफ की जांच के घेरे से निकल कर सीबीआइ के फेरे में पड़े हुए थे?
सवाल दर सवाल
विश्वविद्यालय परिसर में हुए इस तरह के कार्यक्रम पर विश्वविद्यालय के छात्रों और शिक्षकों से बात करने पर और भी बहुत सी ऐसी बातें सामने आती हैं जिससे पता चलता है कि कुलपति विनय पाठक वहां शैक्षणिक के अलावा कौन-कौन सी गतिविधियों में लिप्त हैं। विश्वविद्यालय के एक वरिष्ठ अध्यापक नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, ‘विश्वविद्यालय में जो हुआ वह नहीं होना चाहिए था। इससे पहले कभी कोई भी ऐसा कार्यक्रम यहां नहीं हुआ।‘
जब उनसे पूछा गया कि परिसर में इस तरह के कार्यक्रम का कोई किसी भी प्रकार का कोई दबाव था या फिर कुलपति किसी की नजरों में अपनी खुद की इमेज बनाना चाह रहे थे? वे कहते हैं, ‘यहां जो कुछ भी हुआ वह एकतरफा नहीं है। एक खास विचारधारा के लोगों का भी दबाव था, दूसरा कारण पिछले दिनो कुलपति खुद विवादों में रहे हैं, इसलिए उन्हें भी अपनी कुर्सी बचाए रखने के लिए कुछ करना जरूरी था। इसकी वजह से पहले जो काम दबे छिपे होते थे, अब खुलेआम होने लगे हैं।‘’
वे बताते हैं कि विनय पाठक के प्रशासन में परिसर के ज्यादातर कर्मचारी डरे हुए हैं। किस तरह का डर, पूछने पर वे कहते हैं कि जब से विनय पाठक कुलपति बने हैं, तब से लेकर अब तक कई लोगों को नौकरी से निकाला जा चुका है। कुलपति किस तरह से काम कर रहे हैं इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि तीस के आसपास कर्मचारियों ने अलग-अलग वजहों से कोर्ट केस किया हुआ है और फैसले का इंतजार कर रहे हैं। इन सभी को नौकरी से निकाल दिया गया है।
शिक्षकों की भले ही अपनी मजबूरियां हों लेकिन छात्रों से बात करने पर कहानी और साफ होती है। पता चलता है कि कुलपति के भ्रष्टाचार के खिलाफ परिसर में लगातार विरोध होता रहा है। यह बात शीशे की तरह साफ है कि कुलपति भ्रष्ट गतिविधियों में लिप्त हैं और उन्हें ढंकने के लिए सरकारी अमले के साथ मिलकर रामायण कॉन्क्लेव जैसे तमाम कार्यक्रम नियमित रूप से करवाते रहे हैं। यह सिलसिला इसी साल शुरू हुआ है।
समाजवादी छात्र सभा के अध्यक्ष आशीष यादव ईशू बताते हैं, ‘’कुलपति जी खुलेआम संघ की विचारधारा को बढ़ावा दे रहे हैं। हमने कुलपति जी का भ्रष्टाचार के मुद्दे पर खूब विरोध किया, उनके पुतले तक जलाए।‘’
राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के साथ विनय पाठक
पाठक के ऊपर लगे आरोपों के बारे में कानपुर के एक वरिष्ठ पत्रकार नाम छापने की शर्त पर कहते हैं, ‘जितना दिखाया जा रहा है मसला उतना सीधा नहीं है। पाठक के कुलपति होने के लेकर दो धड़े बने हुए हैं, एक जो उन्हें पद से हटाना चाहता है, दूसरा जो उन्हें बनाए रखना चाहता है क्योंकि विश्वविद्यालय से उन्हें कमाई हो रही है। दूसरे धड़े का नेतृत्व किया जा रहा है राजभवन से, यही धड़ा पाठक को बचा भी रहा है जबकि सरकार के लोग उन्हें हटाना चाहते हैं, लेकिन हटा नहीं पा रहे हैं। पाठक इसी का लाभ उठा रहे हैं।‘’
विश्वविद्यालय में आयोजित रामायण कॉन्क्लेव के मसले पर वे कहते हैं कि पाठक अब सरकार के नजदीक आने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि उनके खिलाफ एफआइआर के बाद से उन्हें समझ आ गया है कि वे सरकार के करीबी नहीं हैं। वे कहते हैं, ‘’यह गुजरात बनाम यूपी लॉबी का मसला है जिसमें गुजरात लॉबी मजबूत है, वही उन्हें बचा रही है।‘’
इस सिलसिले में कुलपति का पक्ष जानने के लिए उनसे भी संपर्क किया गया, लेकिन बात नहीं हो पाई। उन्हें सवालों की एक सूची उनके आधिकारिक मेल पर भी भेजी गई है। जबाव मिलने पर उसे कहानी में जोड़ दिया जाएगा।