राष्ट्रीय

कहीं ममता को "तीरथ" तो नही कराना चाहते हैं मोदी ?

अरुण दीक्षित
3 July 2021 10:06 PM IST
कहीं ममता को तीरथ तो नही कराना चाहते हैं मोदी ?
x

करीब 21 साल के युवा राज्य उत्तराखंड के दसवें मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत से अब तक के सबसे कम समय के मुख्यमंत्री का रिकॉर्ड बनबा कर भाजपा नेतृत्व ने उन्हें "तीर्थ यात्रा" पर भेज दिया है। तीरथ की जगह पुष्कर आ गए हैं।इसी के साथ यह सवाल भी उठ खड़ा हुआ है कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की जोड़ी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को इसी दांव से घेरना चाहते हैं।

तीरथ सिंह रावत को हटाने की असली बजह पर बात करने से पहले जो उन्होने कहा उसे ही सच मान लेते हैं।रावत लोकसभा के सदस्य हैं।उन्होंने 10 मार्च 21 को मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली थी। इस हिसाब से उन्हें 10 सितंबर से पहले विधान सभा का सदस्य बनना था।लेकिन आज जो हालात हैं उन्हें देखते हुए यह सम्भव नही है।इसलिए कोई संवैधानिक संकट न आये,उन्होंने कुर्सी छोड़ दी।पार्टी ने उनकी जगह विधायक पुष्कर धामी को मुख्यमंत्री बना दिया है।

राजनीतिक क्षेत्रों में यह माना जा रहा है कि इस दांव की आड़ में मोदी और शाह बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को घेर सकते हैं।ममता बनर्जी विधानसभा चुनाव हार गई हैं।उन्हें 5 नवम्बर से पहले उन्हें भी विधानसभा चुनाव जीतना है।ऐसे में यदि चुनाव आयोग कोरोना की आड़ में बंगाल में उपचुनाव न कराए तो ममता के सामने मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने के अलावा कोई रास्ता नही बचेगा।यदि वे इस्तीफा देकर एक दिन बाद दुबारा मुख्यमंत्री पद की शपथ लेना चाहें तो सुप्रीम कोर्ट का 16 साल पुराना एक फैसला उनका रास्ता रोकेगा।पंजाब के एक मंत्री के मामले में सुप्रीम कोर्ट यह कह चुका है कि बिना चुनाव जीते 6 महीने के लिए दुबारा मंत्री बनाया जाना संविधान के साथ धोखा है।2005 में उस मंत्री को बिना चुनाव जीते 6 महीने के लिए दुबारा मंत्री बना दिया गया था।

ज्यादातर संविधान विशेषज्ञ भी इसी तरह की राय रखते हैं।अगर कोई मुख्यमंत्री 6 महीने के भीतर विधानसभा का सदस्य नही बन पाता है तो फिर उसे चुनाव जीतने के बाद ही वह पद मिल पायेगा।संविधान का भाव भी यही है और सर्वोच्च अदालत का आदेश भी इसी तरफ़ इशारा करता है।

बंगाल में ममता को हराने के लिए हरसंभव कोशिश कर चुके मोदी-शाह यह मौका छोड़ देंगे, इस बात पर सभी को संदेह है।चुनाव आयोग ने अब तक जिस तरह का व्यवहार किया है उससे यही लगता है कि वह उपचुनाव न करा कर ममता के लिये मुश्किल खड़ी करने में मदद कर सकता है।वैसे भी बंगाल में राज्यपाल की मुहिम तो चल ही रही है।

लेकिन यह करना उतना आसान नही है।बंगाल में यदि उपचुनाव के जरिये ममता का रास्ता रोका गया तो ममता को नुकसान की बजाय फायदा ज्यादा होगा।

संविधान के जानकार और राजनीतिक पण्डित, दोनों ही यह मानते हैं कि उपचुनाव न होने पर ममता को मुख्यमंत्री की कुर्सी तो छोड़नी पड़ सकती है।लेकिन इसका उन्हें बड़ा राजनैतिक फायदा मिलेगा।विधानसभा में ममता के पास बड़ा बहुमत है।वह अपने किसी भी विश्वासपात्र को मुख्यमंत्री बना कर अघोषित सत्ता प्रमुख बनी रहेंगी।देर सबेर उप चुनाव तो होगा ही। ममता चुनाव जीतकर वापस मुख्यमंत्री बन जाएंगी।

लेकिन इस बीच जो समय उन्हें मिलेगा, उसमें वे भाजपा के लिये बहुत बड़ी समस्या बन जाएंगी।ममता जब कुर्सी पर नहीं होगी तो वे मोदी से अपना हिसाब चुकता करने की पूरी कोशिश करेंगी।ममता जिद की पक्की हैं।अगर उन्होंने ठान ली तो वे पूरे देश में घूम घूम कर भाजपा और मोदी के खिलाफ मुहिम चलाएंगी। उत्तरप्रदेश जैसे महत्वपूर्ण राज्य में चुनाव के समय मोदी ऐसा खतरा लेना नही चाहेंगे।खासतौर पर तब जबकि देश के सभी प्रमुख विपक्षी दल उनके खिलाफ एकजुट होने की कोशिश कर रहे हैं।ऐसे में ममता बनर्जी उनकी स्वाभाविक नेता हो सकती हैं।सच पूछो तो ममता भी यही चाहती हैं।

ऐसे में अगर भाजपा ने तीरथ सिंह रावत का फार्मूला अपनाया तो उसकी अपनी "यात्रा" कष्टप्रद हो सकती है।

अब तीरथ सिंह रावत के संवैधानिक संकट का सच!

पिछले दो दिन में जो कुछ कहा गया है या कहा जा रहा है,वह सच नही है।सच तो यह है कि भाजपा नेतृत्व को यह समझ में आ गया था कि त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाकर उसने बड़ी भूल की है।पिछले तीन महीने में तीरथ रावत ने जिस तरह अपनी "विद्वता" का प्रदर्शन किया उससे यह साफ हो गया था कि देवभूमि पर उनके लिए संकट आ गया है।

वास्तविकता यह है कि तीरथ सिंह रावत खुद चुनाव जीतने की स्थिति में ही नही थे।राज्य में जो हालात बन गए हैं उन्होने जनता की नजर में भाजपा को विलेन बना दिया है।

जब त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह तीरथ सिंह रावत को लाया गया था तब यह माना गया था कि दोनों की सीटें बदल जायेगी।तीरथ डोईवाला विधानसभा सीट से लड़ेंगे और त्रिवेंद्र को पौड़ी से लोकसभा चुनाव लड़ाया जाएगा।लेकिन ऐसा हो नही पाया।उसके कई कारण बताए जा रहे हैं।एक बड़ा कारण यह भी माना जा रहा है कि पार्टी को जो फीडबैक मिला उसके मुताविक वह पौड़ी में फिर से जीतने की स्थिति में नही थी।ऐसे में वह कुछ महीने बाद विधानसभा चुनाव में किस मुंह से उतरती।

राज्य में दो विधानसभा सीटें भी खाली हैं।गंगोत्री से चुने गए भाजपा विधायक और हल्द्वानी से चुनी गई कांगेस विधायक का निधन हो गया है।अगर चुनाव आयोग चाहे तो वह इन दोनों पर उपचुनाव करा सकता है।कोई बाध्यता उसके सामने नही है।

लेकिन इसमें भी पेंच था।तीरथ सिंह रावत इन दोनों ही सीटों से चुनाव नही लड़ना चाहते थे।गंगोत्री क्षेत्र में भाजपा का माहौल ठीक नही है।उधर हल्द्वानी कांग्रेस की पुरानी सीट है।वहाँ से लड़ना रावत के लिए बहुत बड़ा जुआं होता।अगर हार हो जाती तो वह पार्टी के लिए भी एक बड़ा कलंक हो जाता।

इसलिए बहुत ही सोच समझकर तीरथ सिंह रावत को "तीर्थ" पर भेजने का फैसला भाजपा नेतृत्व ने किया है।विधानसभा सभा चुनाव में अभी करीब 8 महीने का समय है।भाजपा तब तक कोई नया दांव तलाश लेगी।अगर चुनाव परिणाम पक्ष में नही आये तो वह सारा दोष पुष्कर धामी पर मढ़ कर आगे बढ़ लेगी।लोग जल्दी ही सब भूल जाएंगे।

लेकिन अगर मोदी और शाह ने बंगाल में ममता बनर्जी पर यह फार्मूला अपनाने की कोशिश की तो उसे बहुत भारी पड़ेगी।

अरुण दीक्षित

अरुण दीक्षित

Next Story