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नेपाल, पाकिस्तान और चीन ने मिलकर खेला है बड़ा खेल, नहीं तो तीनों संयोग लगातार तीन दिन क्यों?
भारत की सीमा में घुसकर भारतीय सेना से आमने-सामने की भिड़ंत हो, नेपाल की तरफ से अचानक उठ खड़ा हुआ नक्शा विवाद हो या पाकिस्तान में भारतीय अधिकारियों को अगवा करके मारपीट करने का मामला हो....यह सब अगर एक साथ शुरू हुआ है तो इसकी वजह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका, यूरोप, जापान, ऑस्ट्रेलिया आदि विश्व ताकतों के साथ भारत को जोड़ने से रोकने के लिए है।
रूस को छोड़कर दुनिया की लगभग सभी बड़ी ताकतें आज चीन के खिलाफ एकजुट हो चुकी हैं। चीन इससे बौखलाया हुआ है। अपने पड़ोसी भारत को भी अपने खिलाफ बन चुके इस वैश्विक गुट में शामिल होते देख चीन की यह बौखलाहट चरम पर पहुंच चुकी है। इसी की खीझ मिटाने और अपने खिलाफ बन चुके गुट के देशों को संदेश देने के लिए ही चीन ने भारत को अपने प्रभाव वाले देशों पाकिस्तान और नेपाल की मदद से घेर कर धमकाना शुरू किया है।
चीन अपने इसी चक्रव्यूह में फंसा कर भारत को उकसाना चाहता है ताकि भारत जल्दबाजी में कोई ऐसा कदम उठा दे, जिसको आधार बनाकर चीन अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के सामने भारत को गलत ठहरा कर सीमा पर एक सीमित युद्ध छेड़ सके। इसी मकसद से पहले उसने नेपाल से तनातनी की शुरुआत करवाई, फिर खुद भारतीय सीमा में भीतर तक घुस आया और उसके बाद पाकिस्तान से भी राजनयिक संघर्ष शुरू करा दिया। भारत को अगलबगल से घेर कर और उकसा कर सीमा पर सीमित युद्ध शुरू करने के पीछे उसका मकसद सिर्फ इतना है कि बड़े युद्ध से बचने के लिए भारत अपने कदम चीन के खिलाफ बन रहे गुट से वापस खींच ले।
साथ ही, चीन के खिलाफ बने गुट के सभी देशों को भी यह स्पष्ट संदेश पहुंच जाए कि चीन किसी गुट से नहीं डरता और जरूरत पड़ने पर वह गुट में शामिल देशों से भी आमने-सामने की भिड़ंत करने से नहीं हिचकेगा। हालांकि इस बात की पूरी संभावना है कि चीन का यह कदम उसके खिलाफ बने गुट के देशों पर कोई खास असर नहीं डाल सकेगा। बल्कि उम्मीद तो यह है कि भारत और चीन के बीच अगर सीमा पर सीमित युद्ध हुआ भी तो अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के ज्यादातर ताकतवर देशों के भी भारत को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन कर देने से चीन को मजबूरन युद्ध विराम करके पुरानी स्थिति में लौटना पड़ सकता है।
पाकिस्तान और नेपाल आज भले ही चीन की गोदी में बैठकर भारत से आंखें तरेर रहे हों लेकिन मौजूदा विश्व व्यवस्था में उनकी कोई अंतरराष्ट्रीय हैसियत नहीं है। रही बात रूस की तो भारत के खिलाफ संघर्ष में रूस भले ही भारत की तरफ खुल कर न आये लेकिन वह चीन का साथ भी नहीं देगा। उसके तटस्थ रहने की स्थिति में भारत अपने ताकतवर दोस्तों यानी अमेरिका, यूरोप, जापान और ऑस्ट्रेलिया की मदद से चीन पर दबाव बनाने में कामयाब हो जाएगा।
कुल मिलाकर अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत अभी चीन से मजबूत स्थिति में है। इसलिए भारत को सीमा पर छिड़ने वाले किसी सीमित युद्ध या सर पर मंडरा रहे किसी बड़े युद्ध से कदम पीछे नहीं खींचने चाहिए। भारत को सीमा पर चीन की ही तरह आक्रामक बर्ताव करना चाहिए। भले ही चीन की सीमा में भारत न घुसे लेकिन अपनी सीमा में घुस आए चीनी सैनिकों से बिना युद्धक सामग्री के, बिल्कुल चीन की ही तरह, आमने-सामने की भिड़ंत करनी चाहिए। ताकि चीन को भी भारत के आक्रामक रवैये से आसन्न युद्ध की चिंता सताए।
भारत को युद्ध से डराने निकला चीन यह अच्छी तरह से जानता है कि अगर उसने इस वक्त भारत से किसी बड़े संघर्ष की शुरुआत की तो यह जो गुट अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन के खिलाफ बन चुका है, वह इसे एक सुनहरे मौके की तरह इस्तेमाल करके चीन पर चौतरफा हमला बोल देगा। इसके बाद अंतरराष्ट्रीय बिरादरी चीन को हर हाल में कमजोर करके घुटनों पर लाने की कोशिश करेगी।