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मीडिया वालो देश को रिया नहीं किसानों को यू-रिया और बेरोजगारों को नौक-रिया की जरूरत है
Rajendra Adhwaryu
पिछले एक महीने से अधिक समय से देश की अधिकांश चैनल सवेरे से रात तक रिया को याद करते रहते हैं। इतनी अधिक पब्लिसिटी सुशांत कुमार की आत्महत्या की जा रही है इतनी चर्चा तो महात्मा गांधी, लालबहादुर शास्त्री, श्रीमती इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और रामजन्म भूमि विध्वंस और राम मंदिर निर्माण की नहीं की गई है। जितने सुशांत कुमार की आत्महत्या अथवा हत्या की साज़िश संबंधी की जा रही है। नारकोटिक्स डिपार्टमेंट ने मृतक और उसके सहयोगियों की पहचान ड्रग एडिक्ट अर्थात नशेड़ियों के रूप में की है। बालीवुड के नशातंत्र में कौन-कौन लोग शामिल हैं कहां कहां से ड्गस आती हैं, कौन-कौन उनका कैरियर रहा है और कौन कौन एजेंट व सप्लाई करते हैं इस पूरे रैकेट से पर्दा उठना चाहिए। पूरा पर्दाफाश अभी नहीं हुआ है।सही बात क्या है इसकी स्थिति बाद में आगे साफ होगी। सुशांत कुमार विहार के कुछ लाख लोगों की फेवरेट हो सकता है लेकिन बिहार और उसके वाहर उसके पूरे परिवार को फेवर कम बदनाम ज्यादा कर दिया है। बिहार चुनाव में लाभ लेने के लिए बिहार सरकार ने पूरा दांव खेला लेकिन फायदे की बजाय नशेड़ियों का पक्ष लेने से नुकसान का टीका विहार सरकार के लोगों पर लग गया।
अच्छा होता मीडिया हाउस अर्थव्यवस्था, विद्यार्थियों की शिक्षा दीक्षा, चीन और पाकिस्तान द्वारा किए जा रहे भारतीय सीमा का बार-बार उल्लंघन, सुरक्षा संबंधी व्यवस्थाओं पर आंतरिक और बाहरी पॉलिसी, बाढ़ से देश के किसानों-मजदूरों,छोटे व्यापारियों व जनसामान्य को हुआ नुकसान इसके साथ ही देश की आर्थिक स्थिति, छोटे उद्योगों के समक्ष उत्पन्नआर्थिक संकटऔर महंगाई व वेरोजगारी की समस्या के संबंध में चर्चा की जाती तो जनसामान्य की नजर में चैनल्स की कीमत बढ़ती।इसके साथ ही कोविड-19 से मरने वालों की दशा और संक्रमण से पीड़ित लोगों को आवश्यक सुविधाओं और दबाओं को उपलब्ध कराने इससे देश को भविष्य में होने वाले के नुकसान के संबंध में राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा होनी चाहिए थी तब लोग चैनल्स के एंकरों को देख कर प्रसन्न होते।
आत्म निर्भर भारत बनाने के लिए भारत सरकार के प्रयासों का लेखा-जोखा किए जाने वाले प्रेरणादायक समाचार प्रसारित किए जाते और सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर सार्वजनिक हित के विरुद्ध फेक न्यूज का उपयोग हो रहा है। इस सब को केंद्रित करने को आधार बनाकर प्रसारण किए जाते तो युवा पीढ़ी के प्रगतिशील विचारधारा के लोगों के साथ ही सामान्य जनों को अत्याधिक लाभ होता। देश के किसानों की इन दिनों सबसे बड़ी जरूरत रिया नहीं है यूरिया है।
आशा है चैनल्स अपनी पालसी जनहित के रुझान के अनुसार बनाने की विधि अपनायेंगे तो व्यवहारिक व व्यवसायिक रूप से उन्हें अधिक समय तक लाभ होगा। शुभकामनाओं सहित धन्यवाद।। जयहिंद।
Image may contain: text that says "मीडिया को समझाओ...... की देश को रिया की नही बल्कि किसान को "यू-रिया" की और युवाओं को "नौक-रिया' की जरूरत है"