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उपराष्ट्रपति के कथित अपमान और जाति को मुद्दा बनाने की कोशिश पर शर्माते अखबार
मिमिक्री को मुद्दा बनाकर जाति की राजनीति करती भाजपा की तानाशाही पर एक टिप्पणी थी, मदर ऑफ डेमोक्रेसी एंड फादर ऑफ हिप्पोक्रेसी। लेकिन वह आज कहीं नजर नहीं आई। हालांकि, कांग्रेस नेताओं की टिप्पणी और प्रतिक्रिया वैसे भी नहीं छपती है। आज भी सिर्फ अमर उजाला में दिखी। वरना इंडियन एक्सप्रेस ने कांग्रेस हिट्सबैक लिखकर काम चला लिया है। हालांकि, शीर्षक में बताया है कि प्रधानमंत्री ने उपराष्ट्रपति को फोन किया और इससे राष्ट्रपति के ट्वीट का ही नहीं भाजपा की महिला सांसदों के विरोध का मतलब समझ में आता है।
जगदीप धनखड़ (उपराष्ट्रपति तो वो हैं ही और मुझे उनका पश्चिम बंगाल के राज्यपाल का कार्यकाल भी याद है) ने हाल में कहा था, महात्मा (गांधी) पिछली सदी के महापुरुष थे, मोदी इस (सदी) के युगपुरुष हैं। अब उनके कथित अपमान पर सत्ता पक्ष के सांसद एक घंटे तक संसद में खड़े रहेंगे। आज तक डॉट इन की एक खबर में इसे विपक्ष पर एनडीए का करारा हमला कहा गया है। खबर के अनुसार उपराष्ट्रपति के अपमान पर बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन ने बड़ा फैसला लिया है। टीएमसी नेता कल्याण बनर्जी के खिलाफ अनूठा विरोध प्रदर्शन किया जाएगा। एनडीए के सांसद संसद की कार्यवाही में एक घंटे तक खड़े होकर हिस्सा लेंगे। बीजेपी ने धनखड़ के मामले में बड़े प्रदर्शन की तैयारी कर ली है। इस क्रांतिकारी खबर को पढ़कर लगा था कि यह आज होने वाला है पर नवोदय टाइम्स की खबर से लगा कि कल हो चुका। वास्तविकता बताने वाली कोई खबर पहले पन्ने पर नहीं दिखी।
आप जानते हैं कि संसद की सुरक्षा में सेंध के मामले में गृहमंत्री के बयान की मांग करने वाले विपक्षी सांसदों को लगातार निलंबित किया जा रहा है और दोनों सदनों से अभी तक 143 सांसद निलंबित किये जा चुके हैं। इन सांसदों में एक, टीएमसी नेता कल्याण बनर्जी ने कल संसद भवन के बाहर उपराष्ट्रपति की मिमिक्री की थी। खबर के अनुसार कल्याण बनर्जी के खिलाफ अनूठा विरोध प्रदर्शन किया जाएगा। संसदीय कार्य मंत्री प्रहलाद जोशी ने इसे (मिमिक्री को) किसान, जाट समाज का अपमान बताया है। विपक्ष ने पहले प्रधानमंत्री का अपमान किया। अब उपराष्ट्रपति का अपमान किया है। यह खबर और तैयारी इस तथ्य के बावजूद है कि मिमिक्री प्रधानमंत्री संसद में कर चुके हैं और मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा है कि मिमिक्री को जाति से जोड़ने का मतलब नहीं है और 'क्या मैं कहूं कि दलित होने की वजह से मुझे संसद में बोलने नहीं दिया जाता है।'
तथ्य यह भी है कि इस मामले में प्रधानमंत्री ने उपराष्ट्रपति को फोन किया है और इसके बाद धनखड़ ने ही नहीं राष्ट्रपति ने भी इस मामले में ट्वीट किया है और इस स्तर पर इसे राजनीतिक व जातिवादी रंग दिया जा रहा है। तृणमूल पार्टी के सांसद साकेत गोखले ने धनखड़ के युगपुरुष वाले बयान के साथ ट्वीट किया है, हम सबों को भारत के माननीय उपराष्ट्रपति का पूरा सम्मान करना चाहिये जो एक संवैधानिक पद पर हैं और एक गैर राजनीति प्राधिकार हैं। पर मामला यह है कि इसमें राष्ट्रपति को भी खींच लिया गया है या वे भी इस विवाद में कूद पड़ी हैं। मुझे लगता है कि आज के अखबारों की सबसे बड़ी खबर यही है क्योंकि मिमिक्री को मुद्दा बना दिया गया है। इसे जाति से जोड़ा जा रहा है और प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति को फोन किया तथा राष्ट्रपति ने भी इस मामले में ट्वीट किया है। मिमिक्री प्रधानमंत्री कर चुके हैं और संसद की कार्यवाही के दौरान एक गंभीर मुद्दे या व्यवहार पर किया है। उस समय किया है जिस समय देश का काम करने के लिए उन्हें वेतन-भत्ता मिल रहा था।
कल्याण बनर्जी की मिमिक्री इससे बहुत अलग है। वे निलंबित हैं और सदन में नहीं किया है। दिलचस्प यह भी है कि इसका वीडियो बनाने के लिये राहुल गांधी को भी घसीट लिया गया है जबकि वीडियो बनाने में कोई बुराई नहीं है। अगर मिमिक्री हुई और कोई दूसरा रिकार्ड नहीं कर रहा था तो उन्होंने किया और कई लोग रिकार्ड कर रहे थे तो उन्होंने भी किया - दोनों स्थितियों में यह कोई अजूबा नहीं है और जब जेएनयू में देश विरोधी नारे लगाने का वीडियो बन सकता है तो यह क्यों गलत है। मेरा मानना है कि देश विरोधी गतिविधि (या किसी घटना का भी) वीडियो बनाकर अगर कार्रवाई के लिए अधिकारियों को सौंपा जाये तो कोई बुराई नहीं है और संभव है कि वीडियो बनाने के बाद ही तय हो कि यह कार्रवाई के लिए सौंपने लायक है कि नहीं। इसलिए वीडियो बनाना तो कतई अनुचित नहीं है उसके बाद क्या किया गया वह महत्वपूर्ण है। जेएनयू वाले मामले में टीवी पर दिखाना गलत था, कार्रवाई अभी तक नहीं हुई है सो अलग और अब यह समझा जा सकता है कि मामला क्या है। खबर तो तब भी थी ही।
आज के अखबारों से नहीं लगता है कि हिन्दुत्व की रक्षा करने वाली सरकार अब जातिवादी राजनीति की ओर बढ़ती लग रही है। 141 सांसदों का निलंबन अपने आप में बड़ा मुद्दा है और उपराष्ट्रपति का कथित अपमान इससे जुड़ा हुआ है इसलिए इसकी चर्चा दूसरी खबरों और शीर्षक में भी होनी चाहिये थी। फिर भी टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने पर या उससे पहले के अधपन्ने पर ऐसी कोई खबर नहीं है। अधपन्ने पर विज्ञापन है और एक कॉलम की खाली जगह में अंदर के पन्ने की खबरों की सूचना है और यह अदालती खबरों की है। इन खबरों में अंतिम खबर है, दिल्ली हाईकोर्ट ने अधिकारियों को आदेश दिया है कि भीकाजी कामा प्लेस के आस-पास पेड़ों के चारो और से कंक्रीट तत्काल हटाये जाएं। अदालत ने ऐसे सुंदरीकरण के पीछे के कारण भी जानने की कोशिश की है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की आज की लीड पन्नून की हत्या की साजिश की खबर है। इसके अनुसार प्रधानमंत्री ने कहा है कि इस साजिश से संबंधित किसी भी सबूत पर विचार करेंगे। मुझे लगता है कि इसमें कोई खबर नहीं है और यह तो जानी हुई बात है। इसके बावजूद अखबार ने बॉक्स में सबसे ऊपर प्रधानमंत्री का बयान छापा है जो हिन्दी में कुछ इस तरह होगा, अगर हमें कोई किसी तरह की सूचना देता है तो हम निश्चित रूप से उसकी जांच करेंगे। अगर हमारे किसी नागरिक ने कुछ अच्छा या बुरा किया है तो हम इसपर विचार के लिए तैयार हैं। हमारी प्रतिबद्धता कानून के शासन पर है। मुझे लगता है कि यह कहने या छापने की बात नहीं है। ऐसा होता नहीं हो या लगे कि ऐसा नहीं हो रहा है तो जरूर छापा जाना चाहिये और इस मामले में जितनी जानकारी आई है उससे यही लगता है कि इस मामले को लटकाया जा रहा है। इस संबंध में दूसरे अखबारों के शीर्षक से ऐसा लगता है। इसकी चर्चा आगे होगी ही।
हालांकि, इसके साथ की दो खबरो का शीर्षक भी उल्लेखनीय है। मोदी ने कहा, इस विवाद के कारण अमेरिका से संबंध खराब नहीं हुए हैं और दूसरा, पश्चिम में भारत विरोधी समूह अभिव्यक्ति की आजादी का दुरुपयोग कर रहे हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया की सेकेंड लीड है, केजरीवाल शहर से बाहर गये, ईडी के बुलावे पर फिर नहीं जायेंगे। खबर के अनुसार वे 30 दिसंबर तक दिल्ली से बाहर है। मुझे लगता है कि दोनों खबरें उपराष्ट्रपति के कथित अपमान और उसपर सत्तारूढ़ दल की योजना और राजनीति के मुकाबले बहुत मामूली और रूटीन खबर हैं। यही हाल द हिन्दू की लीड और सेकेंड लीड का है। लीड का शीर्षक है, लोकसभा ने अंग्रेजों के जमाने के आपराधिक कानूनों की जगह लेने वाले विधेयक पास किये। कहने की जरूरत नहीं है कि ये कानून तब पास हुए जब विपक्ष के ज्यादातर सदस्य निलंबित कर दिये गये हैं। ऐसे में इसका उल्लेख किये बिना इसकी अच्छाइयां बताने का कोई मतलब नहीं है। वैसे, द हिन्दू ने सांसदों के निलंबन की खबर को सेकेंड लीड बनाया है और एक तरह से वास्तविकता बताई है कि सांसद निलंबित हैं और विधेयक पास हो गए तथा जो मंत्री संसद की सुरक्षा की सेंध पर बयान नहीं दे रहे हैं वे पास किये गए कानून के गुण बता रहे हैं। द हिन्दू में टाइम्स ऑफ इंडिया की दोनों खबरें भी पहले पन्ने पर हैं।
हिन्दुस्तान टाइम्स की लीड वही है जो द हिन्दू में लीड है और सेकेंड लीड वह है जो टाइम्स ऑफ इंडिया की सेकेंड लीड है। चार कॉलम में एक खबर दिलचस्प है जिसका शीर्षक हिन्दी में कुछ इस तरह होगा, ममता बनर्जी खरगे का नाम प्रधानमंत्री के पद के लिए प्रस्तावित करने से मुकरीं, लगता है नीतिश के जेडीयू का दबाव रहा। इसके साथ एक और खबर का शीर्षक है, टीएमसी ने कांग्रेस को पश्चिम बंगाल में सीटों के बंटवारे के तहत दो सीटों की पेशकश की। कहने की जरूरत नहीं है कि इस तरह की खबरों का मकसद भाजपा विरोधी दलों की एकजुटता को कमजोर बताना होता है और यह खबर भी उसी सिलसिले में हो सकती है। आप जानते हैं कि मल्लिकार्जुन खड़गे प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होने से इनकार कर चुके हैं और नीतिश कुमार नरेन्द्र मोदी के समर्थक विरोधी दोनों रहे हैं। ऐसे में चुनाव जीतने के बाद वे प्रधानमंत्री बनने का दावा करें और नहीं बनने पर अपने समर्थकों के साथ अलग हो जायें या नरेन्द्र मोदी का समर्थन करने लगें तो कोई क्या कर लेगा और कौन कह सकता है कि इसकी संभावना है ही नहीं। इसे कौन नहीं समझता है। पर इस तरह की खबरों का अपना महत्व है।
ऐसे में द टेलीग्राफ अंग्रेजी के मेरे पांच में से अकेला अखबार हैं जिसमें खबर वैसे छपी है जैसे छपनी चाहिये। इंडियन एक्सप्रेस ने धनखड़ की मिमिक्री से संबंधित खबर तो छापी है पर विधेयक पास होने की खबर के शीर्षक में यह नहीं बताया है कि विपक्ष संसद में है ही नहीं है या ज्यादातर बाहर है। दूसरी ओर, अमित शाह ने अपनी पीठ थपथपाते हुए जो सब कहा है उसका अच्छा-खासा हिस्सा उपशीर्षक में है। पर यह नहीं बताया है कि संसद की सुरक्षा में सेंध पर अमित शाह के बयान की मांग करने पर विपक्ष संसद के इस कार्यकाल से निलंबित किया जा चुका है। यहां शीर्षक में, धनखड़ की मिमिक्री से संबंधित विवाद गहराया, राष्ट्रपति ने बेचैनी जताई, प्रधानमंत्री ने उपराष्ट्रपति को फोन किया - सब शीर्षक में है।
उपशीर्षक में अखबार ने लिखा है, सत्तारूढ़ दल ने राहुल को निशाना बनाया तो कांग्रेस ने पलटवार किया। उपराष्ट्रपति ने अपनी मिमिक्री को वाइस प्रेसिडेंट (उपराष्ट्रपति) के पद का अपमान बताया है। अखबार ने भाजपा की महिला सांसदों को इस मामले में विरोध करते भी दिखाया है और तस्वीर छापी है।पार्टी और समरथक ये वो सांसद हैं जो पहले तमाम मामलों में चुप रही हैं या चुप रहना पसंद किया है। अखबार की लीड वही है जो टाइम्स ऑफ इंडिया में है। द टेलीग्राफ की लीड का शीर्षक है, एक पक्षीय लोकसभा ने कानून से संबंधित विधेयक पास किये। सेकेंड लीड धनखड़ की मिमिक्री पर है। शीर्षक है , मिमिक्री को लेकर नाटक शुरू। द टेलीग्राफ ने एक और खबर सिंगल कॉलम में छापी है। इसके अनुसार, पूर्व जनरल ने अग्निपथ की चर्चा पुनर्जीवित की।
हिन्दी अखबारों की दुनिया अलग है। अमर उजाला की लीड का शीर्षक है, नए आपराधिक कानून में भीड़ हिंसा और नाबालिग से दुष्कर्म पर फांसी की सजा। फ्लैग शीर्षक है, बदलेगा अंग्रेजों के जमाने का कानून : लोकसभा में 97 विपक्षी सदस्यों के बगैर तीन विधेयकों को मंजूरी। यहां सेकेंड लीड का शीर्षक है, उपराष्ट्रपति के अपमान से पीएम भी दुखी कहा - 20 साल से झेल रहा ऐसी बेइज्जती। उपशीर्षक है, धनखड़ को फोन कर जताया दुख, राष्ट्रपति और लोकसभा स्पीकर ने भी खेद जताया। कहने की जरूरत नहीं है कि ससंद की सुरक्षा में सेंध पर चुप्पी साधे लोग मिमिक्री के खिलाफ सक्रिय हो गये और सक्रिय हैं, ऐसे जैसे पहले कभी नहीं दिखे। हालांकि, अमर उजाला ने कांग्रेस के बयान, निलंबन से ध्यान भटकाने की चाल को भी जगह दी है। लेकिन मदर ऑफ डेमोक्रेसी में फादर ऑफ हिप्पोक्रेसी जैसे जोरदार बयान को जगह नहीं मिली है।
नवोदय टाइम्स में लीड का शीर्षक है, नए कानून में मॉब लिचिंग व नाबालिग से रेप पर फांसी। इस मुख्य खबर के दोनों तरफ आज की दो बड़ी खबरें हैं। नकल उतार कर मेरी जाति का अपमान किया : धनखड़। इस खबर में हाइलाइट किया अंश है, सत्ता पक्ष ने खड़े होकर किया सम्मान। इसके बारे में मैं ऊपर लिख चुका हूं। पन्नू के मामले को कुछ अखबारों ने लीड बनाया है। नवोदय टाइम्स में शीर्षक है, आतंकी पन्नू के मामले में पहली बार बोले मोदी। उपशीर्षक है, कहा - हमारी प्रतिबद्धता कानून के शासन के प्रति। सरकार की प्रतिबद्धता बोलने की नहीं कर के दिखाने की चीज है और हम प्रतिबद्धता का हश्र इस मामले के साथ-साथ तमाम दूसरे मामलों में देखते रहे हैं। यहां एक और शीर्षक महत्वपूर्ण है जो दूसरे अखबारों में नहीं दिखा। इसके अनुसार, पुंछ के सशस्त्र पुलिस परिसर में धमाका हुआ है। यह आतंकवाद रोक देने और सबक सिखाने जैसे दावों के बावजूद है। 370 की तो बात ही नहीं है।