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भारत में बच्चों की ट्रैफिकिंग रोकने हेतु मजबूत कानून बनाने के लिए दशकों से संघर्षरत हैं नोबेल विजेता कैलाश सत्यार्थी
फ़ोटो साभार- कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन
पंकज चौधरी
नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित विश्व प्रसिद्ध बाल अधिकार कार्यकर्ता श्री कैलाश सत्यार्थी चार दशकों से बाल मजदूरी और ट्रैफिकिंग (दुर्व्यापार) के खिलाफ संघर्ष करते आ रहे हैं। उन्होंने चार दशक पहले बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) की स्थापना करके अब बच्चों का बचपन सुरक्षित बनाने के लिए दर्जनभर से ज्यादा देशव्यापी जन-जागरुकता यात्राओं का आयोजन किया है। उन्होंने जागरुकता यात्राओं के जरिए बाल श्रम और ट्रैफिकिंग के खिलाफ सरकार पर जनमानस का दबाव बनाकर एक ओर जहां बच्चों के हक में ढेरों कानून और नीतियां बनवाई, वहीं दूसरी ओर बीबीए के बैनर तले देश के विभिन्न भागों में सीधी छापामार कार्रवाई यानी रेड एंड रेस्क्यू ऑपरेशन के जरिए एक लाख से अधिक बच्चों को बाल दासता या गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराकर उनका पुनर्वास किया है।
दुनिया का यह तीसरा सबसे बड़ा संगठित अपराध आज इतना भयंकर हो गया है कि यह नए-नए रूप में सामने आने लगा है। इसलिए इस विकट समस्या का समाधान करने के लिए श्री कैलाश सत्यार्थी केंद्र सरकार से संसद के इसी मानसून सत्र में ट्रैफिकिंग इन पर्सन्स (प्रीवेंशन, केयर एंड रीहैबिलिटेशन) बिल, 2021 को पारित करने का आह्वान कर रहे हैं। इस बिल में एक ओर जहां ट्रैफिकिंग की कमर तोड़ने के सारे प्रावधान मौजूद हैं, वहीं दूसरी ओर यह पीडि़तों के लिए आर्थिक एवं सामाजिक सुरक्षा और पुनर्वास की सुविधाएं भी सुनिश्चित करता है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के अनुसार विश्व में ह्यूमन ट्रैफिकिंग तीसरा सबसे बड़ा मुनाफा कमाने वाला आपराधिक उद्योग है। यह सालाना 150 बिलियन डॉलर का कारोबार करता है। वहीं, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के अनुसार ट्रैफिकिंग के शिकार लोगों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। आंकड़े बताते हैं कि हर दिन 8 बच्चे ट्रैफिकिंग के शिकारहोते हैं। रिपोर्ट लापता बच्चों की संख्या में भी लगातार वृद्धि दिखा रही है। गौरतलब है कि ज्यादातर लापता बच्चे ट्रैफिकिंग के ही शिकार होते हैं। बच्चों की ट्रैफिकिंग करके ही उन्हें बाल मजदूरी, बंधुआ मजदूरी, वेश्यावृत्ति, भीखमंगी, यौन शोषण, डिजिटल पोर्नोग्राफी आदि के दलदल में धकेला जाता है। एनसीआरबी के अनुसार साल 2019 में 73,138 बच्चों के गुम होने की रिपोर्ट दर्ज की गई।
श्री कैलाश सत्यार्थी ने प्रत्यक्ष रूप से अब तक एक लाख से अधिक बच्चों को गुलामी या यह कहें कि बाल दासता के चंगुल से मुक्त कराया है। जबकि उनके प्रयास से नीतियों और कानूनों के निर्माण से अप्रत्यक्ष रूप से करोड़ों बच्चों की जिंदगियां संवर चुकी हैं। सीधी छापामार कार्रवाई से बाल श्रमिकों के गुलामी से मुक्ति की शुरुआत उन्होंने सबसे पहले पंजाब के सरहिंद के ईंट-भट्ठे से 15 वर्षीय साबो और 34 अन्य बंधुआ मजदूरों को मुक्त कराकर की थी। गौरतलब है कि साबो और बंधुआ मजदूरों की मुक्ति के बाद ही इंजीनियरिंग का बेहतरीन करियर छोड़कर श्री सत्यार्थी ने 1980 में बचपन बचाओ आंदोलन की नींव डाली। अपने शुरूआती अभियान से ही श्री सत्यार्थी को समझ आ गया कि बाल श्रम और ट्रैफिकिंग एक सिक्के के दो पहलू हैं। बच्चों को पिछड़े और गरीब राज्यों से ट्रैफिकिंग के जरिए ही महानगरों और शहरों में लाकर जबरिया मजदूरी कराई जाती है।
बाल श्रम और ट्रैफिकिंग के खिलाफ श्री सत्यार्थी का पहला अभियान नगर उटारी से दिल्ली तक की जनजागरुकता यात्रा थी। नब्बे के दशक में बिहार स्थित नगर उटारी बाल श्रम और ट्रैफिकिंग का गढ़ हुआ करता था। दूसरे अभियान के अंतर्गत कलकत्ता से काठमांडू तक दक्षिण एशियाई जन-जागरुकता मार्च था, जो उन्होंने 1995 में आयोजित किया था। सन् 2001 में बाल श्रम और ट्रैफिकिंग पर रोक लगाने तथा बच्चों की शिक्षा को सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने गांवों में बाल मित्र ग्राम (बीएमजी) जैसे कार्यक्रमों की भी अनूठी पहल की। जो गांव बाल मित्र ग्राम बनता है वहां कोई भी बच्चा मजदूरी नहीं करता और सभी स्कूल में शिक्षा प्राप्त करते हैं। उन्होंने बाल श्रम को लेकर जो भी जनजागरुकता यात्रा और आंदोलन चलाया उसमें ट्रैफिकिंग भी मुद्दा हुआ करता था।
श्री सत्यार्थी और उनके साथियों द्वारा 2004 में उत्तर प्रदेश के करनैलगंज के ग्रेट रोमन सर्कस में ट्रैफिकिंग के खिलाफ रेड एंड रेस्क्यू ऑपरेशन को अंजाम देना एक बड़ा कदम था। इसी अभियान में श्री सत्यार्थी और बीबीए के साथियों पर सर्कस माफियाओं ने जानलेवा हमला किया था। श्री सत्यार्थी पर गुस्साए सर्कस मालिक ने उनकी कनपटी पर रिवाल्वर तान दी। लेकिन मीडियाकर्मियों और पुलिस की मौजूदगी की वजह से श्री सत्यार्थी की जान बच गई। बाद में उन पर लाठी और रॉड से हमला कर दिया गया। लहूलुहान श्री सत्यार्थी ने किसी तरह से भाग कर अपनी जान बचाई। लेकिन यह घटना ट्रैफिकिंग के खिलाफ मील का पत्थर साबित हुई और 2006 में सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई। जिसके परिणामस्वरूप सर्वोच्च अदालत ने 2011 में कई ऐतिहासिक फैसले सुनाए। मुख्य फैसलों में ट्रैफिकिंग को एक संगठित अपराध माना गया। यह श्री कैलाश सत्यार्थी की ही पहल थी कि भारत में पहली बार पालेर्मो प्रोटोकॉल के अनुसार ट्रैफिकिंग को परिभाषित किया गया, सर्कसों में बच्चों के रोजगार पर प्रतिबंध लगाया गया और प्रत्येक जिले में ह्यूमन ट्रैफिकिंग विरोधी इकाइयों की स्थापना को अनिवार्य किया गया। बच्चों की सुरक्षा के बाबत संस्थागत ढांचे के कार्यान्वयन के लिए भी दिशा-निर्देश जारी किए गए। भारत सरकार के फैसले के माध्यम से भारत में ट्रैफिकिंग के अपराधीकरण को कानूनी आधार के साथ, भारत सरकार ने 05 मई 2011 को विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों की ट्रैफिकिंग को रोकने के लिए ऑप्शनल प्रोटोकॉल टू प्रीवेंट, सप्रेस एंड पनीश इन ट्रैफिकिंग इन पर्सन्स की पुष्टि की। इसके बाद भारत सरकार ने सर्कस में बच्चों को रोजगार देने पर प्रतिबंध लगा दिया। सर्कस उद्योग को बच्चों के रोजगार के ख्याल से निषिद्ध व्यवसायों की सूची में डाला गया, जो बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 के तहत अनुसूची ए में आता है। इस तरह श्री सत्यार्थी के प्रयासों से ट्रैफिकिंग के जरिए जबरिया बाल मजदूरी के खिलाफ एक बड़े आंदोलन की शुरुआत हुई।
वर्ष 2004 में ही प्रज्ज्वला बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले में बीबीए नालसा की कमेटी का एक सदस्य था, जिसके माध्यम से भारत में ट्रैफिकिंग को रोकने के लिए एक व्यापक कानून की मांग की गई थी। श्री सत्यार्थी के नेतृत्व में वर्ष 2007 में ट्रैफिकिंग के जरिए होने वाले जबरिया बाल मजदूरी पर रोक लगाने के लिए 5000 किलोमीटर की दक्षिण एशियाई यात्रा भी आयोजित की गई। नेपाल के काठमांडू से शुरू की गई यह यात्रा दिल्ली में जाकर खत्म हुई, जिसमें 5000 किलोमीटर की दूरी तय की गई। वहीं, श्री सत्यार्थी ने बाल श्रम और ट्रैफिकिंग के खिलाफ पूर्वोत्तर के राज्यों में वर्ष 2012 में पदयात्रा का आरंभ किया। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री अल्तमस कबीर ने यात्रा का शुभारंभ किया था। गौरतलब है कि बीबीए की सिफारिश पर ट्रैफिकिंग की परिभाषा को निर्भया कांड के बाद गठित जस्टिस वर्मा कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में 2013 में स्वीकार किया, जो भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 370 और 370A में परिलक्षित होती है।
श्री सत्यार्थी ने ट्रैफिकिंग के खिलाफ अपने संघर्ष को और व्यापक धार देते हुए सन् 2017 में एक मजबूत कानून बनाने के लिए देशव्यापी भारत यात्रा का आयोजन किया। यह ऐतिहासिक यात्रा 22 राज्यों से होते हुए कन्याकुमारी से शुरु होकर दिल्ली तक चली, जिसमें 12 लाख लोगों ने भाग लेते हुए 12,000 किलोमीटर की दूरी तय की। यात्रा में मुक्त बाल मजदूरों, छात्रों, सरकारों, जजों, धर्मगुरुओं, कॉरपोरेट घरानों, सिने हस्तियों, सिविल सोसायटियों आदि ने भाग लेते हुए सरकार से एक मजबूत एंटी ट्रैफिकिंग बिल संसद में पारित करने की मांग की। यात्रा में शिवराज सिंह, महबूबा मुफ्ती, चंद्रबाबू नायडू सहित कई तत्कालीन मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, सांसद, विधायक, विभिन्न दलों के राजनेता और छात्र नेता शामिल हुए। श्री सत्यार्थी इस यात्रा में जगह-जगह जजों, वकीलों, सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों और नीति निर्माताओं से मिलते और उनसे बच्चों के हक में कानून बनवाने के लिए प्रयास करने की अपील भी करते। इस अपील का असर भी हुआ और मोदी सरकार ने सन 2018 में एक एंटी ट्रैफिकिंग बिल संसद में पेश भी किया। लोकसभा में यह बिल पास हो गया, लेकिन, दुर्भाग्य से राज्यसभा में यह पेश नहीं हो पाया। 2019 में नई लोगसभा के गठन से इस बिल का अस्तित्व समाप्त हो गया। लिहाजा अब सरकार ने नया एंटी ट्रैफिकिंग बिल तैयार किया है। जो संसद के इसी मानसून सत्र में पेश होगा।
श्री सत्यार्थी वर्तमान में सरकार और सभी सांसदों से संसद के मानसून सत्र में जिस 'ट्रैफिकिंग इन पर्संस (प्रीवेंशन, केयर एंड रिहैबिलिटेशन) बिल- 2021' को पारित करने की अपील कर रहे हैं, वह ट्रैफिकिंग के विभिन्न पहलुओं को प्रभावी, समग्र और व्यापक रूप से सम्बोधित करता है। अगर यह बिल पास हो जाता है तो कोई कारण नहीं कि ट्रैफिकिंग का समूल खात्मा होगा और इससे पीडि़तों की सुरक्षा, संरक्षा और पुनर्वास की सभी जरूरतें भी पूरी होंगी। सभी राजनीतिक दलों को चाहिए कि वह बिना किसी देरी के बिल को पारित करके श्री सत्यार्थी के "सुरक्षित बचपन, सुरक्षित भारत" के सपने को साकार करें।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)