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
संजय कुमार सिंह
कोरोना पीड़ितों की सहायता के लिए रातों-रात बने रहस्यपूर्ण पीएम केयर्स ने कुल जमा 3100 करोड़ रुपए खर्च करने का विवरण दिया है। इससे पता चलता है कि यह फंड सरकारी हो या निजी, बहुत बड़ा है और इस कारण इसपर तमाम सरकारी नियम लागू होंगे जो छोटे कारोबारियों से लेकर गैर सरकारी संस्थाओं पर होते हैं। चूंकि प्रधानमंत्री से लेकर वित्त मंत्री तक इसे चलाने वाले हैं इसलिए पारदर्शिता की अपेक्षा उनसे की जाती है और जैसे देश चल रहा है वैसे ही पीएम केयर्स भी चले तो कोई कुछ कर नहीं सकता है और ना कोई अनर्थ ही हो जाएगा।
अभी तक की सूचना के अनुसार 2000 करोड़ से देश में बने 50,000 वेंटीलेटर खरीदे जाने थे। देश में बने वेंटीलेटर का प्रयोग गुजरात में हुआ और इन्हें नकली वेंटीलेटर कहा गया। द वायर डॉट इन ने लिखा था कि गुजरात सरकार की कंपनी एचएलएल लाइफ केयर के जरिए भारत में बने वेंटीलेटर खरीदे जा रहे हैं। विवाद के बाद यह आदेश रद्द हो जाना चाहिए था पर ऐसी कोई सूचना नहीं है। दूसरी ओर, वेंटीलेटर बनाने वाली कंपनी प्रधानमंत्री के करीबी की बताई जाती है और यह आरोप लगता रहा है कि इसी कंपनी के कर्ता धर्ता ने प्रधानमंत्री को नाम लिखा सूट उपहार दिया था।
ऐसे में जनता के चंदे से कोरोना पीड़ितों की सहायता कैसे हो रही है और धन का क्या उपयोग हो रहा है - उसपर सवाल तो उठेंगे पर कोई जवाब नहीं है। मैंने पहले भी लिखा था कि अगर यह गैर सरकारी संस्था है तो उसी तरह चलाया जाए और सरकारी है तो सरकारी संस्था की तरह चले। दोनों ही स्थितियों में इसके लिए पूर्णकालिक कर्ता-धर्ता की आवश्यकता है। इतने पैसों का काम अंशकालिक नहीं हो सकता है और अगर पीएम केयर्स का सीईओ कोई बहुत बड़ा आदमी हो तो मीडिया से बात करने के लिए चंदा लेने और चंदा देने वालों का जवाब देने के लिए एक पीआरओ जैसा आदमी होना चाहिए।
जनहित का काम सरकार या प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार नहीं है कि वे जैसे जितना चाहेंगे करेंगे और जो नहीं चाहेंगे वो नहीं करेंगे। अगर वे नहीं कर पा रहे हैं या करना चाहते हैं तो दूसरे लोगों को आगे आने देना चाहिए। अभी ही देश में कोरोना पीड़ितों के लिए बहुत अच्छी व्यवस्था नहीं है और ना ऐसी स्थिति है कि आगे कुछ करने की जरूरत नहीं है। कायदे से प्रधानमंत्री को सरकारी धन से सेवा करनी चाहिए थी और चंदा-दान का काम आम लोगों पर छोड़ देना चाहिए। पर जब वे सेवा करने मैदान में उतरे हैं तो जवाब देने होंगे और बताना होगा कि दूसरे लोगों को सेवा करने से क्यों रोका जा रहा है या नहीं रोका जा रहा है।
बात इतनी ही नहीं है। अगर इतना पैसा है और सेवा ही करनी है तो और क्या हो रहा है, क्या योजना है - यह सब जानना कोई भी चाहेगा। मित्र Vinod Chand ने चुनौती दी कि कोई ढूंढ़ कर बताए कि पीएम केयर्स ने क्या खरीदने के लिए टेंडर निकाला है और क्या ऑर्डर दिए हैं। आखिर जनता के पैसे से कुछ खरीदा जाएगा तो एक कायदा कानून भी होगा ही। बाद में उन्होंने बताया कि Sudip Mallik नामक एक सज्जन ढूंढ़ कर थक गए कुछ नहीं ढूंढ पाए।
प्रधानमंत्री अगर चाहते हैं कि आग लगाने वालों को कपड़ों से पहचान लिया जाए तो उन्हें यह भी समझना चाहिए कि काम के तरीके से भी नीयत की पहचान होती है। दिलचस्प यह भी है कि गुजरात में देसी वेंटरलेटर से लेकर इलाज की खराब स्थिति पर सख्त टिप्पणी करने वाले गुजरात हाईकोर्ट की बेंच बदल गई और अब मुंबई हाईकोर्ट ने पीएम केयर्स से संबंधित सवालों पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। निश्चित रूप से जवाब का इंतजार बेसब्री से किया जाएगा पर ट्रांसफर के हथियार का उपयोग कब कौन कहां कर दे कुछ कहा नहीं जा सकता है।