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अब ये रिपोर्टिंग ही समझ में नहीं आ रही है, आखिर तीन मिनट में दो बड़ी खबर कैसे?
यह सही है कि युद्ध और महामारी का समय है। सरकार का साथ देना चाहिए। पर सरकार क्या कर रही है? सेना के 20 जवान शहीद हुए यह 16 जून 2020 रात 9:57 की खबर है। ठीक है। इसमें कोई खास बात नहीं है। यह एक निजी समाचार एजेंसी की खबर है। देशभक्ति को भूल कर पत्रकारिता की भाषा में यह सरकारी खबर नहीं है। कायदे से इसकी पुष्टि का इंतजार किया जाना चाहिए। वैसे भी अखबार तो सुबह छपने होते हैं। पर आजकल खबर देने की मारा-मारी ज्यादा है। क्या ऐसी खबर की पुष्टि सरकार से होने का इंतजार नहीं किया जाना चाहिए। अगर सरकार का साथ दिया जाना है और सरकार से पूछकर ही काम करना है तो?
दूसरी खबर एएनआई की ही है (डिजिटल नहीं है) 9:54 की है। इसके अनुसार भारतीय एजेंसियों ने संदेश को बीच में सुनने की जो व्यवस्था कर रखी है उसके अनुसार 43 तीन सैनिक मर गए। इसकी पुष्टि अभी तक नहीं हुई है। पर भारतीय एजेंसियों ने सुना। मुझे उससे भी कोई दिक्कत नहीं है। यह खबर सबसे पहले एएनआई को कैसे मिली? क्या सरकारी एजेंसियां नहीं हैं? क्या स्वायत्त एजेंसियों को प्राथमिकता नहीं दी जानी चाहिए। भारतीय सैनिकों के मारे जाने की खबर और चीनी सैनिकों के मारे जाने की खबर - दोनों सबसे पहले एएनआई को क्यों मिल रही है या दी जा रही है। सरकारी और स्वायत्त एजेंसियां नालायक हैं तो उनकी खबर कौन लेगा? ठीक करने की जिम्मेदारी किसकी है। सब कुछ किचन कैबिनेट ही करेगा?
इसका एक मतलब यह भी है कि मरने वालों की सूचना यानी इस खबर को रोकना संभव नहीं हुआ तो भरोसे की एजेंसी को दी गई और लोगों में नाराजगी न फैले या यह बताने के लिए कि नुकसान सिर्फ हमारा नहीं है उनके ज्यादा मरे हैं, चीन के ज्यादा सैनिकों के मरने की खबर प्लांट की गई और यह सब सामान्य रिपोर्टिंग नहीं है और फिर इसे बिहार रेजीमेंट की बहादुरी के रूप में पेश किया जाना। बाकायदा आपदा में अवसर का मामला है। फिर भी अगर बाकी सब में बेनीफिट ऑफ डाउट दिया भी जा सकता है तो विशुद्ध सरकारी खबर जो इंटरसेप्ट से मिली वह एएनआई को क्यों दी गई? इंटरसेप्ट सरकारी है और सरकारी फायदे के लिए होना चाहिए। और चूंकि चीनी सैनिकों के मरने की पुष्टि नहीं हुई है तो क्या इसे एएनआई के जरिए प्लांटेशन नहीं माना जाए? सरकारी फायदा तो तभी होता है।