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सुरेश गांधी
ओडिशा के बालासोर में बहनागा बाजार स्टेशन के पास हुआ हादसा दिल दहला देने वाला है. दो जून की मनहूस शाम दो-चार नहीं पूरे 288 से अधिक लोगों को एक झटके में निगल गयी। लेकिन बड़ा सवाल तो यह है कि दो ट्रेनें एक ही समय पर एक ही पटरी पर कैसे आ जाती है? दुसरा बड़ा सवाल यह सिर्फ एक हादसा है या रेल अफसरों व कर्मचारियों की लापरवाही है? या फिर कहीं कोई आतंकी बड़ी साजिश तो नहीं? खास बात यह है कि लापरवाही की भी हद होती है। यहां तो कोरोमंडल एक्सप्रेस और मालगाड़ी की टक्कर तो समझ में आता है, तीन ट्रेनों का एक साथ टक्कर होना घोर लापरवाही नहीं तो और क्या है? बहरहाल, यह तो जांच का विषय है। जहां तक लापरवाही की बात है तो प्रथम दृष्टया मामला मानवीय भूल या तकनीकी खराबी का सामने आ रहा है। और अगर वाकई में यह हादसा मानवीय भूल या तकनीकी खराबी का है तो क्यों न दोषियों के विरुद्ध हत्या का मुकदमा का दर्ज कर कार्रवाई हो?
फिलहाल, कटे शरीर, चिपकी बोगियां, चीखते-चिल्लाते लोग, 3 ट्रेनों की भीषण टक्कर में हादसे की जो तस्वीरें सामने आई हैं वह भयावह हैं, उन्हीं से यह अंदेशा हो गया है कि मृतकों का आंकड़ा तीन सौ पार कर लेगा. पहले 30, फिर 50, 70, 120, 207, 233 से बढ़कर 288 तक पहुंच गई है. घायलों की संख्या भी 900 से ज्यादा है। ट्रेन के डिब्बों के मलबे में अभी भी कई शव फंसे हुए हैं. बचाव अभियान में सेना भी शामिल हो गई है. ट्रेन के डिब्बों में खाने-पीने की चीजें, पानी की बोतलें, चप्पल-जूते आदि बिखरें हुए है. बता दें, ओडिशा के बालासोर में जिस समय कोरोमंडल एक्सप्रेस हादसे का शिकार हुई, उस समय ट्रेन में लोग नाश्ता कर रहे थे. हादसे के बाद मौके पर चीख-पुकार मच गई. हादसेके समय पैसेंजर्स ने ट्रेन से बाहर निकलने की कोशिश की. हादसे के बाद बोगियों के परखच्चे उड़ गए. विंडो की कांच को तोड़कर लोगों को बाहर निकाला गया. हादसे के बाद ट्रेन के आगे की कई मीटर तक पटरी गायब हो गई. बोगियां एक-दूसरे पर चढ़ गईं. एक अधिकारी के अनुसार, ट्रेन के कई डिब्बे पटरी से उतर गए और बगल की पटरियों पर जा गिरे. पटरी से उतरे डिब्बे 12841 शालीमार-चेन्नई सेंट्रल कोरोमंडल एक्सप्रेस से टकरा गए और इसके डिब्बे भी पलट गए. अब तक के जांच में बात सामने आ रही है कि सिग्नल की खराबी की वजह से दो ट्रेनें एक ही पटरी पर आ गई और उन में टक्कर हो गई।
रेलवे विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में प्रचंड गर्मी भी एक बड़ी समस्या है. उनके मुताबिक जब पारा 40 डिग्री के पार जाता है तो पटरियों का विस्तार होता है. जबकि रात में मौसम ठंडा होने से पटरियां सिकुड़ती है. इस विस्तार और संकुचन के कारण रेल की पटरी में दरार आ जाती हैं. यह एक पहला संभावित कारण हो सकता है. जबकि दूसरा बड़ा कारण कवच फेल्योर हो सकता है. भारतीय रेल ट्रैक में उपयोग किया जाने वाला यह एक डिवाइस है, जो एक ट्रेन को निश्चित दूरी पर रुकने में मदद करता है. खासकर जब दूसरी ट्रेन उसी ट्रैक पर आ जाती है तो यह डिवाइस की मदद से स्वतः ऑटोमेटिक ब्रेकिंग सिस्टम लागू हो जाता है और ट्रेन रुक जाती है. शायद यहां ऐसा नहीं हुआ होगा. यह दूसरा बडा कारण हो सकता है. इसके अलावा सिग्नल मे तकनीकी खराबी भी एक वजह हो सकता है. सिग्नल फेल होने से दोनों ट्रेनें एक ही लाइन पर आ सकती हैं. जैसे ही लोको पायलट दूसरी ट्रेन देखता है. वह इमरजेंसी ब्रेक लगाता है. और हाई स्पीड ट्रेन में होने के कारण दुर्घटना हो जाती है. चौथा बडा कारण फिशप्लेट एक प्लेट है, जो दोनों को जोड़ती है. अगर यह फ्री रहती है या फिश प्लेट का खुला रहता है. तो दुघर्टना का कारण बन सकता है. पांचवा बड़ा कारण आतंकी साजिश भी हो सकता हैमश. उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ माओवादी प्रभावित क्षेत्र है. अगर कोई फिशप्लेट खोल देता है तो ट्रेन पटरी से उतर जाएगी और दुर्घटना का कारण बनेगी और संपत्ति का नुकसान होगा. ऐसा गणेश्वरी ट्रेन दुर्घटना में हो चुका है, उसमें 100 लोगों की जानें गई थी...