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'वन नेशन-वन इलेक्शन': संसद में कितनी मुश्किलें? आधे राज्यों से मंजूरी भी जरूरी...
देश में वन नेशन, वन इलेक्शन को लेकर बहस छिड़ी है. केंद्र सरकार ने इसे लेकर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में उच्चस्तरीय कमेटी का गठन भी कर दिया है. कांग्रेस समेत विपक्षी दल इसका विरोध कर रहे हैं. लोकसभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी का नाम भी कमेटी में शामिल था लेकिन अधीर ने इसमें शामिल होने से इनकार कर दिया है.
वन नेशन, वन इलेक्शन को लेकर सरकार, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेताओं और विपक्षी गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस यानी I.N.D.I.A. में शामिल पार्टियों के अपने-अपने तर्क हैं. सरकार ने 18 से 22 सितंबर तक पांच दिन के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाया है. अटकलें हैं कि सरकार इस दौरान संसद में वन नेशन, वन इलेक्शन को लेकर बिल लाएगी.
वन नेशन, वन इलेक्शन के लिए संविधान संशोधन जरूरी होगा. संविधान के अनुच्छेद 83, 172 और 356 के प्रावधानों में संशोधन के बिना लोकसभा और राज्यों का विधानसभा चुनाव एक साथ कराया जाना संभव नहीं है. वरिष्ठ अधिवक्ता और संविधान विशेषज्ञ विकास सिंह का कहना है कि अनुच्छेद 83 और 172 में संशोधन करना होगा जिसमें ये कहा गया है कि सदन का कार्यकाल पांच साल का होगा. इनमें ये भी कहा गया है कि इस अवधि के पहले सदन को भंग करना होगा.
लॉ कमीशन ने 2018 में क्या कहा था
लॉ कमीशन ने 2018 में वन नेशन, वन इलेक्शन को लेकर रिपोर्ट सौंपी थी. लॉ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि वन नेशन, वन इलेक्शन के लिए संविधान संशोधन के साथ-साथ जनप्रतिनिधित्व कानून 1952 में संशोधन और लोकसभा तथा विधानसभा के संचालन से जुड़े रूल ऑफ प्रॉसीजर में भी बदलाव की जरूरत होगी. लॉ कमीशन ने कहा था कि इस तरह के संविधान संशोधन को कम से कम 50 फीसदी राज्यों की विधानसभाओं से अनुमोदित होना चाहिए.
संसदीय मामलों के जानकार अरविंद कुमार सिंह ने कहा कि लॉ कमीशन की रिपोर्ट में आधे राज्यों के समर्थन को जरूरी बताया गया है यानी संसद में भी इसके लिए विशेष बहुमत की जरूरत होगी. सरकार को इससे संबंधित बिल संसद से पारित कराने के लिए संसद के दोनों सदनों में तीन-चौथाई बहुमत की जरूरत होगी. ऐसे में सरकार की राह लोकसभा में भी चुनौतीपूर्ण होगी जहां बीजेपी के पास बहुमत है.
लोकसभा और राज्यसभा में चाहिए होंगे कितने वोट
तीन चौथाई बहुमत की बात करें तो लोकसभा और राज्यसभा, दोनों ही जगह संख्याबल के लिहाज से परिस्थितियां सरकार के अनुकूल नहीं नजर आ रहीं. लोकसभा में इस समय कुल 539 सदस्य हैं. ऐसे में सरकार को वन नेशन, वन इलेक्शन के लिए जरूरी संशोधन के लिए लोकसभा में 404 सदस्यों के समर्थन की जरूरत होगी.
इसी तरह राज्यसभा में अभी 238 सदस्य हैं. राज्यसभा में वर्तमान संख्याबल के लिहाज से तीन चौथाई सदस्यों का आंकड़ा 178 पहुंचता है. एनडीए और I.N.D.I.A. गठबंधन के संख्याबल पर नजर डालें तो सत्ताधारी गठबंधन के लोकसभा में 333 और राज्यसभा में 111 सदस्य हैं. विपक्षी गठबंधन की लोकसभा में करीब 140 सीटें हैं तो वहीं राज्यसभा में ये संख्याबल सौ के करीब पहुंचता है. दिल्ली सेवा बिल पर हुई वोटिंग के आंकड़ें देखें तो राज्यसभा में इस बिल के पक्ष में 132 और विरोध में 102 वोट पड़े थे.
ऐसे में सवाल ये भी उठ रहे हैं कि अगर सरकार इसे लेकर जरूरी संविधान संशोधन के लिए बिल लाती है तो उसे कौन सी पार्टियों से समर्थन की उम्मीद होगी? बहुजन समाज पार्टी, बीजू जनता दल, वाईएसआर कांग्रेस और भारत राष्ट्र समिति जैसी पार्टियां प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सरकार का सहयोग कर संकट मोचक साबित होती रही हैं. ये दल किसी गठबंधन का हिस्सा भी नहीं हैं.
बसपा, बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस, बीआरएस के साथ ही जनता दल (सेक्यूलर), तेलगु देशम पार्टी (टीडीपी), ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम), शिरोमणि अकाली दल और ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) न तो एनडीए में हैं ना ही इंडिया गठबंधन में. इन दलों के लोकसभा में 62 सांसद हैं. अगर सरकार न्यूट्रल पार्टियों को अपने साथ लाने में कामयाब हो जाती है या ये पार्टियां वॉकआउट कर जाएं तो संसद में सरकार की मुश्किलें कम हो सकती हैं.
सरकार को चाहिए 14 राज्यों का समर्थन
संसद के दोनों सदनों के अलावा सरकार को आधे राज्यों का समर्थन भी चाहिए होगा यानी 28 में से 14 राज्य. ताजा तस्वीर पर नजर डालें तो 15 राज्यों में एनडीए की सरकार है. इनमें से पांच राज्य ऐसे हैं जहां सरकार की ड्राइविंग फोर्स क्षेत्रीय दल हैं. महाराष्ट्र में शिवसेना के एकनाथ शिंदे, सिक्किम में एसकेएम के पीएस गोले, नगालैंड में एनडीपीपी के नेफ्यू रियो, मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट के जोरमथंगा, मेघालय में एनपीपी के कोनराड संगमा मुख्यमंत्री हैं. काफी कुछ इन दलों के रुख पर भी निर्भर करेगा.