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पंडित नेहरू की पुण्य तिथि : अटल बिहारी बाजपेयी ने कहा था भारत माता आज शोकमग्ना है, उसका सबसे लाड़ला राजकुमार खो गया है..
डॉ राकेश पाठक
उनके निधन पर यह भी कहा-
◆ मानवता आज खिन्नमना है – उसका पुजारी सो गया।
◆शांति आज अशांत है – उसका रक्षक चला गया।
◆ दलितों का सहारा ,जन जन की आँख का तारा टूट गया।
◆ वे शांति के पुजारी किन्तु क्रांति के अग्रदूत थे
◆ राम जैसे असंभवों के समन्वय की झलक थी उनमें
27 मई 1964 के दिन जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु हो गयी थी। भारतीय जनसंघ के नौजवान नेता ,अटल बिहारी वाजपेयी ने 29 मई, 1964 को संसद में उन्हें श्रद्धांजलि दी . यह भाषण संसद के रिकार्ड का हिस्सा है .राज्यसभा की २९ मई १९६४ की कार्यवाही में छपा है ।
प्रस्तुत है अटलबिहारी वाजपेयी के उस भाषण के कुछ अंश...
महोदय,
एक सपना था जो अधूरा रह गया, एक गीत था जो गूँगा हो गया, एक लौ थी जो अनन्त में विलीन हो गई। सपना था एक ऐसे संसार का जो भय और भूख से रहित होगा, गीत था एक ऐसे महाकाव्य का जिसमें गीता की गूँज और गुलाब की गंध थी। लौ थी एक ऐसे दीपक की जो रात भर जलता रहा, हर अँधेरे से लड़ता रहा और हमें रास्ता दिखाकर, एक प्रभात में निर्वाण को प्राप्त हो गया।
मृत्यु ध्रुव है, शरीर नश्वर है। कल कंचन की जिस काया को हम चंदन की चिता पर चढ़ा कर आए, उसका नाश निश्चित था। लेकिन क्या यह ज़रूरी था कि मौत इतनी चोरी छिपे आती? जब संगी-साथी सोए पड़े थे, जब पहरेदार बेखबर थे, हमारे जीवन की एक अमूल्य निधि लुट गई।
भारत माता आज शोकमग्ना है – उसका सबसे लाड़ला राजकुमार खो गया। मानवता आज खिन्नमना है – उसका पुजारी सो गया। शांति आज अशांत है – उसका रक्षक चला गया। दलितों का सहारा छूट गया। जन जन की आँख का तारा टूट गया। यवनिका पात हो गया। विश्व के रंगमंच का प्रमुख अभिनेता अपना अंतिम अभिनय दिखाकर अन्तर्ध्यान हो गया।
महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में भगवान राम के सम्बंध में कहा है कि वे असंभवों के समन्वय थे। पंडितजी के जीवन में महाकवि के उसी कथन की एक झलक दिखाई देती है। वह शांति के पुजारी, किन्तु क्रान्ति के अग्रदूत थे।
( भाषण बहुत विस्तृत था।यह शुरुआती अंश हैं।)