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नागरिकता संसोधन कानून को लेकर अफवाहों पर ध्यान ने दें, पढ़ें अपने सभी 9प्रश्नों का उत्तर!
प्रश्न 1 – पाकिस्तान में बलूचियों, अहिल्याओं और म्यांमार में रोहिंग्याओं को इस कानून के अंतर्गत रियायत नहीं दी जानी चाहिए ?
उत्तर- नागरिकता अधिनियम-1955 के तहत नागरिक संशोधन कानून किसी भी देश के किसी भी नागरिक को भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने से नहीं रोकता है। बलूच, अहमदिया और रोहिंग्या कभी भी भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं बशर्ते वो नागरिकता अधिनियम-1955 से संबंधित वर्गों में प्रदत्त योग्यता को पूरा करें
प्रश्न 2 – पाकिस्तन, बांग्लादेश और अफगानिस्तान, इन तीन देशों से आने वाले हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई शरणार्थियों को इससे कैसे फायदा होगा?
उत्तर- यदि इन तीन देशों से आए शरणार्थियों के पास पासपोर्ट, वीजा जैसे दस्तावेजों का अभाव है और वहां उनका उत्पीड़न हुआ हो तो वह भी भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं। नागरिकता संशोधन कानून ऐसे लोगों को नागरिकता का अधिकार देता है।
इसके अलावा ऐसे लोगों को जटिल प्रक्रिया से मुक्ति मिलेगी और जल्द भारत की नागरिकता मिलेगी। इसके लिए भारत में एक से लेकर 6 साल तक की रिहाइश की जरूरत होगी। हालांकि अन्य लोगों के लिए भारतीय नागरिकता हासिल करने के लिए 11 साल भारत में रहना जरूरी है।
प्रश्न 3 – क्या शरणार्थियों की देखभाल के लिए 'संयुक्त राष्ट्र' के तहत भारत का दायित्व नहीं है ?
उत्तर- हां, यह शरणार्थियों की देखभाल करता है और भारत इस कानून के तहत अन्य शरणार्थियों को दूर नहीं भेज रहा है। भारत सहित प्रत्येक देश के प्राकृतिकीकरण के अपने नियम हैं। भारत में दो लाख से अधिक श्रीलंकाई तमिल और तिब्बती और पंद्रह हजार से अधिक अफगानी, 20-25 हजार रोहिंग्या और विदेशों से सैकड़ों अन्य शरणार्थी वर्तमान में भारत में रह रहे हैं।
यह उम्मीद की जाती है कि किसी दिन जब वहां की स्थिति में सुधार होगा तो यह शरणार्थी अपने घर वापस लौट जाएंगे। लेकिन इन 3 देशों के हिंदुओं के मामले में , यह कानून इस वास्तविकता को स्वीकार करता है कि इन 3 देशों में उत्पीड़न का माहौल कभी नहीं सुधरने वाला है ।
प्रश्न 4- क्या इन तीन देशों से गैर-कानूनी रूप से भारत आए मुस्लिम अप्रवासियों को नागरिक संशोधन के अंतर्गत वापस भेजा जाएगा?
उत्तर- नहीं। नागरिक संशोधन कानून का किसी भी विदेशी को भारत से बाहर भेजने से कोई लेना-देना नहीं है। किसी भी विदेशी नागरिक को देश से बाहर भेजने, चाहे वह किसी भी धर्म या देश का हो, की प्रक्रिया फॉरनर्स ऐक्ट 1946 और /अथवा पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) ऐक्ट 1920 के तहत की जाती है।
ये दोनों कानून, सभी विदेशियों- चाहे वे किसी भी देश अथवा धर्म के हों, देश में प्रवेश करने, रिहाइश, भारत में घूमने-फिरने और देश से बाहर जाने की प्रक्रिया को देखते हैं।
इसलिए सामान्य निर्वासन प्रक्रिया सिर्फ गैरकानूनी रूप से भारत में रह रहे विदेशियों पर लागू होगी। यह पूरी तरह सोच-समझ कर बनाई गई कानूनी प्रक्रिया है जो स्थानीय पुलिस अथवा प्रशासनिक प्राधिकारियों द्वारा गैरकानूनी रूप से रह रहे विदेशी नागरिकों की पहचान करने के लिए की गई जांच के बाद तैयार की गई है।
इस बात का ध्यान रखा गया है कि ऐसे गैरकानूनी विदेशी को उसके देश के दूतावास/उच्चायोग ने उचित यात्रा दस्तावेज दिए गए हों ताकि जब उन्हें डिपोर्ट किया जाए तो उनके देश के अधिकारियों द्वारा उन्हें सही प्रकार से रिसीव किया जा सके।
असल में, ऐसे लोगों को देश से बाहर भेजने की प्रक्रिया तभी शुरू होगी जब कोई व्यक्ति को द फॉरनर्स ऐक्ट, 1946 के तहत 'विदेशी' साबित हो जाएगा। इसलिए पूरी प्रक्रिया में स्वचालित, मशीनी या भेदभावपूर्ण नहीं है।
राज्य सरकारों और उनके जिला प्रशासन के पास फॉरनर्स ऐक्ट के सेक्शन 3 और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) ऐक्ट 1920 के सेक्शन 5 के तहत केंद्र सरकार द्वारा प्रदुत्त शक्तियां होती हैं, जिससे वे गैरकानूनी रूप से रह रहे विदेशी की पहचान कर सकता है, हिरासत में रख सकता है और उसके देश भेज सकता है।
प्रश्न 5- क्या नागरिक संशोधन कानून भारतीयों हिंदू, मुस्लिम, किसी को भी प्रभावित करता है ?
नहीं। इसका किसी भी भारतीय नागरिक के साथ किसी भी तरह से कोई लेना-देना नहीं है। भारतीय नागरिक भारत के संविधान द्वारा उन्हें प्रदत्त मौलिक अधिकारों का आनंद लेते हैं। कोई भी राज्य नागरिक संशोधन कानून को निरस्त नहीं कर सकता है। नागरिक संशोधन कानून से संबंधित गलत सूचना देने वाला अभियान चलाया जा रहा है। यह कानून मुस्लिम नागरिकों सहित किसी भी भारतीय नागरिक को प्रभावित नहीं करता है
प्रश्न 6 – श्रीलंका के तमिलों का क्या होगा ?
1964 और 1971 में प्रधानमंत्री स्तरीय करार के बाद भारत ने चार लाख 61 हज़ार तमिल लोगों को भारतीय नागरिकता प्रदान की है। वर्तमान में 95वे हज़ार तमिल लोग तमिलनाडु में रह रहे हैं और केंद्र और राज्य से अनुवृत्ति ले रहे हैं। ये लोग अपनी पात्रता पूर्ण होते ही नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं।
प्रश्न 7- केवल इन तीन देशों की सराहना क्यों? और उपरोक्त अधिसूचित संप्रदाय का केवल धार्मिक उत्पीड़न ही क्यों?
नागरिक संशोधन कानून तीन पड़ोसी देशों में धार्मिक आधार पर हुए उत्पीड़न से संबंधित है जहां संविधान एक विशिष्ट राज्य धर्म के लिए प्रदान करता है। इन तीनों देशों में अन्य धर्मों के अनुयायियों का धार्मिक उत्पीड़न किया गया है। यह कानून एक केंद्रित कानून है जो इन छह अल्पसंख्यक समुदायों के लिए एक विशेष स्थिति में एक उपाय के तौर पर कार्य करेगा ।
प्रश्न 8- क्या इसका मतलब यह है कि इन 3 देशों के मुसलमानों को भारतीय नागरिकता कभी नहीं मिल सकती है?
नहीं, इन तीनों और अन्य सभी देशों के मुसलमान हमेशा भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं यदि वो इसके पात्र हैं। नागरिक संशोधन कानून ने किसी भी देश के किसी भी विदेशी को भारत की नागरिकता लेने से नहीं रोका है बशर्ते कि वह कानून के तहत मौजूदा योग्यता को पूरा करे। पिछले छह वर्षों के दौरान, लगभग 2830 पाकिस्तानी नागरिकों, 912 अफगानी नागरिकों और 172 बांग्लादेशी नागरिकों को भारतीय नागरिकता दी गई है। इनमें से कई लोग इन तीन देशों में बहुसंख्यक समुदाय से हैं। इस तरह के प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्राप्त होती रहती है और यह तब भी जारी रहेगी जब वे पंजीकरण या प्राकृतिककरण के लिए कानून में पहले से दी गई पात्रता शर्तों को पूरा करते हैं। 2014 में दोनों देशों के बीच सीमा समझौते के बाद बांग्लादेश के पचास से अधिक हिस्सों को भारतीय क्षेत्र में शामिल करने के बाद बहुसंख्यक समुदाय के लगभग 14,864 बांग्लादेशी नागरिकों को भी भारतीय नागरिकता प्रदान की गई।
प्रश्न 9- नागरिक संशोधन कानून किस पर लागू होता है ?
यह केवल हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई विदेशियों के लिए प्रासंगिक है, जो पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत में 31.12.2014 तक धार्मिक उत्पीड़न के आधार पर पलायन कर चुके हैं। यह मुसलमानों सहित किसी भी अन्य विदेशी पर लागू नहीं होता है, इन तीन देशों सहित किसी भी देश से भारत में पलायन कर रहे हैं।