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Phoolan Devi Birthday Special : फूलन देवी के नाम से कांप जाती थी लोगों की रूह, जानिए- पूरी कहानी
आज एक ऐसे शख्स की जंयती है, जिसके नाम से ही लोगों की रूह कांप जाती थी, एक बार जब वो बाहर निकलती थी तो लोग घरों में कैद हो जाते थे। हम बात कर रहे हैं बैंडिट क्वीन के नाम से मशहूर दस्यु सुंदरी फूलन देवी की। जिनकी कहानी सुनने के बाद एक बार कुछ लोग बोल उठते हैं कि फूलन देवी ने ऐसे ही बंदूक नहीं उठाया था, तो कुछ लोग फूलन देवी को खूंखार डाकू मानकर उनका विरोध भी करते हैं।
फूलन देवी का जीवन
दस्यु सुंदरी फूलन देवी का जन्म उत्तर प्रदेश के जालौन जिले घूरा का पुरवा गांव में हुआ था। उनका बचपन गरीबी में ही बीता। क्योंकि फूलन के पिता मजदूरी करते थे। कहा जाता है कि फूलन के पास जमीन भी कम थी, जो थी भी उसे उनके चाचा ने हड़प ली थी। इस जमीन को लेकर आए दिन उनके पिता और चाचा में झगड़ा हुआ करता था। इसी विवाद को लेकर 10 वर्ष की उम्र में ही फूलन देवी ने अपने परिवार में ही झगड़ा कर लिया था।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक करीब 11 वर्ष की उम्र में फूलन के परिवार वालों ने उनसे कई साल बड़े व्यक्ति से उनकी शादी कर दी। कुछ साल बाद ही फूलन के पति ने उन्हें छोड़ दिया। जिसके बाद फूलन देवी का डाकुओं से संपर्क हुआ और वो डाकुओं के गैंग में शामिल हो गईं।
बीहड़ में गूंजा दस्यु सुंदरी का नाम
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक फूलन देवी जब डकैत बनीं तो इस दौरान इनके गैंग का मुकाबले दूसरे गैंग से हुआ। इस दौरान फूलन को एक विशेष जाति के गैंग ने किडनैप कर लिया और करीब 20 दिनों तक फूलन देवी का रेप किया। जैसे-तैसे करके फूलन यहां से छूटने में कामयाब रहीं। इसके बाद फूलन देवी के मन में बदले की आग जल उठी। फिर क्या था फूलन देवी ने बेहमई में 20 से अधिक लोगों को गोलियों से छलनीं कर दिया। जिसके बाद से बीहड़ के जंगलों में दस्यु सुंदरी का नाम गूंजने लगा। बता दें कि इस हत्याकांड को बेहमई हत्याकांड के नाम भी जाना जाता है।
फूलन देवी के सरेंडर की पूरी कहानी
5 दिसंबर, 1982 की रात मोटर साइकिल पर सवार दो लोग भिंड के पास बीहड़ों की तरफ़ बढ़ रहे थे. हवा इतनी तेज़ थी कि भिंड के पुलिस अधीक्षक राजेंद्र चतुर्वेदी की कंपकपी छूट रही थी. उन्होंने जींस के ऊपर एक जैकेट पहनी हुई थी, लेकिन वो सोच रहे थे कि उन्हें उसके ऊपर शॉल लपेट कर आना चाहिए था.
मोटर साइकिल पर उनके पीछे बैठे शख़्स का भी ठंड से बुरा हाल था. अचानक उसने उनके कंधे पर हाथ रख कर कहा, 'बाएं मुड़िए.' थोड़ी देर चलने पर उन्हें हाथ में लालटेन हिलाता एक शख़्स दिखाई दिया. वो उन्हें लालटेन से गाइड करता हुआ एक झोपड़ी के पास ले गया. जब वो अपनी मोटरसाइकिल खड़ी कर झोपड़ी में घुसे तो अंदर बात कर रहे लोग चुप हो गए.
साफ़ था कि उन लोगों ने चतुर्वेदी को पहले कभी देखा नहीं था. लेकिन उन्होंने उन्हें दाल, चपाती और भुने हुए भुट्टे खाने को दिए. उनके साथी ने कहा कि उन्हें यहां एक घंटे तक इंतज़ार करना होगा.
वो सफ़र
थोड़ी देर बाद आगे का सफ़र शुरू हुआ. मोटर साइकिल पर उनके पीछे बैठे शख़्स ने कहा, 'कंबल ले लियो महाराज.' कंबल ओढ़कर जब ये दोनों चंबल नदी की ओर जाने के लिए कच्चे रास्ते पर बढ़े तो चतुर्वेदी के लिए मोटर साइकिल पर नियंत्रण रखना मुश्किल हो रहा था रास्ते में इतने गड्ढे थे कि मोटर साइकिल की गति 15 किलोमीटर प्रति घंटे से आगे नहीं बढ़ पा रही थी. वो लोग छह किलोमीटर चले होंगे कि अचानक पीछे बैठे शख़्स ने कहा, 'रोकिए महाराज.'
वहां उन्होंने अपनी मोटर साइकिल छोड़ दी. गाइड ने टॉर्च निकाली और वो उसकी रोशनी में घने पेड़ों के पीछे बढ़ने लगे. अंतत: कई घंटों तक चलने के बाद ये दोनों लोग एक टीले के पास पहुंचे. चतुर्वेदी ये देख कर दंग रह गए कि वहां पहले से ही आग जलाने के लिए लकड़ियाँ रखी हुई थीं. उनके साथी ने उसमें आग लगाई और वो दोनों अपने हाथ सेंकने लगे. राजेंद्र चतुर्वेदी ने अपनी घड़ी की ओर देखा. उस समय रात के ढाई बज रहे थे. थोड़ी देर बाद उन्होंने फिर चलना शुरू किया.
अचानक उन्हें एक आवाज़ सुनाई दी, 'रुको.' एक व्यक्ति ने उनके मुंह पर टॉर्च मारी. तभी उनके साथ वहाँ तक आने वाला गाइड गायब हो गया और दूसरा शख्स उन्हें आगे का रास्ता दिखाने लगा. वो बहुत तेज़ चल रहा था और चतुर्वेदी को उसके साथ चलने में दिक़्क़त हो रही थी. वो लगभग छह किलोमीटर चले होंगे. पौ फटने लगी थी और उन्हें बीहड़ दिखाई देने लगे थे.
फूलन से मुलाक़ात
राजेंद्र चतुर्वेदी याद करते हैं, ''उस जगह का नाम है खेड़न. वो टीले पर चंबल नदी के बिल्कुल किनारे है. पौ फट रही थी. हमारे साथ का आदमी आगे बढ़कर करीब 400 मीटर तक गया. उसने मुझसे कहा कि मैं ऊपर पहुंच कर आपको लाल रुमाल दिखाउंगा. जब आप यहाँ से चलना शुरू करना.''
चतुर्वेदी ने कहा, ''कुछ देर बाद उसका हिलता हुआ लाल रुमाल दिखाई दिया. मैंने धीरे-धीरे चलना शुरू किया. जब मैं टीले के ऊपर पहुंचा तो बबूल के झाड़ के पीछे से एक लंबा शख़्स बाहर निकला. उसकी शक्ल बिल्कुल जीसस क्राइस्ट से मिलती जुलती थी. उसने मान सिंह कह कर अपना परिचय कराया. उसने आगे आकर मेरे पैर छुए और मुझे आगे बढ़ने का इशारा किया.'''
''तभी झाड़ से नीले रंग का बेलबॉटम और नीले ही रंग का कुर्ता पहने हुए एक महिला सामने आईं. उनके कंधे तक के बाल थे जिसे उन्होंने लाल रुमाल से बाँध रखा था. उनके कंधे से राइफ़ल लटक रही थी. उनकी शक्ल नेपाली की तरह लग रही थी. पूरी दुनिया में दस्यु संदरी के नाम से मशहूर फूलन देवी ने मेरे पैर पर पांच सौ एक रुपए रख दिए.''
'इसी वक़्त तुम्हें गोली से उड़ा सकती हूं'
फूलन ने अपने हाथों से उनके लिए चाय बनाई और चाय के साथ उन्हें चूड़ा खाने के लिए दिया. चतुर्वेदी ने बात शुरू की, ''मैं आप के घर होकर आ रहा हूँ.' कब? फूलन ने झटके में पूछा. पिछले महीने, राजेंद्र चतुर्वेदी ने जवाब दिया. मुन्नी मिली? फूलन का सवाल था. राजेंद्र चतुर्वेदी ने जवाब दिया- न सिर्फ़ आपकी बहन मुन्नी बल्कि मैं आपकी मां और पिता से भी मिलकर आ रहा हूँ.
उन्होंने फूलन को पोलोरॉएड कैमरे से ली गई अपनी और उसके परिवार की तस्वीरें दिखाईं. उन्होंने ये भी कहा कि वो उनकी आवाज़ें भी टेप करके लाए हैं. जैसे ही फूलन ने टेप रिकॉर्डर पर अपनी बहन की आवाज़ सुनी, उनका सारा तनाव हवा हो गया.
अचानक फूलन ने पूछा, 'आप मुझसे क्या चाहते हैं?' चतुर्वेदी ने कहा, ''आप को मालूम है मैं यहाँ क्यों आया हूँ. हम चाहते हैं कि आप आत्मसमर्पण कर दें. इतना सुनना था कि फूलन आग बबूला हो गई. चिल्ला कर बोली, ''तुम क्या समझते हो, मैं तुम्हारे कहने भर से हथियार डाल दूँगी. मैं फूलन देवी हूँ. मैं इसी वक़्त तुम्हें गोली से उड़ा सकती हूँ.''
पुलिस अधीक्षक राजेंद्र चतुर्वेदी को लगा कि नियंत्रण उनके हाथ से जा रहा है. फूलन के रौद्र रूप को देखते हुए मान सिंह ने तनाव कम करने की कोशिश की. उसने चतुर्वेदी से कहा, आइए मैं आपको गैंग के दूसरे सदस्यों से मिलवाता हूँ. एक-एक कर मोहन सिंह, गोविंद, मेंहदी हसन, जीवन और मुन्ना को चतुर्वेदी से मिलवाया गया.
बाजरे की रोटियां पकाकर खिलाईं
अचानक फूलन का मूड फिर ठीक हो गया. जब दोपहर हुई तो फूलन ने उनके लिए खाना बनाया. रोटी सेंकते हुए ही उन्होंने पूछा, ''अगर मैं हथियार डालती हूँ तो क्या आप मुझे फाँसी पर चढ़ा दोगे?' चतुर्वेदी ने कहा, ''हम लोग हथियार डालने वालों को फाँसी नहीं देते. अगर आप भागती हैं और पकड़ी जाती हैं तो बात दूसरी है."
फूलन ने उन्हें बाजरे की मोटी-मोटी रोटियाँ, आलू की सब्ज़ी और दाल खाने के लिए दी. चतुर्वेदी ने सोचा कि अगर वो पोलेरॉयड कैमरे से फूलन की तस्वीर खींचे तो शायद उसे अच्छा लगे. उन्होंने तस्वीर खींच कर जब उसे फूलन को दिखाया तो वो चहक कर बोलीं, ''आप तो जादू करियो.''
फूलन ने गैंग के सभी सदस्यों को चिल्ला कर बुला लिया और पोलेरॉयड कैमरे से खींची गई अपनी तस्वीर दिखाने लगीं. चतुर्वेदी वहाँ 12 घंटे रहे. उन्होंने फूलन और उनके साथियों की तस्वीर खींची.
फूलन ने उन्हे अपनी माँ के लिए एक अंगूठी दी थी जिसमें एक पत्थर हकीक लगा हुआ था. चलते-चलते फूलन के दिमाग़ ने फिर पलटी खाई. वो बोलीं, ''इस बात का क्या सबूत है कि आपको मुख्यमंत्री ने ही भेजा है.''
'सर टू डाउन डन'
चतुर्वेदी याद करते हैं, ''मैंने उनसे कहा कि आप मेरे साथ अपना एक आदमी कर दीजिए. मैं उसे ख़ुद मुख्यमंत्री के पास ले जाकर उनसे मिलवाऊंगा. फूलन ने एक व्यक्ति को मेरे साथ लगा दिया.''''शाम को हमने वहाँ से चलना शुरू किया और दो बजे रात को हम भिंड पहुंचे. मैंने तुरंत मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह को फ़ोन मिलाया. वो मेरे फ़ोन का इंतज़ार कर रहे थे. मैंने सिर्फ़ इतना कहा, 'सर टू डाउन डन.''
टू डाउन हमारा कोड वर्ड था. मैंने उनसे कहा, सर मैं सुबह छह बजे ग्वालियर से दिल्ली की फ़्लाइट पकड़ रहा हूँ. मैंने फूलन के उस साथी के लिए भी टिकट ख़रीदा. इंडियन एयरलाइंस के अधिकारियों से अनुरोध किया कि हमें बिज़नेस क्लास में अपग्रेड कर दें. दिल्ली हवाई अड्डे से हम टैक्सी में बैठकर मध्य प्रदेश भवन पहुंचे.
चतुर्वेदी ने बताया, ''वहां मैंने अपने और फूलन के साथी के लिए कमरा बुक करा दिया था. अर्जुन सिंह ने अपनी दाढ़ी तक नहीं बनाई थी. वो अपने कमरे में बैठे चाँदी के गिलास में संतरे का जूस पी रहे थे. मैंने उन्हें पोलोरॉएड कैमरे से खीचीं गई फूलन की तस्वीरें दिखाईं. मैंने कहा उनके एक आदमी मेरे साथ आए हैं और मेरे कमरे में बैठे हुए हैं.''
उन्होंने फ़ौरन उन्हें बुलवा लिया. उन्होंने देखते ही अर्जुन सिंह के पैर छुए. मैंने उन्हीं के सामने उनसे कहा कि अब तो आपको विश्वास हो गया कि मुझे मुख्यमंत्री ने ही भेजा था.'
इंदिरा बोलीं, 'शी इज़ नॉट वेरी गुड लुकिंग'
उसके बाद फूलन के उस आदमी को वापस एक गार्ड के साथ वापस फूलन के पास भिजवाया गया. एक बार अर्जुन सिंह चतुर्वेदी को ले र दिल्ली पहुंचे. उन्होंने राजीव गांधी को संदेश भिजवाया कि उनके पास उनके लिए एक अच्छी ख़बर है.
राजेंद्र चतुर्वेदी को अभी तक याद है, ''हम लोग उनसे मिलने एक, सफ़दरजंग रोड गए थे. राजीव गाँधी ने ये समाचार सुनते ही मेरे कंधे थपथपाए और हमें अंदर के कमरे में ले गए. वहां प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी गुलाबी रिम का पढ़ने का चश्मा पहने बैठी हुई थीं.''
चतुर्वेदी ने कहा, ''मैंने उन्हें देखते ही सेल्यूट किया. अर्जुन सिंह ने उनसे मेरा परिचय कराया और बोले ये आपके लिए कुछ लाए हैं. जैसे ही उन्होंने फूलन के साथ मेरी तस्वीरें देखी, वो बोलीं, 'शी इज़ नॉट वेरी गुड लुकिंग.' फिर वो बोलीं आप आगे बढ़िए. हम आपके साथ हैं.''
पत्नी को भी फूलन से मिलवाने ले गए चतुर्वेदी
इस बीच राजेंद्र चतुर्वेदी की फूलन देवी से कई मुलाक़ातें हुईं. एक बार वो अपनी पत्नी और बच्चों को फूलन देवी से मिलाने ले गए. फूलन देवी अपनी आत्मकथा में लिखती हैं, ''चतुर्वेदी की पत्नी बहुत सुंदर और दयालु थीं. वो मेरे लिए शॉल, कपड़े और कुछ तोहफ़े लेकर आई थीं. वो अपने साथ घर का बना खाना भी लाई थीं. '
मैंने राजेंद्र चतुर्वेदी से पूछा कि अपनी पत्नी को फूलन के सामने ले जाने की वजह क्या थी ? उनका जवाब था, ''फूलन को दिखाना चाहता था कि मैं उन पर किस हद तक विश्वास करता हूँ. बदले में क्या वो भी मुझ पर इतना विश्वास करेंगीं? बहरहाल वो उनसे मिल कर बहुत ख़ुश हुई थीं.''
आत्मसमर्पण से पहले का तनाव
चतुर्वेदी ने फूलन से पूछा, कब समर्पण करने जा रही हैं आप? फूलन का जवाब था, ''छह दिनों के भीतर.'' चतुर्वेदी की नज़र कैलेंडर पर गई. छह दिनों बाद तारीख थी, 12 फ़रवरी 1983.
समर्पण वाले दिन फूलन ने घबराहट में कुछ नहीं खाया और न ही एक गिलास पानी तक पिया. पूरी रात वो एक सेकंड के लिए भी नहीं सो पाईं. अगली सुबह एक डॉक्टर उन्हें देखने आया. फूलन के साथी मान सिंह ने उनसे पूछा, ''फूलन को क्या तकलीफ़ है?' डाक्टर का जवाब था तनाव. इसको वो बर्दाश्त नहीं कर पा रही हैं.
कार में बैठते ही फूलन ने चतुर्वेदी से अपनी राइफ़ल वापस माँगी. चतुर्वेदी ने कहा, नहीं फूलन अपने आप को ठंडा करो. फूलन इतनी परेशान थीं कि उन्होंने चतुर्वेदी के बॉडीगार्ड से उसकी स्टेन गन छीनने की कोशिश की. उसने फूलन को समझाया कि ऐसी हिमाकत दोबारा न करें, नहीं तो चतुर्वेदी और उनकी दोनों की बहुत बदनामी होगी.
फिर मंच पर क्या हुआ
डाक बंगलों के बाथरूम में फूलन ने अपने बालों में कंघी की. अपने माथे पर लाल कपड़ा बांधा और अपने मुंह पर ठंडे पानी के छींटे मारे. पुलिस की ख़ाकी वर्दी पहन कर उसके ऊपर लाल शॉल ओढ़ी.
जब वो बाहर आईं तो पुलिस वालों ने उन्हें उनकी राइफ़ल वापस कर दी. उसमें कोई गोली नहीं थी. लेकिन उनकी गोलियों की बेल्ट में सभी गोलियां सलामत थीं. वो चाहतीं तो एक सेकेंड में अपनी राइफ़ल लोड कर सकती थीं.
तभी राजेंद्र चतुर्वेदी ने अर्जुन सिंह के आगमन की घोषणा की. फूलन मंच पर चढ़ीं उन्होंने अपनी राइफ़ल कंधे से उतार कर अर्जुन सिंह के हवाले कर दी. फिर उन्होंने कारतूसों की बेल्ट उतार कर अर्जुन सिंह के हाथ में पहना दी.
बगल में खड़े एक पुलिस अफ़सर ने फूलन को इशारा किया. उसने अपने दोनों हाथ जोड़ कर माथे के ऊपर उठाया. पहले उसने अर्जुन सिंह को नमस्कार किया और फिर सामने खड़ी भीड़ को. अफ़सर ने फूलन को फूलों का एक हार दिया. फूलन ने वो हार अर्जुन सिंह के गले में पहना दिया.
जब वो ऐसा कर रही थीं तो उस अफ़सर ने उन्हें रोक कर कहा कि हार उन्हें गले में न पहना कर उनके हाथ में दिया जाए. फूलन ने सवाल किया, क्यों? अर्जुन सिंह मुस्कराए और बोले, ''उन्हें गले में हार पहनाने दीजिए.' फिर फूलन ने एक और हार उठाया और मेज़ पर रखे दुर्गा के चित्र के सामने रख दिया.