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चीन के वुहान में फंसे एक भारतीय प्रो आशीष यादव के परिवार की सुनिए दर्दनाक आप-बीती
प्रोफ़ेसर आशीष यादव के अपार्टमेंट से बाहर का नज़ारा मानो थम चुका है. बस ठंडी हवा है जो बह रही है, वरना दूर तक वीरान सड़कों के सिवा उन्हें कुछ दिखाई नहीं देता. बीते दो सप्ताह में उन्हें कई बार हथियारबंद सैनिक अपने अपार्टमेंट के बाहर घूमते दिखे हैं.साथ ही चीन के सरकारी मीडिया के माध्यम से विचलित करने वाली कुछ सूचनाएं मिल रहीं हैं जो उनकी बेचौनी को और बढ़ा रही हैं. जिस 32 मंज़िला अपार्टमेंट में आशीष 'क़ैद' होकर रह गए हैं, उसमें अब सिर्फ़ चार-पाँच चीनी परिवार ही बचे हैं.
उन्हें आशंका है कि उन तक कोई मदद पहुँच भी पाएगी. लेकिन वे जल्द से जल्द चीन के वुहान शहर से निकलना चाहते हैं. 35 वर्षीय आशीष वुहान टेक्सटाइल यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफ़ेसर हैं. वे यूनिवर्सिटी कैंपस में स्थित अपने अपार्टमेंट के दो क़मरे के मकान में 22 जनवरी की रात से बंद हैं. उनके साथ उनकी पत्नी नेहा यादव भी हैं.
उत्तर प्रदेश के एटा ज़िले से वास्ता रखने वाले आशीष यादव बीते 12 वर्षों से विदेश में हैं. अमरीका से उन्होंने फ़िज़िक्स की पढ़ाई की, फिर इटली से पीएचडी की और पाँच साल से चीन में नौकरी कर रहे हैं. वे कहते हैं कि 'ये पहली बार है, जब उन्हें विदेश में डर का अहसास हुआ है.' आशीष एक साल पहले ही वुहान पहुँचे थे. वे लेज़रस्पेट्रोस्कोपी के विशेषज्ञ हैं. पर अब एक ऐसे शहर में फंस गए हैं जो कोरोना नाम के जानलेवा वायरस का सबसे ज़्यादा प्रकोप झेल रहा है और इस बीमारी का केंद्र भी बताया गया है.
संख्या अधिक होने की आशंका
अब तक कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने वाली कोई दवा तैयार नहीं की जा सकी है और आधिकारिक तौर पर इस वायरस से मरने वाले मरीज़ों की संख्या 800 से अधिक हो चुकी है.
ये संख्या 2003 में सार्स वायरस के फ़ैलने हुई मौतों की संख्या को भी पार कर चुकी है. हालांकि आशीष से संपर्क में बने हुए उनके चीनी सहयोगियों को मरने वालों की संख्या इससे कहीं ज़्यादा होने की आशंका है.
आशीष बताते हैं, "जिन चीनी सोशल मीडिया ऐप्स का हम इस्तेमाल करते हैं, उन पर कई ग्रुप्स में मैं शामिल हूँ. चीन के जो लोग मेरे दोस्त हैं, वे कई अलग प्रांतों में रह रहे हैं, उनके अनुसार मरने वालों की संख्या कहीं ज़्यादा हो सकती है. पर यहाँ सूचनाएं नियंत्रित हैं और मीडिया को रिपोर्ट करने की आज़ादी नहीं है. इसलिए ख़बरें नहीं मिलतीं, बल्कि सूचनाएं मिलती हैं जो सरकारी मीडिया जारी करता है."
डेढ लाख सैनिक शहर में उतारे गए
बीबीसी से बातचीत में आशीष ने बताया, "इस भयंकर वायरस के फ़ैलने की पहली सूचना हमें 26 दिसंबर 2019 को मिली थी. सोशल मीडिया पर इसकी चर्चा होने लगी थी. यूनिवर्सिटी प्रशासन ने भी कहा कि सब सतर्क रहें. लेकिन स्थानीय प्रशासन क़रीब तीन हफ़्ते तक स्थिति तो सामान्य बताता रहा."
"इस बीच काफ़ी लोग चीनी नव वर्ष की छुट्टियाँ मनाने के लिए यूनिवर्सिटी छोड़ अपने-अपने प्रांत (घर) चले गए. हमारे अपार्टमेंट के अधिकांश लोग इसी दौरान वुहान से निकल गए थे. यूनिवर्सिटी में जो भारतीय छात्र हैं या नौकरीपेशा लोग हैं, उनमें से भी कुछ लोग निकल गए."
"स्थानीय स्तर पर बताया जाता रहा कि स्थिति नियंत्रण में है और कुछ दिन में सब सामान्य हो जाएगा. इसलिए हम यहाँ बने रहे. लेकिन 21-22 जनवरी की दरमियानी रात को सारा शहर लॉक कर दिया गया. सभी सार्वजनिक सेवाएं बंद कर दी गईं, कह दिया गया कि अब कोई घर से बाहर ना निकले."
"इसके बाद शहर में क़रीब डेढ़ लाख सैनिक उतार दिए गए ताकि वे लोगों को घरों से बाहर निकलने से रोकें. और ये सब बहुत तेज़ी से किया गया. इस वक़्त लोगों में इतना डर है कि अगर सरकार कुछ घंटों की ढील दे दे तो लोग शहर छोड़कर भागने लगेंगे."
'पत्र है पर ज़रिया नहीं'
रविवार सुबह चार सिपाही आशीष के अपार्टमेंट में आए जिन्होंने उनका और उनकी पत्नी नेहा का बुखार जाँचा और बताया कि उनकी बिल्डिंग को जल्द ही सील कर दिया जाएगा, ताकि वहाँ कोई आ ना सके.
पुलिस से मिली इस सूचना ने आशीष को अब और परेशान कर दिया है क्योंकि वे वहाँ से निकलने की सारी कोशिशें कर रहे थे. हालांकि सिपाहियों ने उन्हें एक अच्छी ख़बर भी दी, और वो ये कि उनके यूनिवर्सिटी कैंपस में अब तक कोरोना वायरस से संक्रमित कोई मरीज़ नहीं मिला है.
आशीष के मुताबिक़ स्थानीय प्रशासन से उन्हें अब तक कोई सहायता नहीं मिली है. सभी बाज़ार बंद हैं. गनीमत है कि यूनिवर्सिटी में उनके एक वरिष्ठ सहयोगी ने कुछ दिन पहले उन तक थोड़े चावल पहुँचा दिए थे जो शायद अगले दो दिन में ख़त्म हो जाएंगे.
आशीष दावा करते हैं कि बीजिंग स्थित भारतीय दूतावास ने उन्हें चीन से निकलने का 'आज्ञा-पत्र' तो दे दिया है, पर अपार्टमेंट से निकलकर एयरपोर्ट पहुँचने की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है. उन्होंने बताया, "भारतीय दूतावास ने जिस ड्राइवर का नंबर हमें दिया, उसने हमें एयरपोर्ट ले जाने से साफ़ मना कर दिया."
आशीष कहते हैं कि 'उन्हें उम्मीद थी कि भारत दो विमानों के बाद भी अपने लोगों को चीन से निकालने के लिए कोई विमान भेजेगा', पर इस बारे में भारतीय विदेश मंत्रालय ने अब तक कोई घोषणा नहीं हुई है.
आशीष ने बताया, "भारतीय दूतावास चीनी प्रशासन से या तो बात नहीं कर रहा या वो उनकी सुन नहीं रहे. हमें समझ नहीं आ रहा. पर हॉटलाइन के जो नंबर दिये गए हैं, उन पर जिन लोगों से बात हुई, वे कोई हल नहीं निकाल पा रहे. फ़ोन मिलाने पर वे कहते हैं कि क़मरे में रहें, चिंता ना करें, ज़्यादा चिंता करेंगे तो बीमार हो जाएंगे."
बीजिंग स्थित भारतीय दूतावास ने शनिवार को ख़ूबे प्रांत में फंसे भारतीयों के लिए अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से कुछ हॉटलाइन नंबर जारी किये थे और दावा किया था कि 'वो भारतीय नागरिकों को हर संभव मदद मुहैया कराने की कोशिश कर रहे हैं.'
कोरोना वायरस: कितना ख़तरा?
आशीष वुहान शहर में 43 और ख़ूबे प्रांत में रह रहे क़रीब 90 भारतीयों के बारे में जानते हैं और उनके अनुसार क़रीब 70 अब भी वहीं फंसे हैं.उन्होंने कहा कि 'उनके कुछ दोस्तों को बीते दो-तीन दिन से बुखार और अन्य लक्षण दिखाई दिए हैं. पर ये कोरोना वायरस से संबंधित हैं या नहीं, यहाँ इसकी कोई जाँच या मेडिकल मदद उन तक नहीं पहुँच पाई है.'
चीन के सरकारी मीडिया ने फ़िलहाल ये सूचना दी है कि 14 फ़रवरी को लॉकडाउन में थोड़ी ढील दी जाएगी. हालांकि मौजूदा हालात को देखते हुए यह तारीख़ आगे बढ़ाई भी जा सकती है.
चीन में अब तक क़रीब 35,000 लोगों के कोरोना वायरस से संक्रमित होने की पुष्टि की गई है. इसे देखते हुए चीन सरकार ने वुहान में एक और अस्थायी अस्पताल तैयार कर लिया है जिसमें 1500 मरीज़ों को रखा जा सकता है.
साभार बीबीसी