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राहुल गाँधी ने बुधवार को कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे दिया। इस्तीफ़े के तुरंत बाद ही उन्होंने अपने ट्विटर एकाउंट पर अपना परिचय भी अपडेट कर दिया है और ख़ुद को 'कांग्रेस प्रेसिडेंट' की जगह इंडियन नेशनल कांग्रेस का सदस्य बताया है। बता दें कि राहुल ने इस्तीफ़े की घोषणा के साथ ही खुला ख़त भी लिखा है। ट्विटर और फ़ेसबुक पर पोस्ट किए गए चार पेज़ के इस ख़त में राहुल ने 2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी को मिली हार का ज़िक्र करते हुए लिखा है, 'अध्यक्ष होने के नाते हार के लिए मैं जिम्मेदार हूँ। इसलिये पद से इस्तीफ़ा दे रहा हूँ।' उन्होंने आगे लिखा, 'पार्टी को जहाँ भी मेरी ज़रूरत पड़ेगी मैं मौजूद रहूँगा। राहुल ने कहा कि एक महीने पहले ही नए अध्यक्ष का चुनाव हो जाना चाहिए था।
राहुल ने कहा, 'बिना देर किए नए अध्यक्ष का चुनाव जल्द हो। मैं इस प्रक्रिया में कहीं नहीं हूँ। मैंने पहले ही अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया है। मैं अब पार्टी अध्यक्ष नहीं हूँ। जल्द ही कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक बुलाकर नए अध्यक्ष के बारे में फ़ैसला करना चाहिए।'
राहुल के इस लेटर बम से कांग्रेस में हड़कंप मच गया है। राहुल के मान जाने की आस लगाए बैठे नेताओं के हाथ-पाँव फूल गए हैं।
राहुल ने इशारों ही इशारों में कहा है कि कई मौक़ों पर वह अपनी पार्टी में अलग-थलग पड़ते नज़र आए। राहुल ने कहा, 'हमने एक मज़बूत और गरिमापूर्ण चुनाव लड़ा। हमारा अभियान भारत के सभी लोगों, धर्मों और समुदायों के लिए भाईचारे, सहिष्णुता और सम्मान में से एक था। मैंने व्यक्तिगत रूप से प्रधानमंत्री, आरएसएस और उन सभी संस्थानों से लड़ाई लड़ी है जिन पर उन्होंने क़ब्ज़ा कर रखा है। मैंने संघर्ष किया क्योंकि मैं भारत से प्यार करता हूँ। भारत ने जिन आदर्शों का निर्माण किया था उनकी रक्षा के लिए मैंने संघर्ष किया। कई बार मैं पूरी तरह अकेला खड़ा था और मुझे इस पर गर्व है।'
राहुल के ख़त का यह हिस्सा पार्टी के उन नेताओं पर कटाक्ष है जो दबी ज़ुबान में उनकी नेतृत्व क्षमता और उनकी नीतियों पर सवाल उठाते रहते थे।
राहुल गाँधी जब संघ परिवार के ख़िलाफ़ खुल कर बोलते थे तो पार्टी के कई वरिष्ठ नेता उन्हें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से ऐसा करने से रोकते थे। इस मामले में राहुल गाँधी पार्टी में एकदम अकेले पड़े हुए थे। अपने ख़त में इसका ज़िक्र करके राहुल ने उन नेताओं को चुनौती पेश कर दी है जो उन्हें पीठ पीछे, नौसखिया, अनुभवहीन, राजनीतिक रूप से अपरिपक्व बताते थे।
दो साल पहले हुए पंजाब के विधानसभा चुनाव के दौरान यह चर्चा आम थी कि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने राहुल गाँधी को पंजाब के मामले में दख़लंदाज़ी न करने का अनुरोध किया था। इसी तरह कई और बड़े नेता भी राहुल का फ़ैसला मानने में आनाकानी करते थे। इस्तीफ़ा देकर राहुल गाँधी ने अपनी टाँग खिंचाई करने वाले नेताओं के सामने उनसे बेहतर तरीक़े से पार्टी चलाने की चुनौती पेश की है।
राहुल के इस 'लेटर बम' के बाद कांग्रेस में नया अध्यक्ष चुनने की कवायद तेज़ हो गई है। कांग्रेस सूत्रों ने बताया कि पार्टी के नए अध्यक्ष का फ़ैसला एक सप्ताह में हो जाएगा। कांग्रेस का नया अध्यक्ष कौन होगा। यह यक्ष प्रश्न है। इसका उत्तर भविष्य के गर्भ में है।
कौन होगा अंतरिम अध्यक्ष?
सूत्रों के मुताबिक़, फ़िलहाल कांग्रेस के कोषाध्यक्ष अहमद पटेल या कांग्रेस के वरिष्ठ महासचिव मोतीलाल वोरा पार्टी के अंतरिम अध्यक्ष हो सकते हैं। कांग्रेस संविधान के मुताबिक़, पार्टी में कोषाध्यक्ष ही अध्यक्ष के बाद दूसरा सबसे बड़ा पदाधिकारी होता है। इस नाते अहमद पटेल नए अध्यक्ष के फ़ैसले तक कांग्रेस के अंतरिम अध्यक्ष हो सकते हैं। दस जनपथ के बेहद क़रीब समझे जाने वाले एके एंटनी का नाम भी अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर चल रहा है। अगर वरिष्ठता को आधार बनाया गया तो मोतीलाल वोरा अंतरिम अध्यक्ष होंगे।
वैसे तो कांग्रेस में अध्यक्ष पद के लिए नेताओं की कमी नहीं है। लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में राहुल गाँधी के इस्तीफ़े की पेशकश के बाद से ही कई नाम चर्चा में हैं। कई फ़ॉर्मूलों पर बात हो रही है।
अध्यक्ष पद के लिए पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, एके एंटनी, मोतीलाल वोरा, डॉ. कर्ण सिंह, मल्लिकार्जुन खड़गे, अहमद पटेल, अंबिका सोनी, ग़ुलाम नबी आज़ाद, तरुण गोगोई, वीरप्पा मोईली, ओमन चांडी, सुशील कुमार शिंदे से लेकर मीरा कुमार तक के नाम की चर्चा है। इनके अलावा कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों के नामों की भी अध्यक्ष बनने के लिए चर्चा है। नया अध्यक्ष गाँधी-नेहरू परिवार से नहीं होगा लेकिन उसे परिवार का आशीर्वाद ज़रूर प्राप्त होगा।पिछले एक महीने में कांग्रेस ख़ेमों से अध्यक्ष पद के लिए कई फ़ॉर्मूलों का ख़बरें आई हैं और कई नाम बताए गए हैं। इनके मुताबिक़, कांग्रेस का नया अध्यक्ष पिछड़े या दलित वर्ग से होगा। अगर पार्टी पीएम मोदी के पिछड़े वर्ग की काट के लिए पिछड़े वर्ग का कार्ड खेलती है तो इस सूरत में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का नाम तय माना जा रहा है। क़रीब दो हफ़्ते पहले कांग्रेस के सूत्रों ने अशोक गहलोत का नाम अध्यक्ष पद के लिए तय होने की पुख़्ता ख़बर दी थी। लेकिन बाद में सुशील कुमार शिंदे के नाम पर मोहर लगने को पुख़्ता ख़बर बताया गया। इसके पीछे तर्क दिया गया कि पार्टी अपने पुराने ब्राह्मण, दलित और मुसलिम समुदाय को फिर से हासिल करने के लिए दलित कार्ड खेलना चाहती है। लेकिन अब इस पर भी संदेह जताया जा रहा है।
ऐसा लगता है कि अभी पार्टी में अध्यक्ष पद के लिए कोई नाम तय नहीं हुआ है। एक-एक नाम आगे करके हवा का रुख भांपने की कोशिशें हो रही हैं। दरअसल, अभी तक पार्टी के तमाम नेता यह मान कर चल रहे थे कि पार्टी नेताओं की मान-मनौव्वल के बाद आख़िरकार राहुल गाँधी मान जाएँगे। उन्हें मनाने की पुरज़ोर कोशिशें भी चल रही थीं।
कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने सोमवार को ही राहुल गाँधी से मुलाक़ात करके अध्यक्ष पद पर बने रहने का आग्रह भी किया था। बैठक के बाद अशोक गहलोत ने मीडिया से बातचीत में कहा था कि सबने राहुल जी से आग्रह किया कि वह अध्यक्ष पद पर बने रहें। इस पूरी कसरत के बाद राहुल ने चार पेज का खुला ख़त लिख कर तमाम दिग्गजों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है।
स्पेशल कवरेज न्यूज ने दो हफ़्ते पहले ही अपने पाठकों को बताया था कि राहुल किसी भी सूरत में अध्यक्ष पद पर बने रहने के लिए राज़ी नहीं होंगे और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को इस बात का अंदाज़ा है। इसलिए पार्टी में नए अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई है।
1991 से लेकर 1998 तक कांग्रेस का अध्यक्ष गाँधी-नेहरू परिवार से बाहर का व्यक्ति रहा है। 1991 से 1996 तक पीवी नरसिम्हा राव कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। साल 1996 में उन्हें हटाकर सीताराम केसरी कांग्रेस के अध्यक्ष बने। वह 1998 तक अध्यक्ष रहे। केसरी को हटाकर सोनिया गाँधी कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं और वह दिसंबर 2017 में राहुल गाँधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने तक क़रीब 19 साल अध्यक्ष रहीं।ज़ाहिर है कि कांग्रेस गाँधी-नेहरू परिवार की अगुवाई के बगैर ज़्यादा दिन नहीं चल सकती। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस परिवार के बाहर से बनने वाला कांग्रेस अध्यक्ष अपने पद पर कितने दिन टिक पाएगा और उसके नेतृत्व में पार्टी कितनी मज़बूत हो पाएगी?