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रेल मंत्री का कवच भी नहीं आया काम, लगभग 300 लोगों की चली गई जान
भारतीय रेल के मंत्री अश्वनी वैष्णव ने अभी एक साल पहले एक वीडियो शेयर करते हुए कहा था कि हम एक नई टेक्नोलॉजी लाए है जिसके अनुसार भारत में ट्रेन एक्सीडेंट पर पूरी तरह से रोक लग जाएगी, इस यंत्र का नाम कवच रखा गया। आज कवच ने एक भी ट्रेन में काम नहीं किया और तीन ट्रेन आपस में टकरा गई। भारत के इतिहास में इतनी बड़ी दुर्घटना पहली बार हुई है।
कोरोमंडल एक्सप्रेस हादसे के बाद सबसे बड़ा सवाल LHB और एंटी टेलीस्कोपिक कोचेस के सुरक्षित होने को लेकर इतने बड़े बड़े दावे किए गए, क्या यही है उन दावों की हकीकत? एंटी कोलिजन डिवाइस रक्षा कवच भी सिर्फ रेल मंत्रालय की प्रेस विज्ञप्तियों का हिस्सा बना हुआ है।
पिछले डेढ़- दो दशक से सुरेश प्रभु के हटने के बाद 3-4 साल तक ट्रेनें लेट होती रहीं यात्रा सुरक्षित बनाए जाने के नाम पर रेलवे भले हार्वर्ड- IIM केस स्टडीज का हिस्सा बनता होगा, आम यात्री की किस्मत में सिर्फ असुविधाओं के बीच मरना लिखा है।
अभी तक जो शुरुआती जॉंच हुई है .. उससे पता चल रहा है कि ये रेलगाड़ियों की आमने-सामने (यानी head-on collision) की टक्कर नहीं है। यात्रियों से भरी पहली ट्रेन डी-रेल हुई… उसके डिब्बे पड़ोस वाले ट्रैक पर आ गिरे… जहां पर पहले से एक ट्रेन थी। दोनों में टक्कर हुई। जानमाल का नुकसान होता है !! तभी दूसरी दिशा से आती एक और यात्री ट्रेन इन पहले से क्षतिग्रस्त डिब्बे (बोगियों) से जा भिड़ी…
जिस वजह से ये एक्सीडेंट अब तक #सबसे_भीषण_रेल_हादसा के तौर पर दर्ज हो गया है। सबसे बाद में आने वाली यात्री ट्रेन को एलर्ट क्यों नहीं किया गया?? पहले ही रोका क्यों नहीं गया?? … ये जॉंच का अहम विषय हो सकता है।
बालासोर रेल दुर्घटना के बाद एक ही परिवार के तीन सदस्य सुरक्षित अपने घर लौटे। उन्होंने बताया, "हम खड़गपुर से चेन्नई जा रहे थे। बालासोर के पास ही हमें एक झटका लगा और लोग एक-दूसरे के ऊपर गिरने लगे। हमें समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है, हमें बचने की उम्मीद नहीं थी।"