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राजीव गांधी हत्याकांड केस में उम्रकैद की सजा काट रहे ए जी पेरारिवलन को रिहा करने का आदेश, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक बड़ा फैसला लेते हुए पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी हत्याकांड केस में उम्रकैद की सजा काट रहे ए जी पेरारिवलन को रिहा करने का आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने रिहाई के लिए अनुच्छेद 142 के तहत विशेषाधिकार के तहत फैसला दिया है. इस मामले में दया याचिका राज्यपाल और राष्ट्रपति के बीच लंबित रहने पर शीर्ष अदालत ने बड़ा कदम उठाया है.
शीर्ष अदालत ने कहा कि जब जेल में कम समय की सजा काटने वाले लोगों को रिहा किया जा रहा है, तो केंद्र उसे रिहा करने पर सहमत क्यों नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया उसे लगता है कि राज्यपाल का फैसला गलत और संविधान के खिलाफ है क्योंकि वह राज्य मंत्रिमंडल के परामर्श से बंधे हैं और उनका फैसला संविधान के संघीय ढांचे पर प्रहार करता है। न्यायमूर्ति एलएन राव और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज से कहा कि वह एक सप्ताह में उचित निर्देश प्राप्त करें वरना वह पेरारिवलन की दलील को स्वीकार कर इस अदालत के पहले के फैसले के अनुरूप उसे रिहा कर देगी।
विशेषाधिकार के तहत सुनाया फैसला
शीर्ष अदालत ने पेरारिवलन को रिहा करने के लिए अनुच्छेद 142 के तहत मिले विशेषाधिकार के जरिए आदेश सुनाया है। पेरारिवलन मामले में दया याचिका राज्यपाल और राष्ट्रपति के बीच लंबित रहने पर सुप्रीम कोर्ट ने यह बड़ा कदम उठाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्य कैबिनेट का फैसला राज्यपाल पर बाध्यकारी है और सभी दोषियों की रिहाई का रास्ता खुला हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि "सरकार हमारे आदेश का पालन करे वरना कोर्ट आदेश पारित करेगा क्योंकि सरकार कानून पालन ना करे तो कोर्ट आंखें बंद कर बैठा नहीं रह सकता. हमारी निगाह में कानून से ऊपर कोई नहीं है." सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से यह भी पूछा था कि क्या राज्य के राज्यपाल के पास राज्य मंत्रिमंडल द्वारा भेजी गई सिफारिश को बिना फैसला लिए राष्ट्रपति को भेजने की शक्ति है?
एजी पेरारीवलन पूर्व PM राजीव गांधी की हत्या का दोषी है और उम्रकैद की सजा काट रहा है. पेरारिवलन के वकील ने दलील दी थी कि उसने 36 साल जेल में काट लिए हैं, उसका आचरण सही है और उसे जेल से रिहा किया जाना चाहिए. सितंबर, 2018 में तत्कालीन AIADMK कैबिनेट ने एक प्रस्ताव पारित किया था और पेरारिवलन सहित उम्रकैद की सजायाफ्ता सभी सात दोषियों की समयपूर्व रिहाई का आदेश देने के लिए तत्कालीन राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित को अपनी सिफारिश भेजी थी, लेकिन राज्यपाल के फैसला ना करने पर पेरारिवलन ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.