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इन 6 सवालों के जवाब नहीं आए तो राम के काम और राम भक्तों के नाम पर हमेशा के लिए रह जाएंगे दाग!
चूंकि भगवान ने ही आदमी बनाये हैं और उन आदमियों में भ्रष्टाचार भी भरा है, इसलिए ऐसा लगता है कि भ्रष्टाचार को तो उन्हें भी स्वीकार करना ही पड़ेगा। और चूंकि भगवान ने ही आदमी में भ्रष्टाचार भरा है और साथ ही तर्कशक्ति भी डाली है, इसलिए उनका भक्त होने के नाते भ्रष्टाचार को सदाचार बताने वाले तर्क तो हमें भी झेलने ही पड़ेंगे।
फिर भी कौन नेता चोर है और कौन ईमानदार, कौन रामभक्त हैं और कौन रामद्रोही, कौन राम मंदिर का समर्थक है और कौन विरोधी – इस डिबेट में मुझे नहीं जाना, क्योंकि अभी डिबेट का मुद्दा यह है ही नहीं। अभी तो डिबेट का मुद्दा एक अप्राकृतिक लैंड डील है, उस डील में लगे भ्रष्टाचार के आरोप हैं और यदि पूरे राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को इस विवाद में न भी घसीटा जाए, तो कम से कम जो लोग इस डील के गवाह और मुख्य कर्ता-धर्ता हैं, वे कैसे खुद को पाक-साफ साबित करेंगे– यह है।
इसलिए इस बात के बावजूद कि भगवान श्री राम के प्रति मेरी अगाध आस्था है और मैं केवल राम मंदिर का ही समर्थक नहीं रहा हूं, बल्कि काशी में प्रत्यक्ष मंदिर के ऊपर खड़े मस्जिदनुमा ढांचे को भी मस्जिद मानने से इनकार करता रहा हूँ, इस पूरे ज़मीन विवाद में कई सवाल मुझे अब भी अनुत्तरित दिखाई दे रहे हैं। लेकिन उन्हें समझने से पहले कृपया उपलब्ध तथ्यों और दी जा रही दलीलों के मुताबिक इन बातों को ध्यान में रखें-
1. कुसुम पाठक ने विवादित ज़मीन की रजिस्ट्री 18 मार्च 2021 की शाम 7:10 बजे सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी के नाम दो करोड़ में रुपये में कर दी।
2. विवादित ज़मीन की रजिस्ट्री मौजूदा सर्किल रेट से लगभग एक तिहाई कीमत पर सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी के नाम की गई। दलील यह है कि इसी स्थिर कीमत पर पिछले 10 साल से एग्रीमेंट टू सेल हुए चले आ रहे थे। याद रखिए कि सर्किल रेट के हिसाब से इस ज़मीन की कीमत 5 करोड़ 80 लाख रुपए बताई गई है।
3. कुसुम पाठक से सर्किल रेट से एक तिहाई कीमत पर ज़मीन लिखवाने के पांच मिनट बाद सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी ने शाम 7:15 बजे ज़मीन को राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को सर्किल रेट से तीन गुना अधिक कीमत पर बेच डाली।
4. महज पांच से 10 मिनट के भीतर कुसुम पाठक को सर्किल रेट की एक तिहाई कीमत दिलवाने वाले गवाह और सुल्तान अंसारी व रवि मोहन तिवारी को सर्किल रेट से तीन गुना अधिक कीमत दिलवाने वाले गवाह समान हैं। ये दोनों हैं कथित रूप से परम रामभक्त, ईमानदारी की प्रतिमूर्ति और न्यायप्रिय समाजसेवी अयोध्या के मेयर ऋषिकेश उपाध्याय और तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के ट्रस्टी अनिल मिश्रा।
5. कुल मिलाकर, सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी ने ज़बरदस्त हिंदू-मुस्लिम एकता का परिचय देते हुए, हिंदू-मुस्लिम भाई-भाई को असलियत में चरितार्थ करते हुए, छद्म धर्मनिरपेक्षता पर करारी चोट करते हुए, असली धर्मनिरपेक्षता को मजबूत करते हुए और प्रचंड ईमानदारी का परिचय देते हुए महज पांच मिनट के भीतर खरीद मूल्य से 8 गुना से भी ज़्यादा कीमत वसूलते हुए बिल्कुल व्हाइट में ऑनलाइन बैंकिंग के ज़रिए ज़मीन बेच डाली। उधर पहले बिक्रेता के खाते में 2 करोड़ भेजे। इधर खरीदार राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट से 18.5 करोड़ रुपये पाए। ऐसी ज़बरदस्त ज़मीन डील तो कथित रूप से छद्म धर्मनिरपेक्षता की महानायिका श्रीमती सोनिया गांधी के इकलौते दामाद माननीय श्री रॉबर्ट वाड्रा जी ने भी कभी शायद ही की होगी।
खैर, अब आइए उन सवालों पर, जिन सवालों के जवाब आना ज़रूरी हैं, ताकि राम के काम में और रामभक्तों के नाम में कोई दाग न रह जाए।
1. मान लिया कि 10 साल पहले से ही विवादित ज़मीन का एग्रीमेंट टू सेल हुआ चला आ रहा था, लेकिन कुसुम पाठक क्या इतनी भोली, नासमझ, अनभिज्ञ, मजबूर या डरी हुई थीं कि उन्होंने बिना कोई एप्रिसिएशन क्लेम किये 10 साल पहले कबूल की गई कीमत पर ही ज़मीन बेच डाली? मैंने अपनी अब तक कि जिंदगी में इससे पहले कोई ऐसा केस नहीं सुना था, कि किसी व्यक्ति ने 10 साल पुरानी कीमत पर ज़मीन बेचना स्वीकार कर लिया हो, जबकि उसका सर्किल रेट तीन गुना, बाज़ार मूल्य आठ गुना और अधिग्रहण मूल्य लगभग 12 गुना बढ़ चुका हो।
2. क्या कोई एग्रीमेंट टू सेल कानूनी रूप से इतना बाध्यकारी हो सकता है कि सालों तक बिना कोई अग्रिम भुगतान हुए और बिना रजिस्ट्री हुए कोई बिक्रेता उसके कारण सालों साल कीमत न बढ़ाने को मजबूर हो? यदि हाँ, तो यह एग्रीमेंट टू सेल था या कनपटी पर तनी बंदूक थी? यदि नहीं, तो यह कैसे संभव है कि अब जबकि उस जमीन से सारे कथित विवाद खत्म हो चुके थे, कुसुम पाठक का मालिकाना हक सुरक्षित था, राम मंदिर निर्माण का रास्ता प्रशस्त होने के कारण अयोध्या में ज़मीन के दामों में आग लग चुकी थी, उत्तर प्रदेश में एक संन्यासी के नेतृत्व में रामराज्य भी कायम है और डील में मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम पर बना राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट भी सीधे तौर पर शामिल है, इसके बावजूद कुसुम पाठक ने ज़मीन के लिए एक पैसा ज़्यादा नहीं मांगा, यहां तक कि मौजूदा सर्किल रेट से भी एक तिहाई कीमत पर ज़मीन बेचना कबूल कर लिया?
3. चलिए यदि यह भी मान लें कि कुसुम पाठक डरी हुई थीं या मजबूर थीं या भोली थीं, या नासमझ थीं या उनमें अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता नहीं थीं या इतना भी नहीं पता था कि 10 साल में ज़मीन के दाम कहाँ से कहाँ पहुंच चुके हैं, परंतु उन गवाहों और डील के कर्ता-धर्ताओं को तो सब पता था? वे तो रामभक्त थे। वे तो ईमानदार थे। वे तो न्यायप्रिय थे। और सबसे बड़ी बात कि दोनों रजिस्ट्रियों के गवाह भी वही थे। तो वे लोग जो 5 मिनट के भीतर उस ज़मीन को 18.5 करोड़ में बिकवाने वाले थे, उन लोगों ने क्यों नहीं सुल्तान अंसारी व रवि मोहन तिवारी से कहा कि कुसुम पाठक को आज की कीमत पर भुगतान करो या कम से कम सर्किल रेट पर भुगतान करो? तुम कुसुम पाठक को आज ही के दिन इतनी कम कीमत चुकाकर हमसे 8 गुना ज्यादा कीमत कैसे वसूल सकते हो? अगर तुम इतना बड़ा मुनाफा ले रहे हो तो कुसुम पाठक को उससे कैसे वंचित कर सकते हो?
4. यदि कुसुम पाठक मजबूर, डरपोक, अनभिज्ञ या नासमझ थीं और सुल्तान अंसारी व रवि मोहन तिवारी ने उन्हें मजबूर कर रखा था, डरा रखा था या उनके अनभिज्ञ और नासमझ होने का फायदा उठाना चाहा, तो कमांडिंग हैसियत में होते हुए भी दोनों प्रखर रामभक्तों ने आखिर एक अबला नारी को न्याय दिलाने के बजाय भू माफिया के सामने आत्मसमर्पण कैसे कर दिया? क्यों नहीं वे कुसुम पाठक के साथ खड़े हुए? क्यों नहीं उन्होंने उस एग्रीमेंट टू सेल को रद्द करवाने की प्रक्रिया शुरू कराई? और क्यों नहीं सीधा कुसुम पाठक से ज़मीन खरीदी? बीच में सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी जैसे भू माफिया को बनाए रखने की क्या मजबूरी थी? भू माफिया इसलिए कह रहा हूं कि सरकार से सम्बंधित प्रभावशाली लोगों की जानकारी में उनकी नाक के नीचे उनकी गवाही से उनके हस्ताक्षर से कोई भू माफिया ही किसी ज़मीन को 5 मिनट के भीतर 8 गुना ऊंची कीमत पर बेच सकता है।
5. और यदि कुसुम पाठक के साथ नाइंसाफी नहीं हुई, उन्हें डराकर या मजबूर करके या उनकी अनभिज्ञता या नासमझी का फायदा उठाकर यह डील नहीं की गई, तो क्या उन्हें सफेद में 2 करोड़ देने के अलावा ब्लैक में भी कुछ भुगतान किया गया है या अन्य तरीकों से फायदा पहुंचाया गया है? यदि हां, तो काले धन की विरोधी सरकार से जुड़े महत्वपूर्ण लोगों की नाक के नीचे उनकी गवाही और उनके हस्ताक्षर से काले धन का लेन-देन संभव कैसे हुआ और रजिस्ट्री डिपार्टमेंट की फीस कैसे पचाई जा सकी?
6. यदि कुसुम पाठक के साथ नाइंसाफी नहीं हुई, उन्हें डराकर या मजबूर करके या उनकी अनभिज्ञता या नासमझी का फायदा उठाकर यह डील नहीं की गई, तो क्या इस खेल में पांचों व्यक्ति शामिल हैं– प्रथम बिक्रेता कुसुम पाठक, प्रथम खरीदार सह द्वितीय बिक्रेता सुल्तान अंसारी व रवि मोहन तिवारी, दोनों डीलों के कॉमन गवाह अयोध्या के मेयर ऋषिकेश उपाध्याय व राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के ट्रस्टी अनिल मिश्रा? यदि नहीं, तो यह डील होनी संभव नहीं थी। यदि हाँ, तो इन पांचों लोगों ने ऐसी अप्राकृतिक डील करने के लिए अन्य किन-किन लोगों को भरोसे में लिया था?
आशा है, इन सवालों के जवाब शीघ्रातिशीघ्र आएंगे, अन्यथा राम के काम और रामभक्तों के नाम में यह दाग हमेशा-हमेशा के लिए इतिहास का हिस्सा बन जाएगा, क्योंकि राम जन्मभूमि पर मंदिर बनना और तीर्थ क्षेत्र का विकास होना एक ऐतिहासिक घटना है, जिसका रास्ता कई सदियों के संघर्ष और अनगिनत लोगों के बलिदान के बाद साफ हुआ है। जय श्री राम।
अभिरंजन कुमार, वरिष्ठ पत्रकार