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राहत पैकेज-3: सिर्फ छह घोषणाओं पर अमल तो अन्नदाता की खुशहाली तय
आलोक सिंह
आर्थिक पैकेज की तीसरी किस्त आज अन्नदाताओं के नाम रहा। मुझे पहली नजर में तीसरी किस्त एक मिनी बजट जैसा लगा क्योंकि इसमें किसानों को फौरी राहत के लिए कुछ नहीं था। खैर, इस पर चर्चा कभी बाद में करेंगे लेकिन एक बात तो तय है कि कोरोना संकट ने हुक्मरानों को भी इस बात का अहसास करा दिया है कि बिना कृषि और किसान को शामिल किए पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था का सपना देखना भी मुश्किल है। इसलिए आज पूरा जोर लाखों अन्नदाताओं को बदहाली से निकालकर बुलन्दी तक पहुंचाने में रहा। आज कुल 11 घोषणाएं की गई। मेरा मनना है कि अगर छह पर भी अमल किया गया तो अन्नदाता की खुशहाली तय है।
वैसे आज मुझे थोड़ी निराशा हुई है क्योंकि लॉकडाउन के कारण करीब 1.5 लाख करोड़ रुपये के फल, सब्जी, दूध अन्य खाद्यान्न का नुकसान किसानों को उठाना पड़ा है। ऐसे में नकदी सहायता देना जरूरी था। बहरहाल, मैं खुद एक किसान परिवार से जुड़ा हूं इसलिए अच्छी तरह जानता हूं कि उद्योगपति जैसा कोई भी किसान फ्री का कर्ज, फ्री की जमीन, टैक्स में रियायत और बाद में दिवालिया होकर पूरा कर्ज माफ करना नहीं चाहता। वह तो चाहता है कि उसने जो उपजाया है बस उसका उचित मूल्य मिले।
अब लौटते हैं आज की घोषणाएं, उनके असर के सिलसिलेवार विश्लेषण पर। पहली घोषणा, कृषि इंफ्रा के लिए एक लाख करोड़। इस फंड से देशभर में खाद्य उत्पादों को लेजाने और भंडारण के लिए सप्लाई चेन को बेहतर बनाया जाएगा। इसका क्या फायदा मिलेगा? सप्लाई चेन का फायदा आप पंजाब को देखकर समझ सकते हैं। दूसरी बड़ी घोषणा फूड प्रोसेसिंग का नेटवर्क के लिए 10 हजार करोड़ आवंटन किया जाएगा। मुझे लगता है कि इसके लिए और फंड बढ़ाने की जरूरत है। यह घोषणा बिहार, यूपी जैसे राज्यों की तस्वीर बदलने का काम करेगी।
ऐसा इसलिए कि उत्तर प्रदेश के लिए आम, बिहार में मखाना, जम्मू-कश्मीर में केसर, पूर्वोत्तर के लिए बांस, आंध्र प्रदेश के लिए लाल मिर्च जैसे क्लस्टर बनाने की तैयारी है। इससे अलग भी कल्स्टर बनाया जा सकता है। जैसे बिहार में लीची, हाजीपुर का केला, चावल आदि को लेकर भी कलस्टर बनाया जा सकता है। कलस्टर बनने से उस एरिया के किसानों को उनके फसल का अच्छी कीमत भी मिलेगी और साथ में हजारों लोगों को रोजगार। ऐसे में आज दिल्ली, मुंबई और चेन्नई से लौट रहे मजदूरों की भयावह स्थिति की नौबत फिर नहीं आएगी।
कृषि क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए मछली पालन और कारोबार पर करीब 20 हजार करोड़ का फंड दिया है। इसका भी बड़ा फायदा बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे राज्य उठा सकते हैं जहां से सबसे अधिक मजदूर पलायन करते हैं। बिहार, यूपी में मछली आंध्र प्रदेश से आती है। वह इसके जरिये लाखों लोगों को रोजगार देकर अपना निर्यात भी बढ़ा सकते हैं।
हर्बल खेती पर जोर देने के लिए 4 हजार करोड़ मंजूर किए गए हैं। यह भी किसानों को नकदी खेती के लिए प्रेरित करेगा। उनको अच्छी कीमत मिलेगी जिससे उनकी आय बढ़ेगी। इसके साथ ही टॉप टु टोटल का दायरा बढ़ाकर फल और सब्जियां को शामिल किया गया है। यह कदम भी किसानों को आत्मनिर्भर बनाएगा। ये हुई छह घोषणाएं।
इसके इतर, कृषि उत्पादों की मार्केटिंग, फसलों की सही कीमत के लिए मैकेनिज्म, 1955 के जरूरी कमोडिटी एक्ट में बदलाव, मधुमक्खी पालकों के लिए 500 करोड़ रुपये का फंड, पशुओं के टीकाकरण और पशुपालन इंफ्रा को बेहतर बनाने को करीब 28 हजार करोड़ का फंड देने की बात कही गई है। सुनने में ये सारी घोषणाएं अच्छी लगती हैं। अगर इनपर ईमानदारी से काम हो तो सही मायने में इस देश की 55 फीसदी आबादी की जिंदगी बदलने में देर नहीं लगेगी। अब तो वक्त ही तय करेगा कि ये घोषणाएं सरकारी बाबू की फाइलों में एक टेबल से दूसरी टेबल दौड़ती है या जमीन पर उतरती है।