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नीतीश और नायडू के हाथ में रिमोट, ऐसे में क्या नरेंद्र मोदी क़ो गठबंधन सरकार चला पाना आसान होगा?
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पटना से शिवानंद गिरि
आम चुनाव के परिणाम तमाम अटकलों क़ो गलत साबित करते हुए नरेन्द्र मोदी क़ो गहरा झटका दिया है. मोदी की बीजेपी बहुमत से पीछे रह गई है औऱ कल तक मोदी के खिलाफ मोर्चा खोलने में आगे रहने वाले नीतीश औऱ चंद्र बाबू नायडू के हाथों में रिमोट कण्ट्रोल सौंप दी है. ऐसे में अब सवाल उठता है कि क्या मोदी सहजता से सरकार चला लेंगें.
सरकार बनाने के लिए 272 के आँकड़े चाहिए. लेकिन
बीजेपी को 240 सीटें मिली हैं. एनडीए गठबंधन के खाते में क़रीब 292 सीटें आई हैं और विपक्षी इंडिया गठबंधन को 234 सीटें मिली हैं.
इंडिया गठबंधन के अगुवा रहे जेडीयू अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गठबंधन में उनको उचित सम्मान न मिलने से नाराज हो कर जनवरी में ही पाला बदल लिया था और एनडीए में शामिल हो गए थे. बिहार में एनडीए के साथ सरकार बनाई और लोकसभा चुनाव भी इसी गठबंधन से लड़ा.
जेडीयू ने उम्मीद से अच्छा प्रदर्शन करते हुए बिहार में 12 सीटों पर जीत दर्ज की. बीजेपी के भी खाते में 12 सीटें आईं. एलजेपी (राम विलास) को पांच और जीतनराम मांझी की पार्टी को एक सीट मिली. यानी एनडीए को कुल 30 सीटें मिलीं. एक सीट निर्दलीय पप्पू यादव को पूर्णिया में जीत हासिल हुई है.
इसीतरह आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की तेलगू देशम पार्टी को 16 सीटें मिली हैं. यहां आम चुनावों के साथ विधानसभा चुनाव भी हुए थे, जिसमें टीडीपी ने 175 सदस्यों वाली विधानसभा में 135 सीटें जीतकर भारी बहुमत हासिल किया है. टीडीपी भी एनडीए में शामिल है.
पत्रकार आनंद मिश्रा कहते है कि मोदी क़ो सरकार चलाँव में अधिक चुनौती है. उनका मानना है कि नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू दोनों ही कुछ समय पहले तक केंद्र की मोदी सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोले हुए थे और इसीलिए अब एनडीए गठबंधन में उनकी हैसियत बहुत अहम किरदार वाली हो गई है.
सरकार बनाने के लिए मोदी और बीजेपी के सामने अब इन पुराने सहयोगियों के साथ तालमेल बिठाने की ज़रूरत पड़ेगी.
आनंद मिश्रा कहते हैं, चुनाव परिणाम क़ो देखते हुए नीतीश औऱ नायडू किन्गमेकर की भूमिका में है औऱ मोदीजी बिना इन दोनों के सलाह के कोई भी निर्णय नहीं ले सकते हैं.“
पत्रकार अरुण चौरसिया का मानना है कि सबसे बड़ी चुनौती ये है कि मोदी जी के पिछले दस साल के कार्यकाल में सत्ता में किसी की भागीदारी नहीं थी, सिवाय खुद प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के. अब वो सत्ता में भागीदारी बढ़ाएंगे, लोगों की सुनी जाएगी तो सरकार चल पाएगी. यानी सरकार के गठबंधन धर्म का पालन करेंगे और वाजपेयी मॉडल अपनाएंगे तो ये सरकार चला पाएंगे."