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सुरक्षित बचपन दिवस कैलाश सत्यार्थी के जन्मदिन पर विशेष: बच्चों की खातिर जिनकी सांसों को आराम नहीं है
पूजा पुनेठा
आज नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित बच्चों की आस श्री कैलाश सत्यार्थी का जन्मदिन है। हमलोग इस दिवस को उनके सम्मान में 'सुरक्षित बचपन दिवस' के रूप में मनाते हैं। श्री सत्यार्थी का ना सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया में बच्चों की आज़ादी और उनके बचपन को सुरक्षित करने में महत्वपूर्ण और अविस्मरणीय योगदान है। अपने जीते-जी दुनिया के ग्लोब से बाल मजदूरी को समाप्त करने का सपना देखने वाले श्री सत्यार्थी कोरोना जैसी महामारी के दौर में भी हाथ पर हाथ धर कर नहीं बैठते।
कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया में जो आर्थिक और सामाजिक संकट पैदा किया उसने बाल श्रमिकों की संख्या को कई गुणा ज्यादा बढ़ा दिया। श्री कैलाश सत्यार्थी ने इस विपदा काल में बाल श्रम को समाप्त करने के लिए दुनियाभर के नोबेल पुरस्कार विजेताओं और वैश्विक नेताओं को एकजुट किया और "फेयर शेयर टू इंड चाइल्ड लेबर" अभियान की शुरुआत की। फेयर शेयर टू इंड चाइल्ड लेबर अभियान का उद्देश्य बच्चों के लिए दुनियाभर के संसाधनों, नीतियों और सामाजिक सुरक्षा में उनकी आबादी के हिसाब से हिस्सेदारी की मांग है। गौरतलब है कि फेयर शेयर टू इंड चाइल्ड लेबर अभियान का इतना अधिक महत्व आंका गया कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरस, अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के महानिदेशक गाय राइडर, विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक श्री टेड्रोस घेब्रायसे, स्वीडन के प्रधानमंत्री स्टीफन लोफवेन जैसे नोबेल पुरस्कार विजेताओं और विश्व नेताओं ने इसका पुरजोर समर्थन किया।
श्री सत्यार्थी महामारी से बच्चों को स्थाई सुरक्षा देने के लिए कुछ मजबूत उपायों का प्रयास कर रहे थे। इस सिलसिले में उन्होंने भारत सरकार से स्वास्थ्य देखभाल के अधिकार को मौलिक अधिकार बनाने की अपील की। उन्होंने सरकार को पत्र लिखा कि बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा की जरूरतों की पूर्ति में कोई कमी नहीं रह जाए, इसके लिए पर्याप्त बजटीय आवंटन की व्यवस्था की जाए। श्री सत्यार्थी की इस मांग के महत्व को समझते हुए कई संसद सदस्यों ने भी इसका समर्थन किया।
कोरोना काल में श्री कैलाश सत्यार्थी की नजर चारों ओर थी। उल्लेखनीय है कि महामारी में अनाथ हुए बच्चों की संख्या उजागर करने और उनकी सहायता शुरू करने वाले श्री सत्यार्थी पहले व्यक्ति थे। महामारी में हजारों बच्चों ने अपने माता-पिता या अभिभावकों को खो दिया और वे अनाथ हो गए। श्री सत्यार्थी के संगठनों कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन और बचपन बचाओ आंदोलन ने बच्चों और उनकी देख-रेख करने वालों को तत्काल कानूनी और मानसिक सहायता उपलब्ध कराने के लिए अपना 24 घंटे का हेल्पलाइन नम्बर शुरू किया। साथ ही सरकार से उन्हें आर्थिक सहायता देने की भी मांग की। श्री सत्यार्थी की मांग के बाद ही केंद्र और राज्य सरकारों ने महामारी से अनाथ हुए बच्चों के लिए कई कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा की और उन्हें लागू भी किया।
श्री कैलाश सत्यार्थी चार दशकों से वैश्विक स्तर पर बाल मजदूरी और गुलामी को खत्म करने के लिए अनथक संघर्ष कर रहे हैं। श्री सत्यार्थी बाल अधिकारों के लिए जिस सक्रियता, संवेदनशीलता, तत्परता और करुणा के भाव से काम कर रहे हैं, उसको रेखांकित करने के लिए यूएनओ ने उन्हें अपना एसडीजी (सतत विकास लक्ष्य) एडवोकेट नियुक्त किया है। एसडीजी एडवोकेट के रूप में श्री सत्यार्थी यूएनओ के सतत विकास लक्ष्य को सन् 2030 तक हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे, जिससे बच्चों के अधिकारों को वैश्विक आवाज मिल पाएगी।
कोरोना महामारी के दौरान बच्चों की गुलामी, ट्रैफिकिंग, बाल श्रम, बाल विवाह और डिजिटल चाइल्ड पोर्नोग्राफी में अप्रत्याशित वृद्धि हुई। बचपन बचाओ आंदोलन ने महामारी के दौरान 13,000 से अधिक बच्चों को ट्रैफिकिंग और बाल श्रम से मुक्त कराने का काम किया। दूसरी ओर श्री सत्यार्थी के संगठनों ने देशभर में संकट सहायता केंद्र बनाए, जिसके तहत दो हजार से अधिक कोविड केयर किट्स का वितरण करते हुए 17 राज्यों और 390 जिलों में 90 लाख बच्चों की सुरक्षा को सुनिश्चित किया।
कोरोनाकाल में सभी वर्गों के मजदूर बेरोजगार होने के कारण बड़ी संख्या में अपने गांव लौट गए। ऐसे में दलालों ने उनकी मजबूरी का फायदा उठाकर उनके बच्चों को नौकरी देने का झांसा दिया और नगर-महानगर ले जाकर उनसे बाल श्रम कराने लगे। वक्त की नजाकत को समझते हुए कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन ने ऐसे गरीब और लाचार मजदूर माता-पिताओं और ग्रामीणों को जागरुक करने के लिए ट्रैफिकिंग के संवेदनशील इलाकों में जन जागरुकता अभियान चलाया। गौरतलब है कि इस सघन जन जागरुकता अभियान को मुक्ति कारवां के मुक्त बाल मजदूर युवा नेता चलाते हैं। युवा नेताओं ने गावों में इंटेलीजेंस नेटवर्क भी तैयार किया। जिसके माध्यम से मुक्ति कारवां के युवा नेता इलाके के दलालों पर नजर रखते। जैसे ही दलाल किसी बच्चे को ले जाते, वे फौरन कार्यकर्ताओं को सूचित कर देते। ऐसी सूचनाओं के आधार पर संगठन ने पुलिस और प्रशासन की मदद से रेड एंड रेस्क्यू ऑपरेशन कर हजारों बच्चों को ट्रैफिकिंग और बाल श्रम से मुक्त कराया और दलालों को जेल की हवा खिलाई। ट्रैफिकिंग के खिलाफ एक मजबूत कानून बनाने की भी श्री सत्यार्थी वर्षों से मांग कर रहे हैं। उनकी मांग पर केंद्र सरकार ने एक एंटी ट्रैफिकिंग बिल तैयार किया है, जिसे संसद में पास किया जाना अभी बाकी है।
श्री सत्यार्थी के बच्चों की गुलामी को खत्म करने के निरंतर संघर्ष और प्रयासों को देखते हुए कहा जा सकता है कि वे दिन दूर नहीं जब दुनिया के सभी बच्चे सुरक्षित, स्वस्थ, शिक्षित और आजाद होएंगे। यह हमें नहीं भूलना चाहिए कि बाल मजदूरी को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक मुद्दा और विमर्श का विषय बनाने वाले कोई और नहीं बल्कि श्री कैलाश सत्यार्थी ही हैं।
(पूजा पुनेठा कवयित्री और नाट्यकर्मी है।)