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#UttarakhandDemolitionRow: हल्द्वानी अतिक्रमण की कार्रवाई पर Suprimcourt ने लगाई रोक, तो उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने दिया ये जबाब
#BREAKING: हल्द्वानी अतिक्रमण की कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा डी है। तो उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा- 'जो भी कोर्ट का आदेश होगा, हम पालन करेंगे।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट का जो भी निर्णय होगा हम उसका स्वागत करते है। साथ ही यह जमीन रेलवे की है तो रेलवे को अपना पेपर और आदेश भी कोर्ट में देना होगा। कोर्ट उत्तराखंड सरकार से जो भी जानकारी मांगी जाएगी उसे हम देंगे।
आरोप है कि हल्द्वानी में करीब 4400 हजार परिवार रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण करके रहते हैं. इस मामले में हाईकोर्ट ने दिसंबर 2022 में रेलवे को अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था. इस आदेश के बाद करीब 5 हजार आशियाने पर बुलडोजर चलने का खतरा मंडरा रहा था, लेकिन अब अगली सुनवाई तक इन लोगों को राहत मिल गई है.
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के हल्द्वानी में करीब 50 हजार लोगों को बड़ी राहत दी है. कोर्ट ने हल्द्वानी के बनभूलपुरा इलाके में रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटाने के हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है. कोर्ट ने कहा कि 7 दिन में अतिक्रमण हटाने का फैसला सही नहीं है. सुनवाई के दौरान जस्टिस संजय कौल ने कहा कि इस मामले को मानवीय नजरिए से देखना चाहिए. जस्टिस कौल ने कहा कि मामले में समाधान की जरूरत है.
आरोप है कि हल्द्वानी में करीब 4400 हजार परिवार रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण करके रहते हैं. इस मामले में हाईकोर्ट ने दिसंबर 2022 में रेलवे को अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया था. इस आदेश के बाद करीब 50 हजार लोगों के आशियाने पर बुलडोजर चलने का खतरा मंडरा रहा था, लेकिन अब अगली सुनवाई तक इन लोगों को राहत मिल गई है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बड़ी बातें
- सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में अगली सुनवाई 7 फरवरी को होगी. सुप्रीम कोर्ट ने तब तक के लिए हाईकोर्ट के फैसले पर स्टे लगा दिया. हालांकि, सार्वजनिक परिसर अधिनियम के तहत कार्यवाही जारी रह सकती है. कोर्ट ने नोटिस जारी कर सरकार, रेलवे समेत सभी पक्षों को जवाब दाखिल करने के लिए कहा है.
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 50 हजार लोगों को रातों रात बेघर नहीं किया जा सकता. रेलवे को विकास के साथ साथ इन लोगों के पुनर्वास और अधिकारों के लिए योजना तैयार की जानी चाहिए.
- जस्टिस कौल ने कहा, सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात ये है कि जहां लोगों ने 1947 के बाद नीलामी में जमीन खरीदी है, वहां आप उस परिदृश्य से कैसे निपटेंगे. उन्होंने कहा कि आप निश्चित रूप से लाइन का विस्तार कर सकते हैं. लेकिन वहां जो लोग 40, 50 और 60 सालों से रह रहे हैं, उनके लिए पहले पुनर्वास योजना लानी चाहिए.
- जस्टिस कौल ने कहा कि यह एक मूलभूत मानवीय मुद्दा है. आपका विचार भूमि पर विकास करना है. किसी को निष्पक्ष रूप से इसमें शामिल होना होगा और प्रक्रिया को छोटा करना होगा. कुछ पुनर्वास के हकदार हो सकते हैं. कुछ नहीं हो सकते हैं. इन सबकी जांच करने की जरूरत है. साथ ही आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि आगे कोई अतिक्रमण या आगे का निर्माण न हो.
20 दिसंबर को हाईकोर्ट ने दिया था आदेश
दरअसल, उत्तराखंड हाई कोर्ट ने 20 दिसंबर को रेलवे को निर्देश दिया कि एक हफ्ते का नोटिस देकर भूमि से अवैध अतिक्रमणकारियों को तत्काल हटाया जाए. इस मामले में हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ कांग्रेस विधायक सुमित ह्रदयेश की अगुवाई में वहां के रहने वाले लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. इसके बाद प्रशांत भूषण ने भी एक याचिका दाखिल की. सुप्रीम कोर्ट सभी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई कर रहा है.
4,365 अतिक्रमण पर मंडरा रहा खतरा
क्षेत्र से कुल 4,365 अतिक्रमण हटाए जाने हैं. रेलवे की ओर से 2.2 किलोमीटर लंबी पट्टी पर बने मकानों और अन्य ढांचों को गिराने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई थी. सूत्रों के मुताबिक जिस जगह से अतिक्रमण हटाया जाना है, वहां करीब 20 मस्जिदें, 9 मंदिर और स्कूल हैं.
विरोध में हजारों परिवार
हल्द्वानी में अनधिकृत कॉलोनियों को हटाने के विरोध में हजारों लोग सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन कर रहे हैं. रेलवे की इस जमीन पर अवैध कब्जा हटाने के विरोध में 4 हजार से ज्यादा परिवार हैं. इनमें ज्यादातर मुस्लिम हैं. कई परिवार जो दशकों से इन घरों में रह रहे हैं, वे इस आदेश का कड़ा विरोध कर रहे हैं. इसके साथ ही दुआओं का दौर भी जारी है.
सरकार लेती रही टैक्स- स्थानीय लोग
सुनवाई से पहले इस केस को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं. स्थानीय लोगों का सवाल है कि अगर रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण हुआ तो फिर सरकार हाउस टैक्स, वॉटर टैक्स, बिजली का बिल कैसे लेती रही? अगर रेलवे की जमीन है तो फिर सरकार ने खुद यहां तीन-तीन सरकारी स्कूल और सरकारी अस्पताल कैसे बना दिया? इतना ही नहीं लोगों का कहना है कि सरकारी स्कूल भी गिरेंगे तो बच्चों को अस्थाई रूप से पढ़ाने का प्रशासन सोचता है और हजारों लोग बेघर होकर कहां जाएंगे, ये क्यों नहीं सोचा जाता ? जब सरकार तक को नहीं पता होता कि जमीन रेलवे की है या सरकारी तो फिर सिर्फ जनता क्यों अतिक्रमणकारी है ? इन सवालों का जवाब मिलना बाकी है, लेकिन प्रशासन ने अपनी तैयारी पूरी कर ली है.
2013 में उठा था मुद्दा
2013 में उत्तराखंड हाई कोर्ट में हल्द्वानी में बह रही गोला नदी में अवैध खनन को लेकर एक जनहित याचिका दाखिल की गई थी. गोला नदी हल्द्वानी रेलवे स्टेशन और रेल पटरी के बगल से बहती है. इस याचिका में कहा गया था कि रेलवे की भूमि पर अवैध रूप से बसाई गई गफूर बस्ती के लोग गोला में अवैध खनन करते हैं. इसकी वजह से रेल की पटरीयों को और गोला पुल को खतरा है.
दिसंबर 2022 में आया कोर्ट का फैसला
2017 में रेलवे ने राज्य सरकार के साथ मिलकर क्षेत्र का सर्वे किया गया और 4365 अवैध कब्जेदारों को चिह्नित किया गया. लेकिन इस मामले में हाई कोर्ट में फिर एक रिट पिटिशन दाखिल की गई, जिसमें कहा गया कि क्षेत्र में रेलवे की भूमि पर किए गए अतिक्रमण को हटाने में देरी की जा रही है, जिस पर मार्च 2022 में हाई कोर्ट नैनीताल जिला प्रशासन को रेलवे के साथ मिलकर अतिक्रमण हटाने का प्लान बनाने का निर्देश दिया गया. इसके बाद रेलवे ने HC में अतिक्रमण हटाने के संबंध में एक विस्तृत प्लान दाखिल किया. हाई कोर्ट ने 20 दिसंबर को रेलवे को निर्देश दिया कि एक हफ्ते का नोटिस देकर भूमि से अवैध अतिक्रमणकारियों को तत्काल हटाया जाए.