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कोरोना के रहस्य में उलझे वैज्ञानिक, सातवें दिन मरीज में दिख रहे अजीब बदलाव
कोरोना वायरस को लेकर हर दिन कोई ना कोई नई जानकारी सामने आ रही है. दुनिया भर के डॉक्टर और वैज्ञानिक जितना ज्यादा कोरोना के बारे में जानने की कोशिश कर रहे हैं, उतनी ही कई नई पहेलियां भी सामने आ रही हैं. सिडनी के St Vincent Hospital के रेस्पिरेटरी डिपार्टमेंट के डॉक्टर डेविड डार्ले ने अब कोरोना मरीजों के शरीर में हो रहे कुछ नए और हैरान करने वाले बदलावों के बारे में बताया है जो Covid-19 के मरीजों में सातवें दिन नजर आते हैं.
डॉक्टर डेविड डार्ले ने बताया कि कोरोना के कुछ मरीज पहले हफ्ते के अंत तक स्थिर होने लगते हैं और फिर अचानक इनके शरीर में जलन और सूजन होने लगती है. इंफ्लेमेशन (जलन) के लिए जिम्मेदार प्रोटीन पूरे शरीर में फैलने लगते हैं जिसकी वजह से इन मरीजों के फेफड़ों में दिक्कत शुरू हो जाती है, ब्लड प्रेशर कम होने लगता है और किडनी सहित दूसरे अंग भी धीरे-धीरे काम करना बंद कर देते हैं. पूरे शरीर में खून के थक्के बनने लगते हैं. वहीं कुछ मरीजों का ब्रेन डैमेज भी हो जाता है.'
डॉक्टर डार्ले ने कहा, 'जो लक्षण सामने आ रहे हैं वो इस बात पर भी निर्भर करते हैं कि यह बीमारी अपने किस चरण में है हालांकि यह जरूरी नहीं कि कोरोना का हर मरीज इन सभी चरणों से गुजरे. कुछ मरीज ही इस बीमारी की सबसे गंभीर अवस्था से गुजरते हैं और उन्हें सांस लेने के लिए सपोर्ट सिस्टम और ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है. इस गंभीर अवस्था में आने वाले ज्यादातर मरीज बुजुर्ग, पुरुष और डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर या दिल की बीमारी वाले होते हैं.
हालांकि यह जानने का कोई तरीका नहीं है कि किस मरीज में सबसे गंभीर लक्षण आ सकते हैं. ऐसे में डार्ले जैसे डॉक्टर्स की उम्मीदें बायोमार्कर पर टिकी हैं. बायोमार्कर खून, शरीर के तरल पदार्थ या ऊतकों के जरिए बीमारी के हर चरण का पता लगाता है. डॉक्टर डार्ले ने कहा, 'इससे डॉक्टरों को यह अनुमान लगाने में मदद मिलेगी कि मरीज किस अवस्था में हैं और अब वो बीमारी के किस चरण में प्रवेश करेगा.'
डॉक्टर डार्ले ने कहा, 'बायोमार्कर से हमें यह पता करने में आसानी होगी कि अस्पताल में किस मरीज को ज्यादा देखभाल की जरूरत है और हालत बिगड़ने की स्थिति में हमारे सभी सिस्टम पहले से तैयार होंगे. अगर बायोमार्कर बताता है कि मरीज में अब संक्रमण का खतरा कम है तो हम पूरे विश्वास के साथ उसे अस्पताल से डिस्चार्ज कर सकते हैं.'
डार्ले का कहना है कि कोरोना से ठीक हुए मरीजों पर डिस्चार्ज होने के बाद एक साल तक नजर रखी जाएगी और नियमित तौर पर उनके टेस्ट कराए जाएंगे ताकि यह पता चल सके कि कोरोना का कोई असर कहीं शरीर में रह तो नहीं गया या शरीर के इम्यून सिस्टम और खून में किसी तरह का बदलाव तो नहीं हो रहा है. डार्ले ने कहा, 'अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि क्या यह वायरस फेफड़ों और रक्त वाहिकाओं को संक्रमित कर रहा है या फिर यह शरीर का इम्यून सिस्टम है जो अनियंत्रित होकर फेफड़ों और रक्त वाहिकाओं को चोट पहुंचा रहा है या फिर ये दोनों ही वजह है.
उन्होंने कहा, 'इस रोगाणु के बारे में अभी तक कुछ साफ नहीं हो सका है. कुछ मरीजों के मस्तिष्क में सूजन दिख रही है तो कुछ के व्यवहार या व्यक्तित्व में बदलाव आ रहा है. वहीं कुछ ऐसी रिपोर्ट आ रही हैं, जिनमें युवा मरीजों को स्ट्रोक हो रहा है. इसके बारे में भी कुछ नहीं कहा जा सकता कि क्या यह वायरस मस्तिष्क में रक्त वाहिकाओं की कोशिकाओं को संक्रमित कर रहा है या रोगी के खून में हुए इंफ्लेमेशन की वजह से थक्का बन रहा है और इस वजह से स्ट्रोक हो रहा है.'
इटली के एक प्रसिद्ध इंटेंसिव केयर स्पेशलिस्ट प्रोफेसर लुसियानो गातिनोनी ने श्वसन रोगों में इस प्रकार के थक्के को 'बेहद असामान्य' बताया है. 40 साल से इंटेंसिव केयर में काम कर रहे 70 साल के लुसियानो का कहना है कि Covid-19 के कुछ मरीजों के फेफड़ों में जो हो रहा है उन्होंने वैसा पहले कभी नहीं देखा.
प्रोफेसर लुसियानो का कहना है कि विशेष रूप से कुछ मरीजों के लक्षण उलझा देने वाले हैं जैसे उनमें ऑक्सीजन की बहुत कमी है लेकिन फेफड़ों को मामूली ही नुकसान पहुंचा है. इस तरह के मरीज वायरल इंफेक्शन की बजाय किसी और बीमारी से ग्रसित लगते हैं. कुछ मरीज वास्तव में बहुत बीमार होते हैं और उनमें ऑक्सीजन की कमी हो रही होती है लेकिन उन्हें यह महसूस ही नहीं होता है कि उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही है.
प्रोफेसर लुसियानो ने Guardian Australia से बातचीत में कहा, 'यह कैसे संभव हो सकता है? मरीजों में ऑक्सीजन का खराब स्तर और स्वस्थ फेफड़े साफ बताते हैं कि यह रक्त धमनियों से जुड़ा मामला है और चूंकि रक्त धमनियां तो पूरे शरीर में हैं, दिमाग और किडनी में भी. इसलिए शायद कोरोना के कुछ मरीजों के कई अंग प्रभावित हो रहे हैं.'प्रोफेसर लुसियानो ने कहा, 'समस्या यह है कि मैकेनिकल वेंटिलेशन श्वसन तंत्र की मांसपेशियों पर असर डाल रहा है. अगर किसी मरीज को सांस लेने में दिक्कत है लेकिन उसके फेफड़े ठीक हैं तो यह वेंटिलेशन कुछ खास मदद नहीं करेगा बल्कि उल्टा मरीज को नुकसान पहुंचा सकता है. उन्होंने कहा कि बहुत कम मरीज इतने गंभीर होते हैं कि उन्हें वेंटिलेशन की जरूरत पड़े. बल्कि यह भी देखा गया है कि वेंटिलेशन के बावजूद जिन मरीजों की मौत हो रही है, उनका ऑक्सीजन स्तर बहुत कम रहता है.