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वरिष्ठ पत्रकार बलवंत तक्षक दिल्ली में 'तिलका मांझी राष्ट्रीय पुरस्कार' से सम्मानित
हरियाणा के वरिष्ठ पत्रकार बलवंत तक्षक को पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए तिलका मांझी राष्ट्रीय सम्मान, 2021 से सम्मानित किया गया है। तक्षक पिछले करीब 40 साल से पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्यरत हैं। तक्षक को यह सम्मान दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में आयोजित समारोह में हरियाणा से राज्यसभा के सदस्य दुष्यंत गौतम ने दिया। समारोह में गांधीवादी विचारक राधा भट्ट और साहित्यकार सरिता चड्ढा विशिष्ठ अतिथि के रूप में मौजूद थीं। यह सम्मान 'स्पेशल कवरेज न्यूज़' की नौवीं वर्षगाठ पर अंग मदद फाउंडेशन द्वारा दिया गया।
तिलका मांझी अपने देश में अंग्रेजों से लड़ने वाले पहले योद्धा थे। वे आदिवासियों के नायक हैं। उनको अंग्रेजों ने घोड़े के पीछे बांध कर कई मील तक घसीटा था। फिर भी उनकी मौत नहीं हुई तो उन्हें पेड़ पर लटका कर फांसी दी गई थी। यह पेड़ अभी तक इस फांसी का है। जिस जगह पर उनको फांसी दी गई थी, बाद में उस इलाके का नाम ही तिलका मांझी पड़ गया। तिलका मांझी के नाम से भागलपुर विश्वविद्यालय को भी जोड़ा गया है।
इससे पहले तक्षक को हरियाणा सर्वश्रेष्ठ पत्रकार सम्मान, बाबू बाल मुकंद गुप्त पत्रकारिता पुरस्कार और छत्रपति अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है। मूल रूप से राजस्थान में अलवर के रहने वाले तक्षक ने चंडीगढ़ में रहते हुए 31 वर्षों के दौरान कई दैनिक अखबारों और टीवी चैनल्स में विभिन्न पदों पर काम किया है।
स्पेशल कवरेज न्यूज के संपादक व वरिष्ठ पत्रकार श्री शिव कुमार मिश्रा ने सभी उपस्थित महानुभावों का स्वागत किया और आश्वस्त किया कि वे देश के अनाम शहीदों के बलिदान को स्मरणीय बनाने हेतु प्रयासरत रहेंगे। समारोह में वरिष्ठ पत्रकार, गांधीवादी प्रसून लतांत ने सभी आगंतुकों का स्वागत किया और अमर शहीद तिलका मांझी के बलिदान पर प्रकाश डाला।
स्पेशल कवरेज न्यूज़ सहायक संपादक अरुण मिश्रा ने सभी सम्मानित अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन किया।
विभिन्न विधाओ, देश-विदेश मे, नि:स्वार्थ भाव, लम्बे समय से उत्कृष्ठ कार्य कर रहे, प्रतिष्ठित लोगों मे, स्टाकहोम स्वीडन मे, भारतीय मूल की मानवाधिकार अधिवक्ता पारुल शर्मा, पूर्णिया (बिहार) के जिलाधिकारी (आईएएस) राहुल कुमार (पुस्तकालय अभियान), एसडीएम बिजनोर (उप्र) मांगेराम चौहान (पर्यावरण), छत्तीसगढ़ बस्तर के कृषक डाॅ राजाराम त्रिपाठी (कृषि एव साहित्य), वरिष्ठ पत्रकार बलवंत तक्षक (पत्रकारिता), शर्मिष्ठा सोलंकी (समाज सेवा), डाॅ अरविंद सिंह (चिकित्सा), दिलीप कुमार निनामा (आदिवासी कल्याण), डाॅ त्रिपुरारि कुमार (शिक्षा और युवा जागृति), आलोक कुमार पाठक (पर्यावरण), मिनी जैन (महिला उद्यम), पांचाली देव वर्मा (कला), तरुण कांति बोस (पत्रकारिता), भूमिका द्विवेदी (साहित्य), ज्ञानेन्द्र रावत (पर्यावरण), हरिओम जिंदल (बाल शिक्षण), कुसुम भट्ट (साहित्य व समाज सेवा), मनीष गुप्ता (विधि एव समाज सेवा), संजीव यादव (शिक्षा और पुस्तकालय), डाॅ संजय चौहान (शिक्षा), कांक्षी अग्रवाल (महिला सशक्तिकरण), शंकर कुमार कर्ण (योग), विजय चंद्र झा (मानवीय विकास), वीना कुमारी (महिला उद्धार), मंजीत सिंह किनवार (अंगिका विकास), अपूर्वा त्रिपाठी आदिवासी विकास तथा उत्तराखंडी कला और संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन के क्षेत्र मे, विगत पांच दशको से क्रमश: कार्य कर रहे रानीखेत (अल्मोड़ा) के मूल निवासी, वर्तमान, दिल्ली मे प्रवासरत चंद्र मोहन पपनैं को देश का प्रतिष्ठित 'तिलका मांझी' राष्ट्रीय सम्मान के तहत शाल ओढा कर, स्मृति चिन्ह व प्रशस्ति पत्र, खचाखच भरे सभागार में, मुख्य अतिथियों द्वारा, तालियों की गडगड़ाहट के मध्य प्रदान कर सम्मानित किया गया।
सम्मान समारोह में मुख्य अतिथि, राज्यसभा सांसद व भाजपा राष्ट्रीय महासचिव दुष्यंत गौतम द्वारा, सम्मान प्राप्त सभी प्रतिष्ठित जनो को बधाई देकर व्यक्त किया गया, जिस महापुरुष के नाम पर सम्मान दिया जा रहा है, उनका योगदान बहुत बड़ा रहा है। व्यक्त किया गया, आज सम्मानित हुए लोग भी, अपने-अपने क्षेत्र में बहुत कुछ कर रहे हैं। आयोजकों द्वारा बहुत बड़ा काम किया गया है। वर्तमान पीढी को, स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों की गाथा बतानी होगी। व्यक्त किया गया, कर्म छोटा बड़ा हो सकता है, जाति नहीं। अंग्रेजो ने हिन्दुस्तान की मजबूत संस्कृति पर ही सबसे पहले आक्रमण किया था। व्यक्त किया गया, संघर्ष करने वालों मे शक्ति ज्यादा होती है, तिलका मांझी उसका उदाहरण था। तिलका मांझी की गाथा व विचारों को आगे बढ़ाना होगा, उसका स्मारक बनेगा। स्मृति को संजोया जायेगा।
मुख्य अतिथि, गांधीवादी विचारक राधा भट्ट द्वारा, सम्मान प्राप्त प्रतिष्ठित जनो के प्रति व्यक्त किया गया, आपका सम्मान कर, हम स्वंय सम्मानित हुए हैं। गौरव महसूस कर रहे हैं। मुख्य अतिथि द्वारा व्यक्त किया गया, आयोजक प्रसून लतांत द्वारा एक गुमनाम व्यक्ति को उभारा गया है। तिलका मांझी की स्मृति है, भाव है, जो हमे चैन नहीं लेने नहीं देता है।
व्यक्त किया गया, आदिवासियों मे बहुत सारे लोग हैं, उनके अंदर जो स्परिट रही है, उसे जिंदा करने की जरूरत है। तिलका मांझी को कौन बनाता है, जो शासको के कष्ट झेल कर भी, माफी नहीं मांगता है। व्यक्त किया गया, कई लोग, आदिवासी क्षेत्रों मे कुछ महिलाओ के लिए अप्रचलित कार्यो के लिए कार्य कर रहे हैं। अप्रचलित कार्यो को करने का साहस सबसे बड़ा है। एक स्परिट से समाज बदलता है। सरकारे बदलती हैं। स्परिट नहीं है तो कुछ नहीं हो सकता है। बाहर निकल कर कुछ करने की जरूरत है। आपने जो रास्ता पकड़ा है, कष्ट पूर्ण है। आपके अंदर एक चींगारी होनी चाहिए, आग होनी चाहिए। यह जो आप कर रहे हैं, तिलका मांझी की स्परिट है।