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देश के वरिष्ठ कवि कुंवर बेचैन का कोरोना से निधन, साहित्य जगत में शोक की लहर
देश के वरिष्ठ कवि गीतकार डॉ. कुंवर बेचैन का गुरुवार को नोएडा के कैलाश हॉस्पीटल में कोरोना से निधन हो गया। उनके निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर है।
हिंदी गीतों का माणिक माने जाने वाले गीत सुमन कुंवर बेचैन जी के निधन की सूचना से मुरादाबाद और सम्भल में भी शोक की लहर दौड़ गई है। कुंवर बेचैन मूल रूप से मुरादाबाद के उमरी गांव के थे। उनकी शिक्षा चंदौसी के एसएम कॉलेज में हुई थी।
मुरादाबाद से उनका विशेष लगाव था। चंदौसी के मेला गणेश चौथ और मुरादाबाद के जिगर मंच और कलेक्ट्रेट मैदान के कवि सम्मेलनों और मुशायरों में वह हर वर्ष आते थे। उनके निधन पर उनकी समकालीन गीतकार डॉ. मधु चतुर्वेदी ने दुख प्रकट किया है। उन्होंने कहा कि कुंवर जी का जाना बहुत दुखद है।
हिंदी गीतों की वाचिक परंपरा के ऐसे हस्ताक्षर के जाने से आये अवकाश को अब भरा नहीं जा सकता। उन्होंने बताया कि 2017 में लंदन के हाउस ऑफ लॉर्ड्स में दो भारतीय गीतकारों का सम्मान हुआ था। मेरा सौभाग्य है कि वह मैं और कुंवर जी थे। उनके साथ अनेक कार्यक्रम और यात्राएं की, जो अब यादों में हैं।
कुंवर बेचैन साहब ने कई विधाओं में साहित्य सृजन किया। मसलन कवितायें भी लिखीं, गजल, गीत और उपन्यास भी लिखे। बेचैन' उनका तख़ल्लुस है असल में उनका नाम डॉ. कुंवर बहादुर सक्सेना है। बेचैन जी गाजियाबाद के एम.एम.एच. महाविद्यालय में हिन्दी विभागाध्यक्ष रहे। आज के दौर में आपका नाम सबसे बड़े गीतकारों और शायरों में शुमार किया जाता था। उनके निधन को साहित्य जगत की एक बडी छति माना जा रहा है। व्यवहार से सहज, वाणी से मृदु इस रचानाकार को सुनना-पढ़ना अपने आप में अनोखा अनुभव है। उनकी रचनाएं सकारात्मकता से ओत-प्रोत हैं।
'पिन बहुत सारे', 'भीतर साँकलः बाहर साँकल', 'उर्वशी हो तुम, झुलसो मत मोरपंख', 'एक दीप चौमुखी, नदी पसीने की', 'दिन दिवंगत हुए', 'ग़ज़ल-संग्रह: शामियाने काँच के', 'महावर इंतज़ारों का', 'रस्सियाँ पानी की', 'पत्थर की बाँसुरी', 'दीवारों पर दस्तक ', 'नाव बनता हुआ काग़ज़', 'आग पर कंदील', जैसे उनके कई और गीत संग्रह हैं, 'नदी तुम रुक क्यों गई', 'शब्दः एक लालटेन', पाँचाली (महाकाव्य) कविता संग्रह हैं।