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18 बच्चों को वीरता पुरस्कार, जानिए- 7 लड़कियों और 11 लड़कों के साहस की कहानी
Arun Mishra
19 Jan 2018 6:06 AM GMT
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राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद 24 जनवरी को इन बच्चों को सम्मानित करेंगे, ये बच्चे गणतंत्र दिवस की परेड में भी हिस्सा लेंगे..
नई दिल्ली : कम उम्र में अपनी हिम्मत, साहस और समझदारी का परिचय देने वाले बच्चों को हर साल रिपब्लिक डे पर राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से नवाजा जाता है। इस साल यह पुरस्कार देश के विभिन्न राज्यों से आए 18 बच्चों को दिया जाएगा, जिसमें सबसे ज्यादा बच्चे नॉर्थ-ईस्ट से हैं। पुरस्कार पाने वालों में 7 लड़कियां और 11 लड़के शामिल हैं। बता दें कि इंडियन काउंसिल फॉर चाइल्ड वेलफेयर ने इस अवॉर्ड की शुरुआत 1957 से की थी। अब तक 680 लड़कों और 283 लड़कियों को इस वीरता अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद 24 जनवरी को इन बच्चों को सम्मानित करेंगे। इसके साथ ही ये बच्चे गणतंत्र दिवस की परेड में भी हिस्सा लेंगे।
श्रेष्ठ पुरस्कार भारत अवॉर्ड यूपी की साढ़े सोलह साल की नाजिया को दिया जाएगा। उन्होंने साहस दिखाते हुए अपने इलाके में चल रहे जुए और नशे के कारोबार को बंद करवा दिय।
वहीं, कर्नाटक की 14 साल की नेत्रावती एम. चव्हाण ने तालाब में डूबते दो बच्चों की जान बचाने के लिए अपनी जान गंवा दी। उन्हें मरणोपरांत गीता चोपड़ा अवॉर्ड से सम्मानित किया जाएगा, जबकि नाले में गिरी बस के साथ डूबते 15 बच्चों की जिंदगी बचाने के लिए पंजाब के करनबीर को संजय चोपड़ा अवॉर्ड दिया जाएगा।
ममता देलाई- ओडिशा का केंद्रापाड़ा की 10 मिनट तक मगरमच्छ से हुई खींचतान और बचा ली दोस्त जान...
ममता के अनुसार- मैं गांव में दोस्त के साथ तालाब पर नहाने गई थी। हम किनारे खड़े थे। इसी वक्त पानी से एक मगरमच्छ बाहर आया और उसकी दोस्त का दायां हाथ जबड़े से पकड़कर उसे पानी में घसीटने लगा। मैंने भी अपनी दोस्त का बायां हाथ पकड़कर उसे खींचने लगी। मैं साथ-साथ चिल्ला भी रही थी। करीब 10 मिनट हो गए थे। हाथ दुखने लगे थे, लेकिन मैंने हार नहीं मानी थी। आखिरकार मगरमच्छ दोस्त का हाथ छोड़कर तालाब में चला गया। ममता ने दोस्त को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया और लोगों को इसकी सूचना दी।
मैं कुछ दोस्तों के साथ साइकिल से स्कूल जा रहा था। रास्ते में बगैर फाटक का रेलवे क्रॉसिंग पड़ता है। वहां एक दोस्त का पैर ट्रैक में फंस गया। वह साइकिल सहित गिर गया। सामने से ट्रेन आ रही थी। सभी दोस्त ट्रैक से भाग गए। पता नहीं कहां से मुझमे हिम्मत आ गई। मैंने उसके ऊपर से साइकिल हटाई, फिर उसका पैर निकाला और उसे एक ओर धक्का दिया। इस दौरान मेरे हाथ में चोट लगने से फैक्चर हो गया।
खुद की ये कहानी साढ़े 12 साल के सेसासटिन विन्सेंट ने बताई, जो अब गांव का हीरो है।
लोकराकपाम राजेश्वरी चनु अब दुनिया में नहीं है, लेकिन लोगों के दिलों में वह अब भी जिंदा है। गांव का बच्चा- बच्चा उसका नाम जानता है। चनु मणिपुर की सबसे बड़ी नदी इंफाल में डूब रही अपनी आंटी और बहन को बचाते हुए डूब गई थी। अंकल सुभाष ने बताया चनु उनकी तीन साल की बेटी और पत्नी राजेश्वरी के साथ गांव का 35 साल पुराना जर्जर पुल पार कर रही थी। तभी बेटी पुल पर बने छेद से नदी में गिर गई। उसे बचाने के लिए पत्नी ने भी छलांग लगा दी। लेकिन दोनों डूबने लगी। वहां नदी करीब 30 फीट गहरी और 167 फीट चौड़ी है। तभी राजेश्वरी ने भी छलांग लगाई और तैरते हुए एक ही साथ से आंटी और बहन को किनारे धकेल दिया। ये दोनों तो बच गई लेकिन राजेश्वरी डूब गई।
18 जांबाज बच्चों में आठ नॉर्थ-ईस्ट के
- नाजिया (उत्तरप्रदेश)
- करनबीर सिंह (पंजाब)
- नेत्रावती एम. चव्हाण (कर्नाटक)
- बेट्श्वाजॉन पेनलांग (मेघालय)
- ममता देलाई (ओडिशा)
- सेबेस्टियन विन्सेंट (केरल)
- लक्ष्मी यादव (छत्तीसगढ़)
- मनशा एन. (नगालैंड)
- एन.शेंगपॉन केनयक (नगालैंड)
- योकनई (नगालैंड)
- चिंगई वांग्सा(नगालैंड)
- समृद्धि सुशील शर्मा (गुजरात)
- जोनुनतुआंगा (मिजोरम)
- पंकज सेमवाल (उत्तराखंड)
- नदाफ एजाज अब्दुल रऊफ (महाराष्ट्र)
- लोकराकपाम राजेश्वरी चानु (मणिपुर)
- एफ.ललछंदामा (मिजोरम)
- पंकज कुमार माहंत (ओडिशा)
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