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सोनिया गांधी को फिर कांग्रेस की कमान, जानिए- अध्यक्ष के रूप में राहुल गांधी का 20 महीने का कैसा रहा सफर
नई दिल्ली : कांग्रेस वर्किंग कमिटी (CWC) की बैठक में आज यानी शनिवार को बड़ा फैसला लिया गया. तमाम अटकलों को दरकिनार करते हुए सोनिया गांधी को कांग्रेस का अंतरिम अध्यक्ष बनाया गया. सीडब्ल्यूसी की बैठक के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए रणदीप सुरजेवाल ने बताया कि बैठक में तीन प्रस्ताव पेश हुए. पहले प्रस्ताव में राहुल गांधी के काम की तारीफ की गई. राहुल गांधी ने पार्टी को शानदार नेतृत्व दिया. उन्होंने व्यापारियों, किसानों, मजदूर, दलित, महिलाओं, आदिवासियों के लिए आवाज उठाई.
वहीं दूसरे प्रस्ताव में राहुल गांधी को अध्यक्ष पद पर बने रहने के लिए कहा गया. लेकिन राहुल गांधी ने बड़ी विनम्रता के साथ इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया गया. जिसके बाद तीसरा प्रस्ताव पेश किया गया. इस प्रस्ताव में सोनिया गांधी को अध्यक्ष बनाने की बात कही गई.
रणदीप सुरजेवाला ने बताया, 'सीडब्ल्यूसी ने यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी से अंतरिम कांग्रेस अध्यक्ष बनने की मांग की, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया. नया पार्टी अध्यक्ष चुने जाने तक सोनिया गांधी पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष रहेंगी.'
अध्यक्ष के रूप में राहुल गांधी का 20 महीने का सफर?
वहीं, राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर उनके करीब 20 महीने के सफर में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनावी जीत के तौर पर बड़ी सफलताएं मिली, लेकिन इस साल के लोकसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार उनकी नाकामी की बड़ी इबारत लिख गया और इसी के साथ पार्टी के मुखिया के तौर पर उनकी पारी का पटाक्षेप भी हो गया.अध्यक्ष रहते हुए गांधी ने पार्टी की कार्य संस्कृति में बदलाव का प्रयास किया. उन्होंने टिकट आवंटन, संगठन की कार्यशैली में पारदर्शिता लाने के लिए कदम उठाया तथा संगठन में चुनाव कराने की परंपरा शुरू की.
तीन हिंदी भाषी राज्यों में जीत से उत्साहित कांग्रेस और गांधी को लगा कि 2019 के चुनाव में केंद्र की सत्ता में भी वापसी होगी, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व भाजपा की बड़ी जीत ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया. साथ ही अपनी परंपरागत अमेठी सीट पर उनकी हार उनके लिए दोहरा झटका लेकर आई. लोकसभा चुनाव में मुख्य विपक्षी पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन की स्थिति यह है कि वह 2014 के अपने 44 सीटों के आंकड़ों में महज कुछ सीटों की बढ़ोतरी कर पाई और उसे 52 सीटें मिली. चुनाव से पहले और चुनाव के दौरान भी कई जानकारों का यह कहना था कि अगर कांग्रेस सीटों का शतक भी लगा लेती है तो वह उसके और पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी लिए सहज स्थिति होगी, हालांकि ऐसा नहीं होता दिख रहा.
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में समूची पार्टी ने प्रचार अभियान प्रधानमंत्री मोदी पर केंद्रित रखा और राफेल विमान सौदे में भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए 'चौकीदार चोर है' का प्रचार अभियान चलाया. जिसके जवाब में मोदी और भाजपा ने 'मैं भी चौकीदार' अभियान शुरू किया. राहुल गांधी ने राफेल मुद्दे के अलावा 'न्यूनतम आय गारंटी' (न्याय) योजना को मास्टरस्ट्रोक के तौर पर पेश किया. पार्टी को उम्मीद थी कि गरीबों को सालाना 72 हजार रुपये देने का उसका वादा भाजपा के राष्ट्रवाद वाले विमर्श की धार को कुंद कर देगा, जबकि हकीकत में ऐसा नहीं हुआ.
जानकारों का मानना है कि कांग्रेस के 'नकारात्मक' प्रचार अभियान के साथ पार्टी अथवा विपक्षी गठबंधन की तरफ से नेतृत्व का स्पष्ट नहीं होना भी भारी पड़ा. पार्टी के प्रचार अभियान की कमान संभालते हुए गांधी प्रधानमंत्री पद अथवा विपक्ष की तरफ से नेतृत्व के सवाल को भी प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से टालते रहे. वह बार बार यही कहते रहे कि जनता मालिक है और उसका फैसला स्वीकार किया जाएगा. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद 25 मई को हुई सीडब्ल्यूसी की बैठक में राहुल गांधी ने पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था. उस वक्त उनके इस्तीफे को अस्वीकार करते हुए सीडब्ल्यूसी ने उन्हें पार्टी में आमूलचूल बदलाव के लिए अधिकृत किया था, हालांकि गांधी अपने रुख पर अड़े रहे और स्पष्ट कर दिया कि न तो वह और न ही गांधी परिवार का कोई दूसरा सदस्य इस जिम्मेदारी को संभालेगा. वैसे, गांधी ने यह भी कहा है कि वह अध्यक्ष नहीं रहते हुए भी पार्टी के लिए सक्रियता से काम करते रहेंगे.