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ये एग्जिट पोल है, पोस्ट पोल सर्वे नही है, जानिए कब कब हुए फेल!
ये एग्जिट पोल है, पोस्ट पोल सर्वे नही है . पोस्ट पोल हमेशा मतदान के अगले दिन या फिर एक-दो दिन बाद होते हैं। इसके माध्यम से वोटर की राय जानने की कोशिश की जाती है। कहा जाता है कि पोस्ट पोल के परिणाम ज्यादा सटीक होते हैं। यह सिर्फ एक कयास है कोई रिजल्ट नही है यह 2004 के लोकसभा चुनाव में भी गलत साबित हुए हैं और 2009 में भी
2004 में ज्यादातर एग्जिट पोल्स में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए सरकार के फिर सत्ता में आने की भविष्यवाणी की गई थी लेकिन नतीजे बिल्कुल उलट आए। एनडीए को 189 सीटें मिलीं और कांग्रेस की अगुआई वाले यूपीए को 222 सीटें मिलीं और डॉक्टर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने.
2009 के लोकसभा चुनाव में आडवाणी के नेतृत्व में जिस वक्त बीजेपी कांग्रेस से लोहा ले रही थी, उस वक्त एग्जिट पोल ने यह तो भांप लिया कि बीजेपी की सरकार नहीं बनेगी, लेकिन सही आंकड़े के करीब कोई नहीं पहुंचा. आलम ये कि एक चैनल के एग्जिट पोल ने सबसे ज्यादा सीटें दी-218, जबकि असल में यूपीए को मिलीं 262 सीटें.
2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान भी एग्जिट पोल्स सही अनुमान लगाने में पूरी तरह नाकाम साबित हुए। सभी एग्जिट पोल्स में बीजेपी+ को जेडीयू-आरजेडी गठबंधन पर बढ़त बताई गई थी लेकिन नतीजे ठीक उलट आए, तमिलनाडु में भी यहीं हुआ, यहां ज्यादातर एग्जिट पोल्स ने यह अनुमान लगाया कि जयललिता की पार्टी AIADMK बुरी तरह हार रही है, लेकिन परिणाम सामने आए तो सभी चौैंक गए। जयललिता की पार्टी आसानी से जीत गयी थी.
2018 में छत्तीसगढ़ ने तो एग्जिट पोल की पोल खोलकर रख दी। वहां इंडिया टुडे को छोड़कर लगभग सभी एजैंसियों ने भाजपा को बहुमत के करीब बताया था। इंडिया टुडे ने अपने अस्पष्ट आकलन के कारण बीच का रास्ता अपनाया था लेकिन उसने भी भाजपा की इतनी खराब स्थिति का अनुमान नहीं लगाया था। लेकिन चुनाव परिणाम इन अनुमानों से बिल्कुल उलट आया। भाजपा को 35 से 50 के बीच सीट देने वाली सर्वेक्षण एजैंसियों के सारे अनुमान धराशायी हो गए।
लेखक गिरीश मालवीय एक पत्रकार और आर्थिक मामलों के जानकर है