जयन्ती पर विशेष: पौरोहित्य की बुराइयों का खात्मा सबसे बडा़ धर्म मानते थे विवेकानंद - ज्ञानेन्द्र रावत
आज वेदांत के प्रकाण्ड विद्वान, आडम्बरों के प्रबल विरोधी और पाश्चात्य विश्व में हिन्दू धर्म की सारगर्भित व्याख्या करने वाले प्रख्यात मनीषी स्वामी विवेकानंद की जयंती है। उन्होंने खुद को न कभी जिज्ञासु की श्रेणी में रखा,न कभी सिद्ध पुरुष माना और न कभी दार्शनिक ही कहा।
उन्होंने सदैव जीवन में चरित्र निर्माण को प्रमुखता दी और सत्य के आलंबन पर बल दिया। उनका मानना था कि परोपकार, विस्तार व प्रेम ही जीवन है। उन्होंने कहा कि सैकडो़ युगों के उद्यम से चरित्र का निर्माण होता है,इसलिए ईश्वर पर भरोसा रखते हुए निस्वार्थ भाव से चारित्रिक दृढ़ता के साथ कर्तव्य पथ पर बढ़ते रहने की उन्होंने प्रेरणा दी। उनका यह दृढ़ मत था कि यदि हम संसार का सबसे बढि़या धर्म चाहते हैं तो हमें प्राचीन धर्म से पौरोहित्य की बुराइयों को उखाड़ फैंकना चाहिए होगा।
उन्होंने सत्य की महत्ता पर बल देते हुए कहा कि सत्य का एक शब्द भी लोप नहीं हो सकता, वह देर सवेर प्रकट होगा ही, इसलिए आगे बढो़, सत्य के मार्ग पर दृढ़ रहो,कोई भी तुम्हारे विरुद्ध कुछ नहीं कर सकेगा वह एक न एक दिन फल अवश्य लायेगा। यही उनके जीवन का संदेश है।
ऐसे मनीषी और विश्व के महान तत्वज्ञ के बताये मार्ग पर चलकर ही समूचे विश्व का कल्याण संभव है। उनका योगदान अविस्मरणीय है। उनकी जयंती पर श्रृद्धा, आदर व सम्मान सहित शत-शत नमन।