राष्ट्रीय

शिक्षक दिवस पर विशेष: कभी बाल मजदूर थे, अब 'गुरुजी' बन कर जगा रहे हैं शिक्षा की अलख

Shiv Kumar Mishra
5 Sep 2021 9:20 AM GMT
शिक्षक दिवस पर विशेष: कभी बाल मजदूर थे, अब गुरुजी बन कर जगा रहे हैं शिक्षा की अलख
x

बाल अधिकार कार्यकर्ता श्री कैलाश सत्‍यार्थी को शिक्षा के क्षेत्र में योगदान देने के लिए भी नोबेल शांति पुरस्‍कार से सम्‍मानित किया गया था। श्री सत्‍यार्थी ने 1 लाख से अधिक बच्‍चों को बाल मजदूरी और ट्रैफिकिंग से मुक्‍त कराकर उन्‍हें पुनर्वास और शिक्षा की सुविधा उपलब्‍ध कराई है। माना जाता है कि जो बच्‍चे स्‍कूल में नहीं होते वे ही बाल मजदूरी कर रहे होते हैं। श्री सत्‍यार्थी ने इस तथ्‍य को बखूबी समझा और बच्‍चों को मजदूरी से मुक्‍त कराकर उनका स्‍कूलों में दाखिला सुनिश्चित किया।

इसके लिए उन्‍होंने विशेष रूप से देश के पांच राज्‍यों में बाल मित्र ग्राम (बीएमजी) जैसे अभिनव कार्यक्रम भी शुरू किए। बीएमजी उन गांवों को कहा जाता है जिनके सभी बच्‍चे बाल मजदूरी से मुक्‍त होते हैं और वे स्‍कूलों में पढ़ रहे होते हैं। साथ ही बच्‍चों में नेतृत्‍व क्षमता के गुण भी विकसित किए जाते हैं। श्री सत्‍यार्थी के संगठन बचाओ बचाओ आंदोलन ने जिन बच्‍चों को बाल मजदूरी से मुक्‍त कराकर शिक्षा की सुविधा उपलब्‍ध कराई, आज उनमें से अधिकांश शिक्षक बन समाज के कमजोर वर्ग और जातियों के बच्‍चों को पढ़ाने का काम कर रहे हैं। ऐसे शिक्षकों के बारे में जानकारी प्राप्‍त कर हम शिक्षक दिवस मनाने को सही मायने में सार्थक कर सकते हैं। आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ शिक्षक के बारे में…

लक्ष्‍मण मास्‍टर

आज से 45 साल पहले लक्ष्‍मण अपने माता-पिता के साथ मध्‍य प्रदेश के हरपालपुर से जीविका की तलाश में फरीदाबाद की पत्‍थर खदानों में पहुंचे। तब लक्ष्‍मण महज छह साल के थे। पिता के साथ मजूरी करने लगे। पिता-पुत्र मिलकर भी रोजाना 20 रुपये नहीं कमा पाते। रूखा-सूखा खाते और वहीं झोंपड़ी में सो जाते। पत्‍थर-खदानों में रोज मौतें हुआ करतीं। कभी पत्‍थर गिरने से, तो कभी ब्‍लास्टिंग से। जुल्‍म, शोषण, अन्‍याय, अत्‍याचार की वहां रोज इबारतें लिखी जातीं।

एक दिन बालक लक्ष्‍मण ने सोचा कि ऐसे कब तक चलेगा? वह कब पढ़ेगा-लिखेगा? यही सोचकर वह पास के एक गुरुकुल में जा पहुंचा। अध्‍यापक से अपनी समस्‍याएं बताई। अध्‍यापक अच्‍छे थे। उन्‍होंने लक्ष्‍मण का दाखिला कक्षा 3 में कर लिया। तब लक्ष्‍मण 11 साल के हो चुके थे। अब लक्ष्‍मण मजूरी भी करते और पढ़ाई भी। बीच में मां की बीमारी और घर की माली हालत खराब होने के कारण उनको अपनी पढ़ाई पर 10वीं के बाद ही ब्रेक लगानी पड़ी। फिर से पत्‍थर खदानों में लक्ष्‍मण मजूरी करने लगे। बाद में 1989 में फरीदाबाद की पत्‍थर खदानों में बचपन बचाओ आंदोलन ने जब अपना अनौपचारिक शिक्षा केंद्र खोला, तब उसमें लक्ष्‍मण को शिक्षक नियुक्‍त कर लिया गया। वहां बाल और बंधुआ मजदूरों के बच्‍चों के लिए बचपन बचाओ आंदोलन ने चार स्‍कूल खोले। यहीं से लक्ष्‍मण लक्ष्‍मण मास्‍टर के रूप में विख्‍यात हुए। लक्ष्‍मण मास्‍टर अपना उदाहरण देते हुए बताते हैं कि शिक्षा वह कुंजी है जिसके जरिए आप सफलता के सभी दरवाजे खोल सकते हैं। आज वे कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन के कैशियर जैसी महत्‍वपूर्ण जिम्‍मेदारी को भी संभाल रहे हैं। उनके बच्चे उच्च शिक्षा हासिल कर रहे हैं। एक बच्चा तो इंजीनियर बन गया है।


मोहम्‍मद छोटू

कटिहार के सि‍कटिया पंचायत के इमामबाड़ा गांव का रहने वाला मोहम्‍मद छोटू 21 साल का है। आज से बारह-तेरह साल पहले वह दिल्ली के चूड़ी उद्योग में चूड़ी बनाने का काम करता था। जहां उसे 18-18 घंटे तक काम करना पड़ता। यदि किसी दिन कोई गलती हो जाती, तो मालिक एक कमरे में ले जाकर उसे बंद करके डीजे में गाना बजाकर पट्टा और बेल्ट से मारता। लेकिन एक दिन ऐसा भी आया जब बचपन बचाओ आंदोलन ने उसे बाल मजदूरी से मुक्ति दिलाई और राजस्‍थान के विराटनगर स्थित बाल आश्रम भेज दिया। जहां रहकर उसने अपनी पढ़ाई पूरी की। बिजली का काम भी वहीं सीखा। बाद में एक इलेक्ट्रिकल की कंपनी में जॉब भी किया। बाल आश्रम मुक्‍त बाल मजदूरों का एक दीर्घकालीन पुनर्वास केंद्र है।

छोटू का कहना है कि गांव में अभी भी लोग शिक्षित नहीं हैं। जागरूक नहीं हैं। कोई किसी चीज के लिए आवाज नहीं उठा पाता। लॉकडाउन ने स्थिति को और खराब कर दिया था। अब जाकर स्कूल खुले हैं। वह भी आधे-अधूरे। गरीब और हाशिए के बच्‍चों के पास न तो पढ़ने-लिखने की कोई सुविधा है और न ही सरकार इसके लिए कोई इंतजाम कर रही है। इसलिए कटिहार में पांच गांवों के 120 बच्चों को वह मुफ्त में पढ़ाने का काम करता है। संगठन की ओर से चलाए जा रहे बाल मजदूरी के खिलाफ मुक्ति कारवां जागरुकता अभियान से जब वह शाम को घर लौटता है तब उन बच्‍चों को पढ़ाता है। छोटू का मानना है कि शिक्षा हमें आत्‍मविश्‍वास से परिपूर्ण करती है। अगर देश के शत-प्रतिशत लोग शिक्षित हो जाएं तो बहुत हद तक सामाजिक बुराइयां दूर हो जाएंगी।


नीरज मुर्मू

गरीब आदिवासी परिवार का बेटा नीरज 10 साल की उम्र से ही परिवार का पेट पालने के लिए अभ्रक खदानों में बाल मजदूरी करने लगा। लेकिन बचपन बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं ने उन्हें जब बाल मजदूरी से मुक्त कराया, तब उनकी दुनिया ही बदल गई। गुलामी से मुक्त होकर नीरज सत्यार्थी आंदोलन के साथ मिलकर बाल मजदूरी के खिलाफ काम करने लगा। अपनी पढ़ाई के दौरान नीरज ने शिक्षा के महत्व को समझा और लोगों को समझा-बुझा कर उनके बच्चों को बाल मजदूरी से छुड़ा स्कूलों में दाखिला कराने लगा।

गौरतलब है कि ग्रेजुएशन की पढ़ाई जारी रखते हुए नीरज ने गरीब बच्चों के लिए अपने गांव में एक स्कूल की स्थापना की है। जिसके माध्यम से वह लगभग 200 बच्चों को समुदाय के साथ मिलकर शिक्षित करने में जुटा है। नीरज का मानना है कि शिक्षा की ज्‍योति से ही हम सामाजिक बुराइयों की होली जला सकते हैं। कैलाश सत्यार्थी चिल्‍ड्रेंस फाउंडेशन (केएससीएफ) संचालित झारखंड के गिरिडीह जिले के दुलियाकरम बाल मित्र ग्राम के पूर्व बाल मजदूर नीरज मुर्मू को गरीब और हाशिए के बच्चों को शिक्षित करने के लिए पिछले ही साल ब्रिटेन के प्रतिष्ठित डायना अवार्ड से सम्मानित किया गया है।


रामकृपाल गुरुजी

मध्‍य प्रदेश के सतना के हरदुआ गांव के रहने वाले रामकृपाल गुरुजी को परिवार की माली हालत खराब होने के कारण पढ़ाई बीच में छोडनी पड़ी। फरीदाबाद की पत्‍थर खदानों में मजदूरी करनी पड़ी। जहां उन्‍हें ठेकेदारों और स्‍थानीय गुंडों का सामना करना पड़ता। उनकी मजूरी काट ली जाती। माता-पिता से मिलने की इजाजत नहीं होती। बचपन बचाओ आंदोलन ने उन्‍हें बाल मजदूरी से मुक्‍त कराकर पुनर्वास और शिक्षण-प्रशिक्षण के लिए मुक्ति आश्रम भेज दिया। वहीं रहकर उन्‍होंने हायर सेकंडरी की परीक्षा पास की। राजस्‍थान के विराटनगर में 1998 में जब बाल आश्रम की स्‍थापना की गई, तब पढ़ने-पढ़ाने में उनकी रुचि को देखते हुए आश्रम के संस्‍थापक सत्‍यार्थी दम्‍पति ने उन्‍हें वहां शिक्षक के रूप में नियुक्‍त कर लिया। तब से लेकर अब तक रामकृपाल गुरुजी बाल आश्रम में प्रधान अध्‍यापक के रूप में कार्यरत हैं। कन्हैया की तरह ही बच्‍चों से उन्‍हें भी गुरुजी का खिताब मिला है। गुरुजी के पढ़ाए बच्‍चे आज वकील, इंजीनियर, बाल अधिकार कार्यकर्ता, व्‍यवसायी आदि बनकर अपने समुदाय और सत्‍यार्थी संगठन का नाम रोशन कर रहे हैं।


कन्‍हैया गुरु जी

कन्‍हैया जी अपने बारे में जानकारी देते हुए बताते हैं- बचपन में जब 14 वर्ष का था, तब पिताजी के कर्ज के कारण पढ़ाई बीच में छोड़कर खेतों में काम करना पड़ा। फिर बचपन बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं ने मुझे बाल मजदूरी से मुक्त कराया एवं पुनर्वास तथा शिक्षण-प्रशिक्षण के लिए मुक्ति आश्रम भेज दिया। सांस्कृतिक कार्यक्रमों में ज्यादा रुचि होने के कारण अभिनय एवं योगासन का भी अलग से प्रशिक्षण प्राप्त कियाl उसी दौरान छुट्टियों में समय निकालकर कैलीग्राफी आर्ट का कोर्स भी पूरा कियाl मेरी रुचि और कार्यशैली को देख श्रीमती सुमेधा कैलाश ने मुझे आर्ट शिक्षक के रूप में बाल आश्रम में नियुक्‍त कर लिया। यही कारण है कि मैं भी बाल मजदूरी से छुड़ाकर लाए गए बच्चों के साथ माता की तरह उनकी देखभाल करने लगा। बच्‍चों को पेंटिंग्‍स, योगासन, ढोलक, नुक्कड़ नाटक, क्रांति गीत, लोक नृत्य सिखाते-सिखाते शिक्षक बन गया। कन्‍हैया के समर्पण भाव को देखते हुए बच्चे उन्हें प्यार से गुरु जी कहते हैं। बाल आश्रम में कन्हैया गुरु जी के नाम से ही जाना जाते हैं। कन्हैया गुरुजी एक शिक्षक को राष्‍ट्र निर्माता की संज्ञा देते हैं।

ये ऐसे शिक्षक हैं जो तमाम विपरीत हालातों के बावजूद उन बच्‍चों को शिक्षा का दान कर रहे हैं जिनके लिए शिक्षा प्राप्‍त करना अभी भी एक सपना है। सामाजिक रूप से हाशिए का तबका जब तक पूरी तरह शिक्षित नहीं होता तब तक विकास और आधुनिकता के सभी दावे खोखले ही साबित होंगे। ये शिक्षक भारत की सम्‍पूर्ण प्रगति के लिए अपना योगदान दे रहे हैं।

Next Story