
लड़कियों के खतने के खिलाफ सुप्रीमकोर्ट में सुनवाई आज

मुस्लिम दाऊदी बोहरा समुदाय की लड़कियों का खतना करने के खिलाफ दायर याचिका पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि किसी भी धर्म के नाम पर कोई भी किसी लड़की के यौन अंग को कैसे छू सकता है, यौन अंगों को काटना लड़कियों की गरिमा और उनके सम्मान के खिलाफ है.
केंद्र सरकार ने भी अपनी आपत्ति दर्ज करवाते हुए कोर्ट में कहा कि धर्म की आड़ में लड़कियों का खतना जुर्म है और ये इस पर रोक लगनी चाहिए. इससे पहले केंद्र सरकार ने यह भी कहा था कि इसके लिए कानून के दंडविधान में इस पर सात साल तक कैद की सजा का प्रावधान भी है. केंद्र सरकार ने कहा कि जिस तरह से सती और देवदासी प्रथा को खत्म को खत्म किया गया है, उसी तरह इस प्रथा को भी खत्म किया जाए क्योंकि यह प्रथा संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत है.
दूसरी तरफ दाऊदी बोहरा समुदाय की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने इस प्रथा का बचाव करते हुए कहा कि यह कहना कि खतना को स्वास्थ्य के लिए खतरा बताना गलत है. उन्होंने यह भी कहा कि इन दिनों विशेषज्ञ डॉक्टर एफजीएम को अंजाम देते हैं.
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने दाऊदी बोहरा मुस्लिम समाज में आम रिवाज के रूप में प्रचलित इस इसलामी प्रक्रिया पर रोक लगाने वाली याचिका पर केरल और तेलंगाना सरकारों को भी नोटिस जारी किया था. याचिकाकर्ता और सुप्रीम कोर्ट में वकील सुनीता तिवारी की याचिका पर कोर्ट में सुनवाई चल रही है. तिवारी ने कहा कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं.
लड़कियों का खतना करने की ये परंपरा ना तो इंसानियत के नाते और ना ही कानून की रोशनी में जायज है. क्योंकि ये संविधान में समानता की गारंटी देने वाले अनुच्छेदों में 14 और 21 का सरेआम उल्लंघन है.लिहाजा मजहब की आड़ में लड़कियों का खतना करने के इस कुकृत्य को गैर जमानती और संज्ञेय अपराध घोषित करने का आदेश देने की प्रार्थना की गई थी.
याचिका में कहा गया कि ये तो अमानवीय और असंवेदनशील है. लिहाजा इस पर सरकार जब तक और सख्त कानून ना बनाये तब तक कोर्ट गाइड लाइन जारी करे. इस पर सरकार ने कोर्ट को बताया कि कानून तो पहले से ही है. हां, इसमें प्रावधानों को फिर से देखा जा सकता है.