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सुप्रीम कोर्ट का आदेश, मजदूरों से बस-ट्रेन का किराया ना वसूला जाए
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसमे दो राय नहीं कि केंद्र और राज्यो ने कदम उठाए है लेकिन मजदूरों के घर जाने रजिस्ट्रेशन , ट्रांसपोर्टेशन और उनको खाना- पानी उपलब्ध कराने की प्रकिया में कई खामियां है. रजिस्ट्रेशन के बाद भी उन्हें घर जाने के लिए ट्रेन/ बस की सुविधा उपलब्ध होने में काफी वक्त लग रहा है. अभी भी मजदूर पैदल सड़को पर है.
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये हुई सुनवाई में सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल, इंदिरा जय सिंह, संजय पारिख, आनंद ग्रोवर, कॉलिन गोंजाल्विस पेश हुए. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार का पक्ष रखा.
सरकार की दलील
सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, '1 मई से लेकर अब तक 91 लाख मजदूरों को उनके गृह राज्यों में भेजा गया है . 3700 श्रमिक स्पेशल ट्रेन के जरिये 50 लाख मजदूरों को भेजा गया है इसके अलावा करीब 41 लाख लोगो को बसों के जरिये उनके गृह राज्यों में भेजा गया है.केंद्र और राज्य मिलकर अपनी विचारधारा और पार्टी लाइन से ऊपर उठकर मजदूरों को घर भेजने के काम में लगे है. हर रोज 1.85 लाख मजदूरों को भेजा जा रहा है.'
सुनवाई के दौरान जब कोर्ट ने सरकार से पूछा कि मजदूरों का किराया कौन भर रहा है ऐसा लगता है कि इसे लेकर स्थिति साफ नहीं है जिसका नाजायज फायदा दलाल उठा रहे है . इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दिया कि शुरुआत में इसे लेकर भ्रम की स्थिति बनी. लेकिन बाद में ये तय हुआ कि किराया या तो वो राज्य देंगे जहां से मजदूर पलायन कर रहे है या वो राज्य ,जहां पर मजदूरों को जाना है.लेकिन ये साफ है कि किराया मजदूरों को चुकाने की ज़रूरत नहीं है. सफर के दौरान खाना पानी रेलवे द्वारा मुफ्त उपलब्ध कराया जा रहा है. रेलवे 81 लाख लोगों को खाना खिला चुका है.यात्रा पूरी होने पर भी मजदूरों की स्क्रीनिंग होती है,ताकि कोरोना संक्रमण न फैले.80 % से ज़्यादा मज़दूर यूपी, बिहार से आते है. यूपी जैसे राज्यों ने मजदूरों के रेलवे स्टेशन पर पहुँचने पर उनको क्वारंटाइन करने की व्यवस्था भी की है.
सुप्रीम कोर्ट के सवाल
सुनवाई के दौरान सुप्रीन कोर्ट ने सरकार से कई सवाल पूछे और सरकार से स्थिति स्पष्ठ करने को कहा . कोर्ट ने पूछा कि -घर के लिए रजिस्ट्रेशन कराने के बावजूद प्रवासी मजदूरों को इतना इंतज़ार क्यों करना पड़ रहा है. क्या पहले उन्हें किराया देने के बोला गया. क्या इतंजार के दरमियान उन्हें खाना मिल रहा है. जब एफसीआई के पास पर्याप्त अनाज है तो अनाज की कमी तो नहीं होनी चाहिए .हम मानते है कि सबको एक साथ भेजा नहीं जा सकता, लेकिन इस दरमियान उन्हें खाना, शरण तो मिलनी चाहिए.जब तक ये लोग अपने घरों तक नही पहुंच जाते, उन्हें खाना, पानी, बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना सरकार की ज़िम्मेदारी है. कोर्ट ने पूछा कि मजदूरो को कैसे पता चलेगा कि रजिस्ट्रेशन के बाद उन्हें घर जाने के लिए व्यवस्था कब तक हो पाएगी. कौन सा राज्य उनके किराए का खर्च उठाएगा ? मजदूरों को ये स्पष्ठता रहे कि उन्हें किराया नहीं चुकाना होगा ताकि वो दलालो के चंगुल में न फंसे.कोर्ट ने ये साफ होना चाहिए कि कोई राज्य मजदूरों को एंट्री देने से इंकार नहीं कर सकता.
कोर्ट के पूछे गए सवालों के जवाब में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वो राज्यों से बात कर विस्तृत जवाब दाखिल करेंगे.
उन्होंने ने कहा- कुछ लोग नकारात्मकता से भरे हैं. उनमें देशप्रेम नहीं है.वे उस फोटोग्राफर की तरह है,जिसने मौत की कगार पर पहुंचे बच्चे और गिद्ध की तस्वीर खींची थी. जिन लोगों ने आपसे संज्ञान लेने का आग्रह किया , जरा उनका ख़ुद का योगदान भी तो देखिए.वो करोड़ों में कमाते हैं लेकिन क्या 1 पैसा भी वो खर्च कर रहे है. लोग सड़कों पर भूखों को खाना खिला रहे है पर क्या ये लोग मदद के लिए वातानुकूलित कमरों से बाहर निकले है. उन लोगों से हलफनामा दाखिल करवा के पूछा जाना चाहिए कि आखिर वो क्या मदद कर रहे है. ऐसे लोगों को राजनीति मकसदों के लिए कोर्ट के इस्तेमाल की इजाजत नहीं मिलनी चाहिए.
इस पर जस्टिस कौल ने कहा कि अगर कुछ लोग न्यायपालिका को अपने हिसाब से चलाना चाहते हैं तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है. हम अपनी अंतरात्मा के हिसाब से न्याय के लिए काम करेंगे.
बहरहाल मामले की अगली सुनवाई 5 जून को होगी.तब तक केंद्र और राज्य विस्तृत जवाब दाखिल करेंगे. जवाब में प्रवासी मजदूरों की संख्या, उनके भेजे जाने की प्रकिया की जानकारी , समेत तमाम बिंदुओं को शामिल करेंगे.