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- पूरे देश, प्रांत, जिले या शहर की बजाय 5-10 किलोमीटर रेडियस के छोटे - छोटे क्लस्टर में खतरे के हिसाब से बांटा जाए पूरा देश
- फिर शत प्रतिशत या आंशिक लॉकडाउन लगाए सरकार
- जहां ज्यादातर क्लस्टर सुरक्षित हों, वहां जन जीवन सामान्य रखा जाए
- विदेश से या अंतरप्रांतीय परिवहन बिना टेस्टिंग या आइसोलेशन पॉलिसी के न शुरू किया जाए
लॉकडाउन... यही वह एक हथियार है, जिसके दम पर दुनिया इस वक्त कोरोना से लड़ कर अपना बचाव कर रही है.... लेकिन उसकी इस लड़ाई को एक ही चीज कमजोर कर रही है ... और वह है भूख/रोजगार। जहां गरीबी ज्यादा है, यानी भूख/ रोजगार ही सबसे बड़ी समस्या है.... वहां लॉकडाउन में हर रोज इतनी ज्यादा मुश्किलें आ रही हैं कि पुलिस, सेना आदि की मदद लेकर भी लॉकडाउन को शत प्रतिशत कामयाबी नहीं मिल पा रही है।
जहां गरीबी कम है या सम्पन्नता है , यानी भूख तो कम से कम कोई समस्या नहीं है और रोजगार भी संतोषजनक स्थिति में है , वहां भी अगर लॉकडाउन को लंबा खींचा जा रहा है तो लोग अपने रोजगार / आर्थिक स्थिति के भविष्य को लेकर खासे चिंतित होने लगे हैं।
अब अगर भारत की बात की जाए तो यहां हमारे देश में आर्थिक रूप से भी वैसी ही विविधता नजर आती है , जैसी विविधता यहां धार्मिक, सामाजिक, भाषाई, सांस्कृतिक आदि रूपों में है। ऐसे में तो यहां लॉकडाउन का फार्मूला देश के शायद ही किसी शहर, कस्बे या गांव में शत प्रतिशत सफल हो पाएगा। लिहाजा एक ही तरीका यहां कारगर होगा कि सरकार पूरे जिले , शहर, प्रांत आदि बड़े इलाकों में कंप्लीट लॉकडाउन करने की बजाय इसे 5-10 किलोमीटर के रेडियस में ही लागू करे। रेड, ऑरेंज, ग्रीन आदि स्तर चुनकर खतरे के हिसाब से ऐसे कलस्टर बना दिए जाएं ताकि ज्यादा खतरे वाले इलाकों में सीमाएं सील करना, टेस्टिंग और इलाज करना भी आसान हो जाए।
साथ ही , शत प्रतिशत लॉकडाउन अगर छोटे छोटे क्लस्टर में होंगे तो घर घर राशन पहुंचाना भी बेहद सरल हो जाएगा। इससे हमारे देश की इकोनॉमी भी बच जाएगी और हम बिना अराजकता और भुखमरी का शिकार हुए कोरोना से बाकी सभी देशों के मुकाबले ज्यादा बेहतर तरीके से लड़ सकेंगे। जाहिर है, जिस तरह से पूरी दुनिया में कोरोना से बचाव व इसके इलाज के लिए अनुसंधान हो रहे हैं, उससे इतना तो तय है कि अभी नहीं भी, तो भी अगले 4-6 महीनों में या साल डेढ़ साल में इलाज आ ही जाएगा। यानी हमें बस अगले एक साल से डेढ़ साल तक खुद को कोरोना से बचाना है और तब तक अपनी इकोनॉमी भी बचानी है।
वैसे भी, एक पुरानी कहावत है कि अगर आप किसी मुसीबत में फंसे हो तो बजाय घबरा कर जल्दबाजी में सब कुछ तबाह कर देने के , धैर्य, प्लानिंग और समझ बूझ से ज्यादा से ज्यादा समय खींचने की कोशिश करनी चाहिए। ताकि इस लंबे समय में हमारे लिए कहीं से मदद या चमत्कार की आस भी बनी रहे।