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आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का फैसला कोई नया नहीं है, पहले इस पीएम ने भी लगाया था!

Special Coverage News
7 Jan 2019 2:59 PM GMT
आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का फैसला कोई नया नहीं है, पहले इस पीएम ने भी लगाया था!
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मोदी कैबिनेट की बैठक में आज सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण दिए जाने के फैसले को मंजूरी मिल गई है.

जयंत जिज्ञासू

आज से पहले नरसिम्हाराव की सरकार ने 25 सितंबर, 1991 को सवर्णों को 10% आरक्षण दिया था. ठीक वैसे ही जैसे आज दिया गया है. बाद में मामला सुप्रीम कोर्ट में गया और सुप्रीम कोर्ट ने इस आरक्षण को अवैध घोषित कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों की पीठ ने "इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार" केस के फैसले में इस आरक्षण को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि आरक्षण का आधार आय व संपत्ति को नहीं माना जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि संविधान के अनुच्छेद 16(4) में आरक्षण समूह को है , व्यक्ति को नहीं. आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाना समानता के मूल अधिकार का उल्लंघन है.

इसी तरह वर्ष 2017 में गुजरात सरकार द्वारा छह लाख वार्षिक आय वालों तक के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था को न्यायालय ने खारिज कर दिया था. राजस्थान सरकार ने 2015 में उच्च वर्ग के गरीबों के लिए 14 प्रतिशत और पिछड़ों में अति निर्धन के लिए पांच फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की थी. उसे भी निरस्त कर दिया गया था. हरियाणा सरकार का ऐसा फैसला भी न्यायालय में नहीं टिक सका.

असल में बीजेपी को पता है कि ये फैसला न्यायालय में नहीं टिकने वाला. अतीत में इस तरह के कई उदाहरण मौजूद हैं. बावजूद इसके बीजेपी ने सवर्णों को आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का फैसला लिया है.

इसके पीछे दो मुख्य कारण नज़र आ रहे हैं.

पहला , बीजेपी का सवर्ण वोट बैंक अब खिसकने लगा है और उसे भय है कि 2019 तक यह पूर्णतः उसके पक्ष में नहीं रहने वाला.

दूसरा , एससी /एसटी ऐक्ट के बाद सवर्णों के बीच हुए डैमेज कंट्रोल को कम करने के लिए.

चुनाव नजदीक है तो इस बात की पूरी संभावना है कि नोटा या अन्य दलों की तरफ़ भागने वाला औसत बुद्धि सवर्ण वोटबैंक इससे पुनः बीजेपी की तरफ लौटेगा.

बाकी वो गाना तो सुना ही होगा ...दो पल रुका ख्वाबों का कारवां...बस वही बात है. जिस तरह आननफानन में ये आरक्षण लागू हो रहा है , उसी तरह जल्द ही खारिज भी हो जाएगा.

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