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सवर्ण आरक्षण चुनावी मुद्दा ही बन जाएगा, क्योंकि इस वजह से लोकसभा और राज्यसभा में नहीं हो सकता पास!

Special Coverage News
8 Jan 2019 9:23 AM GMT
सवर्ण आरक्षण चुनावी मुद्दा ही बन जाएगा, क्योंकि इस वजह से लोकसभा और राज्यसभा में नहीं हो सकता पास!
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गिरीश मालवीय

संविधान के अनुच्छेद 16(4) के अनुसार, आरक्षण किसी समूह को दिया जाता है और किसी व्यक्ति को नहीं. सुप्रीम कोर्ट कई बार आर्थिक आधार पर आरक्षण देने के फैसलों पर रोक लगा चुका है. अपने फैसलों में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाना समानता के मूल अधिकार का उल्लंघन है.क्या संविधान में तब कोई बदलाव किया जा सकता है जब समानता संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है. सुप्रीम कोर्ट केशवानंद भारती मामले में पहले ही कह चुका है कि संविधान की मूल संरचना को बदला नहीं जा सकता है.

केशवानंद भारती से संबंधित वाद में सुप्रीम कोर्ट के 13 जजों की संवैधानिक पीठ ने कहा था कि संविधान की बुनियादी संरचना के साथ छेड़छाड़ नहीं की जा सकती। अगर आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा दिया जाता है तो निश्चित तौर पर यह संविधान के अनुच्छेद में दी गई व्यवस्था के उलटा होगा। क्योंकि इसमें प्रावधान है कि समान अवसर दिए जाएं और इस तरह से देखा जाए तो मौलिक अधिकार के प्रावधान प्रभावित होंगे और वह संविधान की बुनियादी संरचना का हिस्सा है.

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि "आर्थिक पिछड़ेपन की पहचान आप कैसे कर सकते हैं? अभी जिन आधारों की बात की जा रही है वह हास्यास्पद है.

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने बीबीसी हिंदी से कहा, "मेरे हिसाब से यह आकाश में एक विशाल चिड़िया की तरह है जो चुनावी मौसम में आएगी. शायद सरकार इस तथ्य को स्वीकार कर चुकी है कि न्यायालय इसे गिरा देगा लेकिन अगली सरकार के लिए इस मुद्दे से निपटना मुश्किल होगा. अभी यह करोड़ों बेरोज़गारों को सपने बेच रहे हैं.

अगर आरक्षण 50 फीसदी की सीमा को पार कर दिया जाता है और इसके लिए संविधान में संशोधन किया जाता है, या फिर मामले को 9वीं अनुसूची में रखा जाता है ताकि उसे न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर रख दिया जाए, तो भी मामला न्यायिक समीक्षा के दायरे में होगा.

सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील केटीएस तुलसी का कहना है कि कोर्ट ने व्यवस्था दे रखी है कि 9वीं अनुसूची का सहारा लेकर अवैध कानून को का बचाव नहीं किया जा सकता। अगर कोई कानून संवैधानिक दायरे से बाहर होगा तो उसे 9वीं अनुसूची में डालकर नहीं बचाया जा सकता.

अब संसद द्ववारा संविधान संशोधन की संभावना पर गौर कर लेते है......

इस वक्त लोकसभा 523 सांसद हैं संविधान संशोधन के लिए दो-तिहाई बहुमत जरूरी यानी वर्तमान में 348 सांसदों की जरूरत है एनडीए सांसदो की स्थिति इस प्रकार है.

भाजपा 268

शिवसेना 18

एलजेपी 06

अकाली दल 04

अपना दल 02

एसडीएफ 01

जेडीयू 02

एनडीपीपी 01

कुल 302

राज्यसभा 244 सांसद हैं संविधान संशोधन के लिए दो-तिहाई बहुमत जरूरी हैं यानी फिलहाल 163 सांसदों की जरूरत हैं यहां एनडीए सांसद की संख्या निम्न है...

भाजपा 73

जेडीयू 06

शिवसेना 03

अकाली दल 03

एसडीएफ 01

एनपीएफ 01

नाम निर्देशित 04

वाइएसआरसीपी 02

कुल 93

स्पष्ट है कि NDA इसे अपने दम पर पास नही करा पाएगा. यदि मोदी सरकार ने संसद के दोनों सदनों से विधेयक पास करा भी लिया, तो उसे इस विधेयक पर 14 राज्यों की विधानसभाओं की मंजूरी लेनी होगी. याद रहे कि इसमें जम्मू-कश्मीर विधानसभा का कोई रोल नहीं होगा, क्योंकि जम्मू-कश्मीर का अपना अलग कानून है. इसके बाद अगर इस विधेयक को देश के 14 राज्यों की विधानसभाओं ने मंजूरी दे दी, तो इसे राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा जायेगा. राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ही ये बिल कानून बन पायेगा.

यानी साफ दिख रहा है कि शीतकालीन सत्र के आखिरी दिन सवर्ण आरक्षण की बात करना सिर्फ एक चुनावी स्टंट मात्र है. यदि भाजपा इस विषय मे गंभीर होती तो यह विधेयक यह कुछ साल पहले ही लेकर आती ?

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