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आगरा के मुगल म्यूजियम शिवाजी के नाम पर किये जाने से शिवाजी महाराज का महत्व कम होगा

Shiv Kumar Mishra
15 Sep 2020 12:01 PM GMT
आगरा के मुगल म्यूजियम शिवाजी के नाम पर किये जाने से शिवाजी महाराज का महत्व कम होगा
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इनमें ताजमहल, लालकिला आगरा,दिल्ली,फतेहपुर सीकरी, कुतुबमीनार आदि ऐसी अनेकों इमारतें शामिल हैं जो मुगल कालीन स्थापत्य कला के उदाहरण हैं।

अलीगढ़। देश के प्रख्यात शिक्षाविद एवं आगरा विश्व विद्यालय शिक्षक संघ के पूर्व अध्यक्ष डा. रक्षपालसिंह चौहान ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय योगी आदित्य नाथ को लिखे पत्र में कहा है कि मान्यवर आप देश के बड़े मठ के सन्त हैं और देश के सबसे बड़े राज्य यूपी के समग्र विकास एवं उसकी शान्ति व्यवस्था को संभालने व संवारने के महत्वपूर्ण कार्य में तल्लीन हैं। मुझे उक्त विषयक समाचार पढ़कर आश्चर्य एवं दुख हुआ कि आप जैसे सन्त राष्ट्र के प्रति गौरव बोध कराने के लिये आगरा में निर्माणाधीन मुगल म्यूजियम का नाम छत्रपति शिवाजी के नाम पर रखेंगे।

इस सम्बन्ध मेरा आपसे कहना है कि तथ्य यह है कि देश के सभी सम्प्रदायों के लोग महाराज छत्रपति शिवाजी को नायक मानते हैं और उनके नाम को अमर रखने के लिये प्रतिबद्धता जताने से भी पीछे भी नहीं हटते। आगरा के निर्माणाधीन मुगल म्यूजियम का नाम छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम पर रखे जाने से यदि शिवाजी महाराज का कद और महत्व बढ़ता तो किसी को कोई आपत्ति नहीं हो सकती है। लेकिन ऐसा करने से उनका महत्व बढ़ेगा नहीं ,बल्कि इससे देश के लोगों में गलत संदेश पहुंचेगा।

सच्चाई यह है कि मुगलों से अपने संघर्ष की बदौलत ही शिवाजी महाराज छत्रपति कहलाये। यदि देश से मुगल नाम ही महत्वहीन हो जायेगा तो शिवाजी महाराज का वर्तमान महत्व कहां रह जायेगा ? ये भी हकीकत है कि देश में काफी समय तक मुगलों का राज्य रहा है और उस समय में भी कुछ ऐसे विकास कार्य हुए हैं जो देश की स्थापत्य कला आदि के नायाब नमूने हैं जिनका अवलोकन करने के लिए विश्व भर से हर साल हजारों-लाखों लोग यहां आते हैं। इनमें ताजमहल, लालकिला आगरा,दिल्ली,फतेहपुर सीकरी, कुतुबमीनार आदि ऐसी अनेकों इमारतें शामिल हैं जो मुगल कालीन स्थापत्य कला के उदाहरण हैं।


यह समझ से परे है कि मुगलकालीन ये प्रतीक चिन्ह आज अपने राष्ट्र के प्रति गौरव का बोध कराने में किस प्रकार की बाधा उत्पन्न कर रहे हैं? इतना सत्य अवश्य है कि इतिहास में दर्ज़ नामों को बदलने की कोशिश होती रही तो वर्ष 1893 में अमेरिका में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में वैदिक धर्म (हिन्दू धर्म) की पताका फहराने वाले महान सन्त स्वामी विवेकानन्द जी का वसुधैव कुटुंबकम का उदघोष बेमानी हो जायेगा।


महाराज जी, आप मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी के वंशज होने के साथ उनके भक्त भी हैं तथा भव्य श्री राम मन्दिर के निर्माण कार्य में अहम भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं। यह इतिहास का कटु सत्य है और एक महत्वपूर्ण तथ्य भी जो देश के भावी इतिहास में स्वर्ण अच्छरों में अंकित होगा। इसलिये आपसे विनम्र प्रार्थना है कि आप श्री रामचरित मानस के उत्तरकांड की निम्न चौपाई के भावार्थ को दृष्टिगत रखते हुए ही उक्त विषयक अपनी घोषणा पर पुन: विचार करने की कृपा करें।

बिसरे गृह सपनेहुँ सुधि नाहीं ।

जिमि परद्रोह सन्त मन माहीं

ऐसा कर आप जनता में अपनी लोकप्रियता बढ़ाने और जनता की आपमें, आपके सुधारात्मक कार्यों के प्रति निष्ठा को और सुदृढ़ करने में अहम और महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर एक लोकप्रिय राजनेता होने का दायित्व निभायेंगे।


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