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महात्मा गांधी के स्वशासन से ही निकलेगा सुशासन का रास्ता
सुमित कुमार
कोविड -19 महामारी के कारण दुनिया में भारी आर्थिक गिरावट देखी गई है। विश्व के साथ-साथ भारत में भी आर्थिक संकट हमारे सामने है। इस दौरान लाखों लोगों के रोजगार पर संकट आ गया है। कोरोना संक्रमण के कारण हुए देशव्यापी तालाबंदी (लॉकडाउन) के दरम्यान पूरा देश श्रमिकों के रिकॉर्ड पलायन का गवाह बना। शहरों में कोरोना संक्रमण और भूख से मरने के डर ने प्रवासी श्रमिकों को अपने गाँव और शहर वापस जाने के पलायन की यात्रा पर धकेल दिया। अपने गाँव, घर पहुँचने की जिद्द में श्रमिकों ने अपनी जान तक दांव पर लगा दी। इस संकट ने हमें एक बार फिर ग्रामीण क्षेत्रों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने का मौका दिया, इसके साथ ही मौजूदा कमजोर परिदृश्य ने सुशासन और स्थानीय स्व-शासन के लिए एक खतरनाक स्थिति उजगार किया। कोविड -19 महामारी ने शहरी और स्थानीय निकायों को अपनी नीतियों और संस्थागत तंत्र की समीक्षा करने, उसे पुनर्जीवित करने और पुनः पेश करने का अवसर प्रदान किया है। वर्तमान में कोविड -19 महामारी के कारण उत्पन्न हुई परिस्थितियों ने एक बार फिर महात्मा गांधी के स्वशासन के सपने की तरफ लोगों का ध्यान आकर्षित किया है, और यही स्वशासन सुशासन का रास्ता दिखा रहा है।
कोविड -19 महामारी के दौरान कई स्वयंसेवी संगठन मदद के लिए आगे आए और मजदूर, गरीब वंचित तबकों को फौरी तौर पर राहत पहुंचाने के लिए कई प्रकार का काम किया। कई सामाजिक संगठनों ने श्रमदान के रूप में इस दौरान मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराने का भी काम किया। इसी कड़ी में सामाजिक संगठन एकता परिषद ने प्रदेश सहित देश के कई जिलों में मजदूरों के लिए श्रमदान के रूप में रोजगार उपलब्ध कराने की कोशिश की। इसी प्रकार से गांधी का सपना स्वशासन सभी को रोजगार मुहैया करा कर साकार करने की कोशिश की जा सकती है।
भारत में बड़े पैमाने पर शहरीकरण हो रहा है और यही शहरीकरण मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में प्रवास का कारण है, क्योंकि शहरी क्षेत्र ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में बेहतर रोजगार के अवसर, शिक्षा, जीवन शैली, जीवनयापन के लिए बुनियादी ढांचा (स्कूल, अस्पताल, व्यावसायिक केंद्र आदि) प्रदान करता है। बढ़ती जनसंख्या, प्रवास और शहरीकरण ने विभिन्न शहरी और क्षेत्रीय मुद्दों को जन्म दिया है, जैसे आवास की कमी, शहरी फैलाव के कारण कृषि भूमि का नुकसान, बुनियादी ढांचे पर बोझ, वाहनों की संख्या में वृद्धि, खराब पानी, खराब स्वच्छता सुविधाएं और पर्यावरण की गिरावट आदि।
भारत में शहरी और क्षेत्रीय नियोजन की मुख्य चुनौती केंद्रीय और राज्य सरकार योजना संगठनों और बोर्डों द्वारा निर्धारित लंबी प्रक्रिया है। एक चुनौती में सीमित राजस्व-सृजन शक्तियाँ और अनुचित रूप से लक्षित अंतर-सरकारी स्थानान्तरण जिसके परिणामस्वरूप अपर्याप्त स्थानीय सरकारी वित्तीय संसाधन भी है। शहर और क्षेत्रीय स्तर पर योजना और अन्य प्रशासनिक निकायों के बीच खराब सहयोग भी स्वशासन की मुख्य चुनौतियों में से एक है। वहीं भारत के सुदूर और ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी बुनियादी ढांचे और अन्य निवेशों की जरूरत है। जमीनी स्तर पर शहरी और क्षेत्रीय विकास को नियंत्रित करने वाले ढांचे को मजबूत करने की चुनौती भी हमारे सामने है।
कोविड -19 महामारी ने शहरी और क्षेत्रीय योजना की भूमिका के महत्वपूर्णता को एक बार फिर उजागर किया है, ताकि कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों को आत्मनिर्भर बनाने में क्षेत्रीय विकास पर ध्यान केंद्रित किया जा सके। ग्रामीण क्षेत्रों को उन्नत करने के लिए नीतियों और योजनाओं को लाया जा सके, पर्याप्त बुनियादी ढांचा प्रदान किया जा सके। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार में नवाचार को बढ़ावा देने के साथ-साथ, कृषि आधारित अर्थव्यवस्था का पुनरुद्धार, जमीनी स्तर पर अवसरों का सृजन कर स्वशासन की पुनः नींव रखी जा सके। संसाधनों की खपत दर को संतुलित करने के लिए सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों (अनौपचारिक क्षेत्र और कृषि क्षेत्र) में बहुत अधिक खर्च करने की आवश्यकता है। विभिन्न जटिलताओं वाली शहरी समस्याओं को दूर करने, प्रयोग, नागरिक भागीदारी और सहयोग के लिए नए मंचों को बढ़ावा देने के लिए अभ्यास-आधारित नवाचार प्रक्रिया पर शहरी और साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में क्रियाशील प्रयोगशालाओं को स्थापित करने की जरूरत है।
स्वशासन से ही सुशासन स्थापित हो सकता है और सुशासन के लिए सबको रोजगार मुहैया कराना एक महत्वपूर्ण माध्यम है। लोगों को रोजगार की आवश्यकता इसलिए होती है, ताकि वह स्वयं के साथ-साथ अपने परिवार का भरण-पोषण कर सके। यदि व्यक्ति के पास रोजगार की उपलब्धता होती है तो वह आमतौर पर किसी भी असामाजिक गतविधियों में शामिल नहीं होता है। इस परिप्रेक्ष्य में देखें तो समाज में शांति और न्याय स्थापित करने के लिए भी रोजगार की आवश्यकता होती है। रोजगार का दूसरा संबंध सीधा राज्य और समाज से भी है, एक व्यक्ति जब काम कर रह होता है तो वह केवल मेहनताना नहीं ले रहा होता है, बल्कि वह जो काम कर रहा होता है वह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से राज्य और समाज के विकास के लिए कर रहा होता है। इस प्रकार जब आप किसी को रोजगार मुहैया कराते हैं तो दो चीजें एक साथ सधती है, एक तरफ वह व्यक्ति और उसका परिवार सुरक्षित और संरक्षित होता है तो वहीं दूसरी तरफ समाज भी शांति की स्थिति की ओर अग्रसर होता है।
इसी स्वशासन से सुशासन और समाज में न्याय और शांति की स्थापना का सपना संजोये समाजिक संगठन एकता परिषद और सर्वोदय समाज संयुक्त रूप से गाँधीवादी विचारक राजगोपाल पी.व्ही. के नेतृत्व में 12 दिवसीय पदयात्रा "न्याय और शान्ति पदयात्रा - 2021" पर है। पदयात्रा की शुरुआत अन्तराष्ट्रीय शान्ति दिवस के मौके पर हुई है और इसका समापन 2 अक्टूबर, अन्तराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के मौके पर की जाएगी। पदयात्रा देश के 105 जिलों के साथ-साथ विश्व के 25 देशों में चल रही है। यात्रा के दौरान लगभग पांच हजार पदयात्री पैदल चल रहे हैं और लगभग दस हजार किलोमीटर की दूरी तय की जाएगी। उल्लेखनीय है कि 2 अक्टूबर को दुनिया में अन्तराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
सुशासन का अर्थ होता है अच्छा शासन, कोई भी शासन या प्रशासन अच्छा कैसे हो सकता है या फिर शासन या प्रशासन का तरीका अच्छा कैसे हो सकता है, इस प्रश्नों के उत्तर की ओर बढ़ें तो हम पाते हैं कि कोई भी शासन अच्छा तभी होगा जब वह अपना होगा, यहाँ अपना का अर्थ है खुद का शासन अर्थात स्वशासन। स्वशासन में सहभागिता, पारदर्शिता और विकेन्द्रीकरण बेहद जरूरी है। स्वशासन को हम काफी हद तक सत्ता के विकेन्द्रीकरण के रूप में भी देखते हैं। अगर देखें तो स्वशासन और सुशासन एक तरह से समानार्थी हैं। जितना ज्यादा शासन का विकेन्द्रीकरण होगा उतने ही ज्यादा लोगों के लिए रोजगार के अवसर उत्पन्न होंगे और उतना ही ज्यादा वह शासन सुशासन होगा, कोई भी केन्द्रीकृत व्यवस्था सुशासन नहीं हो सकता। तो इस प्रकार सुशासन स्वशासन में और स्वशासन सुशासन में बदलता है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)