
इसरो का काम निजी क्षेत्र को सौंपे जाने से वैज्ञानिक नाराज, सरकार प्राइवेट सेक्टर पर इतना मेहरवान क्यों?

जब प्रधानमंत्री मोदी ने लाल किले की प्राचीर से जब यह कहा कि देश 2022 तक किसी भारतीय को अंतरिक्ष में भेजेगा ओर यह हमारी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि गिनी जाएगी. तो बड़े बड़े राजनीतिक पंडित भी आश्चर्य में पड़ गये कि यह मोदी जी कहाँ आधी रोटी में दाल धर धर के बांट रहे हैं.
लेकिन कल आयी खबर से मामला थोड़ा साफ हुआ है. वैसे एक बात बताऊँ, जैसे जैसे इस पोस्ट के आखिरी हिस्से तक आप पुहचंगे तो पाएंगे कि हम जहाँ से सोचना शुरू करते है मोदी उस सोच से मीलों आगे है.
कल खबर आई है कि इसरो का काम निजी क्षेत्र को सोपे जा रहे हैं और इस बात से देश के अंतरिक्ष वैज्ञानिक नाराज हैं. बताया जा रहा है कि मोदी सरकार के दबाव में आकर पहले ही इसरो ने निजी क्षेत्र की कंपनियों को 27 सैटलाइट्स बनाने का काम सौंपा लेकिन उसके बाद इसरो पर स्पेस कार्यक्रमों की रीढ़ रहे 'पोलर सैटलाइट लॉन्च वीइकल' (पीएसएलवी) और 'स्मॉल सैटलाइट लॉन्च वीइकल' (एसएसएलवी ) का निर्माण भी प्राइवेट सेक्टर से कराने का दबाव बनाया जा रहा है इससे इसरो के साइंटिस्ट्स की नाराजगी और बढ़ गई है उनका मानना है कि मोदी सरकार संस्था के कामकाज में दखलंदाजी कर रही है.
प्राइवेट सेक्टर को सैटलाइट्स बनाने का काम सौंपने से इसरो की सैटलाइट बनाने वाली अहमदाबाद स्थित इकाई, स्पेस एप्लीकेशन सेंटर के डायरेक्टर डॉ. तपन मिश्रा बेहद नाराज थे. वह जीसैट-11 के लॉन्च में देरी से भी नाखुश बताए जाते थे. उन्होंने अपनी नाराजगी का इजहार किया, तो उनको तत्काल पद से हटाकर इसरो का सलाहकार बना दिया गया जबकि इसरो के मौजूदा डायरेक्टर के. सिवन के बाद उनके चेयरमैन बनने की संभावना सबसे ज्यादा मजबूत थी. यह जानना समीचीन होगा कि कई महत्वपूर्ण उपग्रह बनाने वाले मिश्रा को उनके पद से हटाने से एक दिन पहले ही भारतीय अतंरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने दो प्राइवेट कंपनियों और एक सार्वजनिक उपक्रम के साथ 27 सेटेलाइट बनाने का करार किया था.
देश के कई शीर्ष संस्थानों के वैज्ञानिकों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर इस मामले में दखल देने की अपील की थी, लेकिन अब पानी सर के ऊपर से गुजर गया है, पीएसएलवी और एसएसएलवी बनाने का काम भी निजी क्षेत्र से कराने का इरादा जताया जा रहा है
दरअसल भारत कुछ अंतरिक्ष-उन्मुख राष्ट्रों में से एक है जिसमें स्वदेशी निर्मित लॉन्च वाहनों का उपयोग करके अत्याधुनिक उपग्रहों को डिजाइन, विकसित और लॉन्च करने की क्षमता रखता है 2017 में मोदी सरकार ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में निजी कम्पनियों को आगे बढ़ाने के लिए अंतरिक्ष संबंधी कानून में अहम बदलाव किए जिससे इसरो द्वारा की गयी रिसर्च का फायदा सीधे निजि कम्पनियों को दिया जा सके, ओर निजी कम्पनियों से इसरो उपग्रह, रॉकेट और प्रक्षेपण वाहन बनवाने के काम करवा सके.
इसके बाद इसरो ने उपग्रहों और रॉकेटों से संबंधित तकनीक निजी कंपनियों को देना शुरू कर दिया है। अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजी की अगुआई में एक कंसोर्टियम को यह तकनीक सौपी गयी हैं.
अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजी मूल रूप से सेना का साजो सामान बनाने वाली एक निजी कम्पनी है. भारत को ईवीएम की पहली खेप दिलाने में मदद करने वाले कर्नल एच एस शंकर इस कंसोर्टियम का नेतृत्व कर रहे हैं (इस बात की पुष्टि के लिए एनडीटीवी की लिंक दी गयी है) अब यह बड़ी आश्चर्य की बात है कि इस अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजी के CEO का evm से इतना गहरा कनेक्शन है.
इसी अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजी के साथ मिलकर अडानी की कम्पनी अदाणी एयरो डिफेंस सिस्टम्स ऐंड टेक्रोलॉजीज ने इजरायल की कम्पनी एलबिट-आईस्टार के साथ समझौते किया है इस समझौते के तहत एलबिट मानवरहित विमान प्रणाली तमाम तरह की कार्यात्मक क्षमताएं देने की तकनीक दे रही हैं जो खास तौर पर रॉफेल विमान को देखने और सुनने संबंधी जानकारी हासिल करने में मदद करती है
सीधे शब्दों में कहे तो एलबिट रॉफाल जेट के लिए हेलमेट माउंटेड डिस्प्ले सिस्टम की आपूर्ति करने वाली है, जिसे राफेल डील के तहत अडानी ओर अल्फा डिज़ाइन टेक्नोलॉजी ओर एलबिट संयुक्त रूप से सप्लाई करेगी. अब आप अच्छी तरह से समझ गए होंगे जैसा कि ऊपर ही पोस्ट में लिखा है कि आप मोदी जी की सोच की थाह ही नही पा सकते हैं.
लेखक गिरीश मालवीय