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कैलाश सत्यार्थी की पुस्तक में विचार की अमीरी के सूत्र छिपे हैं:- रामबहादुर राय
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र ने नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित श्री कैलाश सत्यार्थी की पुस्तक ''कोविड-19 सभ्यता का संकट और समाधान'' पर एक परिचर्चा का आयोजन किया। परिचर्चा की अध्यक्षता इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष एवं सुप्रसिद्ध पत्रकार पद्मश्री रामबहादुर राय ने की। जबकि विशिष्ट अतिथि के रूप में जानीमानी सांस्कृतिक दार्शनिक और राज्यसभा की सांसद श्रीमती सोनल मानसिंह की मौजूदगी रही। स्वागत वक्तव्य लेखक, कलाविद एवं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ सच्चिदानंद जोशी का रहा। अन्य वक्ताओं में सुप्रसिद्ध लेखक एवं पूर्व राजनयिक श्री पवन के वर्मा, सुप्रसिद्ध राजनीतिज्ञ एवं राज्यसभा सांसद श्री सुधांशु त्रिवेदी, सुप्रसिद्ध गीतकार एवं अध्यक्ष सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन श्री प्रसून जोशी और मशहूर लेखक एवं नेहरू सेंटर, लंदन के निदेशक श्री अमीश त्रिपाठी शामिल रहे। कार्यक्रम में पुस्तक के लेखक श्री कैलाश सत्यार्थी भी मौजूद रहे।
डॉ सच्चिदानंद जोशी ने प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक ''कोविड-19 सभ्यता का संकट और समाधान'' पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, ''श्री कैलाश सत्यार्थी ने पूरे विश्व में बाल मजदूरों के अधिकारों के प्रति चेतना जगाने का काम किया है। कैलाश जी एक सिद्धहस्त लेखक भी हैं जो जीवन के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डालने का काम करते रहते हैं। उनकी कविताएं आपको रोमांच से भर देती हैं। आपके रोएं खड़े कर देती हैं। उनकी पुस्तक ''कोविड-19 सभ्यता का संकट और समाधान'' को पढ़ते हुए ऐसा बार-बार अहसास होता रहा कि हम किसी रिपोर्ताज से गुजर रहे हैं। कैलाश जी बिल्कुल सही कहते हैं कि लम्बे समय तक चलने वाला कोरोना संकट किसी जंतु या वायरस के द्वारा फैलाया संकट नहीं है, बल्कि यह सभ्यता का संकट है।''
वहीं अपना अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष एवं सुप्रसिद्ध पत्रकार पद्मश्री रामबहादुर राय ने कहा, ''इस पुस्तक से नई सभ्यता का शास्त्र रचा जा सकता है। यह पुस्तक अपने आप में मौलिक है। मौलिक इस अर्थ में है कि कोरोना को लेकर जो षड्यंत्रकथाएं रची जा रही हैं, उनसे दूर जाकर यह बात करती है। यह पुस्तक भारत की नेतृत्वकारी भूमिका का भी प्रमाण है। कैलाश सत्यार्थी की पहचान है कि वे सत्य के खोजी हैं जो इस पुस्तक में भी दिखती है। इस पुस्तक में विचार की अमीरी के सूत्र छिपे हैं, जिसे लोगों को यदि समझाया जाए तो पुस्तक की सार्थकता बढेगी।'' श्री राय ने अपनी बात का समापन करते हुए कोरोना महामारी और उससे उपजे संकट के संदर्भ में कहा कि अभी अमावस की रात जरूर है लेकिन यह पुस्तक हमें पूर्णिमा के चांद का भी आश्वासन देती है।
राज्यसभा सांसद श्रीमती सोनल मानसिंह का कहना था कि कैलाश जी की पुस्तक को छापकर प्रभात प्रकाशन ने अपने प्रकाशन में एक रत्नमणि जोड़ने का काम किया है। यह पुस्तक गागर में सागर है। कोरोना काल के दौरान अपने घरों के अंदर घुट-घुटकर रहने को मजबूर लोगों में जो एक मानसिक विकृति आ गई है, उसके प्रभाव की कैलाश जी अपनी पुस्तक में सम्यक व्याख्या करते हैं और साथ ही समाधान भी पेश करते हैं। श्रीमती सिंह ने श्री सत्यार्थी द्वारा लिखित पुस्तक की इस बात को विशेष रूप से रेखांकित किया कि दिल और दिमाग में बहुत फर्क है, जो वह एक कलाकार के नाते कह रही है, क्योंकि वह भावना से ही ज्यादा काम लेता है।
करुणा के भूमंडलीकर का नारा देने वाले पुस्तक के लेखक नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित बाल अधिकार कार्यकर्ता श्री कैलाश सत्यार्थी ने इस अवसर पर अपने संबोधन में कहा, ''करुणा सकारात्मक, रचनात्मक सभ्यता के निर्माण का आधार है। करुणा में एक गतिशीलता है। एक साहस है और उसमें एक नेतृत्वकारी क्षमता भी है। करुणा एक ऐसी अग्नि है जो हमें बेहतर बनाती है। जब हम दूसरे को देखते हैं और उसके प्रति हमारे मन में एक जुड़ाव का भाव पैदा होता है, तो वह सहानुभूति है। जब हम महसूस करते हैं कि दूसरे का दुख, दर्द हमारी परेशानी है, तब वह संवेदनशीलता हो जाती है। लेकिन बिल्कुल अंदर का जो तत्व है वह है करुणा। यानी दूसरे के दुख-दर्द को अपना दुख-दर्द महसूस करके उसका निराकरण ठीक वैसे ही करें, जैसे हम अपने दुख-दर्द का करते हैं। महामारी से पीड़ित वर्तमान में दुनिया की जो स्थिति हो गई है, उससे निजात करुणा ही दिला सकती है। इसीलिए करुणा का वैश्वीकरण समय की जरूरत है।"
सुप्रसिद्ध गीतकार एवं सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन के अध्यक्ष श्री प्रसून जोशी ने श्री कैलाश सत्यार्थी के दार्शनिक पक्ष को इंगित करते हुए कहा, ''उनकी पुस्तक को पढ़ते हुए मेरा विश्वास पुख्ता हो गया कि उन्होंने उसी विषय को उठाया है, जिस पर मैं सोच रहा था कि उन्हें उठाना चाहिए। कैलाश जी कोविड काल को व्यापक दृष्टिकोण से देखते हैं। उन्होंने सारे विषयों को करुणा केंद्रित कर दिया है। करुणा हमारे समय का मर्म है। कैलाश जी किताब के जरिए जिन सवालों को उठाते हैं वे मनुष्य जाति की ऐसी मूल समस्याएं हैं, जो कल भी थीं, आज भी हैं और कल भी रहेंगी।'' इस अवसर पर श्री जोशी ने श्री सत्यार्थी की पुस्तक से एक कविता का भी पाठ किया।
सुप्रसिद्ध लेखक एवं पूर्व राजनयिक डॉ पवन के वर्मा का कहना था कि महामारी के दौर में गहन चिंतन को दर्शाती यह पुस्तक बहुत ही प्रासंगिक है। इस महामारी ने मध्यवर्ग को आत्मचिंतन करने का एक अवसर उपलब्ध कराया है। कैलाश जी जिस करुणा, कृतज्ञता, सहिष्णुता और उत्तरदायित्व की बात करते हैं, लोग अगर उसका पालन करने लगें तो उन्हें पूर्ण सुख (टोटल हैप्पीनेस) की प्राप्ति होगी। हमारे जैसे मध्यवर्गीय लोगों को करुणा, कृतज्ञता और उत्तरदायित्व जैसे मूल्यों को अपने जीवन में ज्यादा उतारने की जरूरत है, क्योंकि ये कमी हमसे ज्यादा किसी में नहीं है। इसको हमने कोरोना काल के दौरान घर लौटते दिहाड़ी मजदूरों के प्रति संवेदनहीन होकर दर्शा दिया है। पुस्तक की महत्ता को रेखांकित करते हुए श्री वर्मा ने कहा कि कैलाश जी को इसका दूसरा खंड भी लिखना चाहिए।
मशहूर लेखक एवं नेहरू सेंटर, लंदन के निदेशक श्री अमीश त्रिपाठी ने कहा, ''कैलाश जी ने बहुत महत्वपूर्ण विषय उठाया है। कोरोना के संदर्भ में ज्यादा चर्चा स्वास्थ्य और आर्थिक संकट को लेकर होती है। लेकिन लोगों के दिल और दिमाग पर उसका जो मानसिक प्रभाव पड़ा है वह सालों नहीं बल्कि दशकों तक नहीं मिटने वाला। कैलाश जी जैसे महान बुद्धिजीवी ने उसके मानसिक और आध्यात्मिक पक्ष को पकड़ा है जो दिल को छू जाता है। पुस्तक की यही सार्थकता है।''
सुप्रसिद्ध राजनीतिज्ञ एवं राज्यसभा सांसद श्री सुधांशु त्रिवेदी ने बहुत कम शब्दों में अपनी बात रखते हुए कहा कि कैलाश जी ने पुस्तक में सभ्यता की चुनौतियां और समाधान दोनों पर बहुत बढि़या विचार किया है। श्री त्रिवेदी ने कुछ नया करने का उपदेश देने वालों को आड़े हाथों लिया और कहा कि वे नया क्या कर लेंगे? जबकि हमारे पास पहले से ही कुछ ऐसी अनमोल चीजें हैं जो हमेशा नई, सदाबहार, कालजयी और प्रासंगिक रहेंगी। श्री त्रिवेदी ने परोक्ष रूप से उस बात को विश्लेषित करने की कोशिश की, जिसमें श्री सत्यार्थी कहते हैं कि करुणा, कृतज्ञता, सहिष्णुता और उत्तरदायित्व जैसे मूल्यों को हम अपने जीवन में अपनाकर ही सभ्यता के संकट का मुकाबला और नई सभ्यता का निर्माण कर सकते हैं।
परिचर्चा संचालन इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के डीन एवं कलानिधि के विभागाध्यक्ष प्रो रमेशचंद्र गौड़ ने किया। जबकि धन्यवाद ज्ञापन प्रभात प्रकाशन के श्री प्रभात ने किया।