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'इच्छा मृत्यु' पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला, कहा-'सम्मान से मरने का पूरा हक लेकिन...'

Vikas Kumar
9 March 2018 5:52 AM GMT
इच्छा मृत्यु पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला, कहा-सम्मान से मरने का पूरा हक लेकिन...
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सुप्रीम कोर्ट ने आज उस याचिका पर फैसला सुनाया है जिसमें मरणासन्न व्यक्ति द्वारा इच्छा मृत्यु के लिए लिखी गई वसीयत (लिविंग विल) को मान्यता देने की मांग की गई थी।

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने आज उस याचिका पर फैसला सुनाया है जिसमें मरणासन्न व्यक्ति द्वारा इच्छा मृत्यु के लिए लिखी गई वसीयत (लिविंग विल) को मान्यता देने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने आज इस याचिका पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया है।

इच्छा मृत्यु की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने कहा कि कुछ दिशा-निर्देशों के साथ इसकी इजाजत दी जा सकती है। कोर्ट ने कहा कि लोगों को सम्मान से मरने का पूरा हक है। कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि मरणासन्न व्यक्ति को यह अधिकार होगा कि कब वह आखिरी सांस ले।

कोर्ट ने लिविंग विल में पैसिव यूथेनेशिया को इजाजत दे दी है। कोर्ट ने इसके लिए सुरक्षा उपायों के लिए गाइडलाइन जारी की है। कोर्ट ने ऐसे मामलों में भी गाइडलाइन जारी की जिनमें एडवांस में ही लिविंग विल नहीं है। इसके तहत परिवार का सदस्य या दोस्त हाईकोर्ट जा सकता है और हाईकोर्ट मेडिकल बोर्ड बनाएगा जो तय करेगा कि पैसिव यूथेनेशिया की जरूरत है या नहीं। कोर्ट ने कहा कि ये गाइडलान तब तक जारी रहेंगी जब तक कानून नहीं आता।

आपको बता दें कि 'लिविंग विल' एक लिखित दस्तावेज होता है जिसमें कोई मरीज पहले से यह निर्देश देता है कि मरणासन्न स्थिति में पहुंचने या रजामंदी नहीं दे पाने की स्थिति में पहुंचने पर उसे किस तरह का इलाज दिया जाए। 'पैसिव यूथेनेशिया' (इच्छामृत्यु) वह स्थिति है जब किसी मरणासन्न व्यक्ति की मौत की तरफ बढ़ाने की मंशा से उसे इलाज देना बंद कर दिया जाता है।

इससे पहले प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने पिछले साल 11 अक्तूबर को इस याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था। इस याचिका पर सुनवाई के दौरान संविधान पीठ ने कहा था कि राइट टू लाइफ में गरिमापूर्ण मृत्यु का अधिकार में शामिल है ये हम ये नहीं कहेंगे। हम ये कहेंगे कि गरिमापूर्ण मृत्यु पीड़ा रहित होनी चाहिए।

कोर्ट ने कहा कुछ ऐसी प्रक्रिया होनी चाहिए जिसमें गरिमापूर्ण तरीके से मृत्यु हो सके। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि हम ये देखेंगे कि इच्छामृत्यु में यानी इच्छामृत्यु के लिए वसीहत मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज हो जिसमें दो स्वतंत्र गवाह भी हों। कोर्ट इस मामले में पर्याप्त सेफगार्ड देगा ताकि इसका दुरुपयोग न हो।

वहीं केंद्र सरकार ने इस मुद्दे पर कहा कि इच्छा मृत्यु पर अभी सरकार सारे पहलुओं पर गौर कर रही है और इस मामले में सुझाव भी मांगे गए हैं। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में इच्छामृत्यु यानी लिविंग विल का विरोध किया था लेकिन पैसिव यूथेनेशिया को मंजूर करते हुए कहा कि इसके लिए कुछ सुरक्षा मानकों के साथ ड्राफ्ट बिल तैयार है।

केंद्र सरकार ने कहा है कि अरूणा शॉनबाग में सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के आधार पर पैसिव यूथेनेशिया को मंजूर करते हैं जो कि देश का कानून है. इसके तहत जिला और राज्य स्तर पर मेडिकल बोर्ड ऐसे मामलों में पैसिव यूथेनेशिया पर फैसला लेंगे लेकिन केंद्र ने कहा इच्छा मृत्यु जिसमें मरीज कहे कि वो अब मेडिकल सपोर्ट नहीं चाहता, उसे मंजूर नहीं किया जा सकता।

इच्छामृत्यु को लेकर को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने ये भी सवाल उठाया था कि क्या किसी व्यक्ति को उसके मर्जी के खिलाफ कृत्रिम सपोर्ट सिस्टम पर जीने को मजूबर कर सकते हैं। कोर्ट ने ये भी कहा कि आजकल मध्यम वर्ग में वृद्ध लोगों को बोझ समझा जाता है ऐसे में इच्छा मृत्यु में कई दिक्कते हैं। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने ये भी सवाल उठाया था कि सम्मान से जीने के अधिकार को माना जाता है तो क्यों न सम्मान के साथ मरने को भी माना जाए। क्या इच्छामृत्यु मौलिक अधिकार के दायरे में आएगा?

गौरतलब है कि एक एनजीओ कॉमन कॉज ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा था कि संविधान के आर्टिकल 21 के तहत जिस तरह नागरिकों को जीने का अधिकार दिया गया है, उसी तरह उन्हें मरने का भी अधिकार है। इस पर केंद्र सरकार ने कहा कि इच्छा मृत्यु की वसीयत (लिविंग विल) लिखने की अनुमति नहीं दी जा सकती, लेकिन मेडिकल बोर्ड के निर्देश पर मरणासन्न का सपॉर्ट सिस्टम हटाया जा सकता है।

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