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वनवासी समाज के हित में संवेदनशील होने की जरूरत है: एनसीएसटी अध्यक्ष, हर्ष चौहान
पीआईबी, नई दिल्ली :राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग केवल शिकायत का एक मंच नहीं है बल्कि जनजातीय समाज तक जानकारी पहुंचाने का भी एक माध्यम है। आयोग का उद्देश्य जनजातीय समाज के साथ संवाद को बढ़ाना, उनके लिए बनने वाली योजनाओं को उन तक सही माध्यम से पहुंचाना और उनको आने वाली समस्याओं के समाधान के लिए एक सार्थक मंच प्रदान करना भी है।
वनवासी समाज के लोगों के लिए देश में संवेदनशील लोगों की जरूरत है। ये बातें राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष हर्ष चौहान ने आयोग द्वारा आयोजित तीन दिवसीय सेमिनार में कहीं। आयोग की तरफ से दिल्ली के विज्ञान भवन में '' जनजाति ग्रामों में वित्तीय समावेशन व अजीविका का अभिशरण " शीर्षक से एक तीन दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया गया। 28 सितंबर से शुरू हुई इस सेमिनार में विभिन्न सत्रों में देशभर से आए वक्ताओं ने अपनी बातें रखीं।
विभिन्न मंत्रालयों ने अपने-अपने मंत्रालयों के माध्यम से जनजातीय समाज के लिए किए जा रहे रहे कार्यों के बारे में अवगत कराया। आयोग के अध्यक्ष हर्ष चौहान ने अपने वक्तव्य में और भी कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा "जनजाति के मूल अर्थ को समझे जाना बेहद आवश्यक है।
अंग्रेज़ों द्वारा थमाई गई जनजाति की अवधारणाओं की वजह से इसके मूल भाव से हम कहीं न कहीं भटक गए हैं। जनजाति समुदाय के कुछ प्रमुख मुद्दे हैं जैसे, भूमि बेदखलीकरण, पुनर्वास, शिक्षा, स्वास्थ्य, वित्तीय समावेशन, वनाधिकार इत्यादि। इन सभी मुद्दों पर नीतिगत और जमीनी स्तर पर नए दृष्टिकोण से विचार किए जाने की जरूरत है। समाज में यह आम धारणा रही है कि जनजातीय समुदाय ज़िम्मेदारी है लेकिन यहां समाज यह भूल जाता है कि जनजाति समुदाय हमारी संपत्ति है। इसलिए जनजातियों की संविधान द्वार प्राप्त अधिकारों की रक्षा करना और विभिन्न सरकारी एजेंसियों के साथ मिलकर इनकी भागीदारी सुनिश्चित करना आयोग का महत्वपूर्ण प्रयास है।
नीतिगत और जमीनी स्तर पर गुणवत्तापूर्ण कार्य के साथ-साथ इनकी निरंतर निगरानी किए जाना भी बेहद जरूरी है। यहां एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि जनजातीय समाज के लिए बनने वाले योजनाएं उनको साथ लेकर ही बनाई जानी चाहिए ''