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मलेरिया की दवा से कोई लाभ नहीं है कोरोना के मरीज़ों को, महामारी के साथ जीना सीखना होगा सबको

रवीश कुमार
15 May 2020 9:10 PM IST
मलेरिया की दवा से कोई लाभ नहीं है कोरोना के मरीज़ों को, महामारी के साथ जीना सीखना होगा सबको
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हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन, मलेरिया की दवा है। इस दवा को लेकर शुरू में काफी उत्साह दिखाया गया है। लेकिन अब कोविड-19 के संकट के करीब साढ़े चार महीने बीत जाने के बाद इस दवा को लेकर उत्साह ठंडा पड़ गया है। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल ने चीन और फ्रांस में हुए शोध के नतीजों पर एक लेख छापा है जिसमें पाया गया है कि इस दवा को देने से कोविड-19 के मरीज़ों में ख़ास सुधार नहीं होता है। उन मरीज़ों की तुलना में जिन्हें यह दवा नहीं दी जाती है।

अमरीका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अप्रैल के शुरू में कहा था कि यह दवा ठीक कर देगी। उस वक्त भी अमरीका के बड़े वैज्ञानिकों और डॉक्टरों ने सवाल उठाए थे। मगर इसी बहाने कुछ दिनों तक चर्चा चल पड़ी। कई देश इस दवा का आयात करने लगे जिनमें से अमरीका भी है। भारत ने निर्यात किया। इसे अपनी कूटनीतिक सफलता के रूप में देखा। ट्रंप की मूर्खता का अंदाज़ा सभी को था लेकिन महामारी ऐसी है कि हर कोई कुछ दिनों तक भरोसा तो करना ही चाहता है।

अमरीका के फूड एंड ड्रग्स कंट्रोलर FDA ने चेतावनी दी थी कि इस दवा को न तो अस्पताल में दिया जाए और न ही क्लिनिकल ट्रायल में इस्तमाल हो। क्योंकि इससे ह्रदय के धड़कनों की तारतम्यता गड़बड़ा जाती है। अमरीका में अभी भी इसी दवा पर अध्ययन चल रहा है। दूसरे देशों में भी चल रहा है। अमरीका के NIH यानि नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ भी प्रयोग कर रहा है कि क्या दूसरी दवाओं के साथ इसे देने से कोविड-19 के प्रसार को रोका जा सकता है।

ब्रिटिश मेडिकल जर्नल ने छापा है कि चीन और फ्रांस के प्रयोगों से कुछ ख़ास नहीं निकला है। कोरोना की महामारी में यह दवा कारगर नहीं है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के डॉ माइक रेयान ने कहा है कि कोरोना के इस विषाणु के खत्म होने को लेकर जिनते दावे किये जा रहे हैं, उनसे सतर्क रहने की ज़रूरत है। हो सकता है अब यह वायरस हमारे जीवन का हिस्सा हो जाए। जैसे HIV कहां गया। अगर टीका मिल भी जाता है तब भी इसे नियंत्रित करने के लिए व्यापक अभियान की ज़रूरत होगी। ऐसा भी नहीं है कि टीका मिला और सबके घर तक पहुंच गया।

इस वक्त टीका खोजने पर 100 से अधिक प्रयोग चल रहे हैं। डॉ रेयान का कहाना है कि ऐसे बुहुत से टीके बने लेकिन बीमारियां खत्म नहीं हुईं। आज तक चेचक होता ही रहता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस बात का यह भी मतलब है कि हम इस महामारी के दूर होने की खुशफहमी ने पालें। जीवन की संस्कृति को बदल लें। सतर्क करें। तभी हम इसके फैलने को नियंत्रित कर सकते हैं।

रवीश कुमार

रवीश कुमार

रविश कुमार :पांच दिसम्बर 1974 को जन्में एक भारतीय टीवी एंकर,लेखक और पत्रकार है.जो भारतीय राजनीति और समाज से संबंधित विषयों को व्याप्ति किया है। उन्होंने एनडीटीवी इंडिया पर वरिष्ठ कार्यकारी संपादक है, हिंदी समाचार चैनल एनडीटीवी समाचार नेटवर्क और होस्ट्स के चैनल के प्रमुख कार्य दिवस सहित कार्यक्रमों की एक संख्या के प्राइम टाइम शो,हम लोग और रविश की रिपोर्ट को देखते है. २०१४ लोकसभा चुनाव के दौरान, उन्होंने राय और उप-शहरी और ग्रामीण जीवन के पहलुओं जो टेलीविजन-आधारित नेटवर्क खबर में ज्यादा ध्यान प्राप्त नहीं करते हैं पर प्रकाश डाला जमीन पर लोगों की जरूरतों के बारे में कई उत्तर भारतीय राज्यों में व्यापक क्षेत्र साक्षात्कार किया था।वह बिहार के पूर्व चंपारन जिले के मोतीहारी में हुआ। वह लोयोला हाई स्कूल, पटना, पर अध्ययन किया और पर बाद में उन्होंने अपने उच्च अध्ययन के लिए करने के लिए दिल्ली ले जाया गया। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधि प्राप्त की और भारतीय जन संचार संस्थान से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा प्राप्त किया।

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