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ताजमहल दुनिया का सातवां अजूबा, सातवां आश्चर्य या सेवेंथ वंडर कहा जाता है। मगर, जिस तेजो महल के धरातल पर यह ताजमहल स्थित है वह दुनिया पहला अजूबा होने का पूरा दमखम रखता है। अगर तेजोमहल की सच्चाई सामने आ जाती है तो यह फर्स्ट वंडर ऑफ द वर्ल्ड माना जाने लगे तो आश्चर्य नहीं होगा। इसकी क्या है वजह जानेंगे तो आप भी चौंक जाएंगे।
ताजमल में 700 ऐसे चिन्ह खोजे गये हैं जो बताते हैं कि इससे पहले यहां मौजद स्थापत्य में बदलाव किए गये। यानी जो तेजोमहल था उसे री-कंस्ट्रक्ट किया गया। तेजो महल को नागनाथेश्वर भी कहा जाता था। इसे राजा मान सिंह का भवन भी कहा जाता था। महाराजा जय सिंह ने शाहजहां को यह महल सुपुर्द किया था ताकि वो अपनी बेगम मुमताज को दोबारा दफन कर सके। इससे पहले बुरहानपुर में मुमताज को दफनाने की बात कही जाती है।
सबूत दर सबूत समझिए कि ताजमहल ही तेजो महल है
मुख्य गुंबद के किरीट पर मौजूद कलश हिन्दू मंदिरों के समान है। 1800 ईस्वी तक यह कलश स्वर्ण का हुआ करता था जो अब कांसे का है। हिन्दू मदिरों की यह खासियत रही है कि वह पहले सोने का हुआ करता था।
मुख्य गुंबद के कलश पर ही चंद्रमा भी बना हुआ है। चंद्रमा और कलश की नोक मिलकर त्रिशूल का आकार बनाती है।
खास बात यह भी है कि तेजो महल या ताज महल का शिखर उल्टे कमल से सुसज्जित है। गुम्बद के किनारे इससे सम्मिलित होते हैं।
तेजोमहल के गुम्बद पर मौजूद कलश अष्टधातु का है। त्रिशूलाकार पूर्ण कुंभ के मध्य दंड के शिखर पर नारियल का आकार है।
यह भी उल्लेखनीय है कि कब्र के ऊपर गुंबद के बीचो बीच अष्टधातु की एक जंजीर लटक रही है। शिवलिंग पर जल जिस सोने के कलश से आया करता था वह इसी जंजीर पर टंगा रहता है।
दावा किया जाता है कि जब इस स्वर्ण कलश को शाहजहां के खजाने में जमा करवा दिया गया तो वह जंजीर लटकी रह गयी।
अंग्रेजों के जमाने में लॉर्ड कर्जन ने इसी जगह पर एक दीप लटकवा दिया गया, ऐसा भी दावा किया जाता है। यह दीप आज भी है।
ताजमहल पहले बना या मुमताज पहले मरीं?
सवाल यह भी उठाए जाते हैं कि क्या मुमताज का शव ताजमहल बनने के बाद वहां दफनाया गया? या फिर मुमताज के शव को दफन करने के बाद वहां ताजमहल की इमारत खड़ी की गयी? मुमताज 1631 ईस्वी में दिवंगत हुईं और ताजमहल का निर्माण 1632 में शुरू हुआ। 1653 में ताजमहल बनकर तैयार हुआ। ऐसे में किस विश्वास को माना जाए- इस पर अलग-अलग मत हैं।
एक दावा यह भी है कि हुमायूं, अकबर, मुमताज, एतमातुद्दौला, सफदरजंग जैसे सारे शाही और दरबारी लोगों को हिन्दू महलों या मंदिरों में ही दफनाया गया।
हिन्दू मंदिरों को दिया गया इस्लामिक लुक?
दावा यह भी किया जाता है कि 1632 में हिन्दू मंदिरो को इस्लामिक लुक देने का काम शुरू हुआ। 1649 में इसका मुख्य द्वार बना जिस पर कुरान की आयतें तराशीं गयीं। इस मुख्य द्वार के ऊपर हिन्दू शैली का छोटे गुम्बद के आकार का मंडप है। आसपास मीनारें खड़ीं करने और फव्वारे को फिर से बनाने का काम किया गया।
नदी की ओर ताज के दरवाजे के लड़की के एक टुकड़े की अमेरिकन प्रयोगशाला में जांच के हवाले से दावा किया जाता है कि लकड़ी का वह टुकड़ा शाहजहां के काल से 300 साल पहले का था। ताज और भी पुराना हो सकता है क्योंकि इसके दरवाजे कई बार आक्रमणकारियों द्वारा तोड़े और बनाए गये।
अकबर द ग्रेट मुगल में विसेंट स्मिथ ने लिखा है कि 1630 में आगरा केवाटिका वाले महल में बाबर ने जीवन से मुक्ति पायी थी। दावा है कि यह तेजो महल ही था। बाबर की बेटी गुलबदन ने हुमायूंनामा के ऐतिहासिक वृत्तांत में इसे 'रहस्य महल' बताया है।
अंगिरा कहलाता था आगरा, कहां है पांचवां शिव मंदिर?
कभी अंगिरा नाम से मशहूर आगरा ऋषि अंगिरा की तपोभूमि हुआ करती थी। वे भगवान शिव के उपासक थे। 5 शिवमंदिरों में यहां शिव के पूजन व दर्शन प्रचलित थे। आज भी उनमें से चार मौजूद हैं- बालकेश्वर, पृथ्वीनाथ, मनकामेश्वर और राजराजेश्वर। पांचवें शिव मंदिर के बारे में दावा यही है कि इसे ही सदियों पूर्व कब्र में बदल दिया गया। तेजो महालय मंदिर ही ताजमहल है।
लखनऊ के वास्तु संग्रहालय के ऊपर तीसरी मंजिल में एक संस्कृत में शिलालेख है जो 1155 ईस्वी का है। इसमें राजा परमर्दिदेव के मंत्री सुलक्षण द्वारा कहा गया है- "स्फटिक जैसाशुभ्र इन्दु मौलीश्वर का मंदिर बनाया गया। उसमें निवास करने के बाद शिवजी को कैलाश लौटने की इच्छा ही नहीं रही। वह मंदिर आश्विन शुक्ल पंचमी, रविवार को बनकर तैयार हुआ।"