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गुजरे हुए कारवां का गुबार ये हाथ और ये मुट्ठियाँ है
मनीष सिंह
कल सुबह पहली तस्वीरें आयी तो लगा यमुना एक्सप्रेसवे पर जलियांवाला बाग की तैयारी है। रात के अंधेरे में रावी के तट पर लाशें जलाने की पुनरावृत्ति के बाद सरकार ने अगले मुकाम की मुकम्मल तैयारी की थी। पंक्तियों में खड़ी फ़ौज मानो भारत पाकिस्तान सीमा पर घुसपैठ रोकने को सन्नद्ध थी।
मगर जैसा कि इतिहास है, एन मौके पर हाथ पैर फूल गए, माफी मांग ली गयी। बाइज्जत प्रियंका-राहुल को पीड़ित परिवार से मिलाने लेकर गए। मगर इतिहास का एक सफहा लिखा जा चुका है। आने वाले भविष्य की प्रतिनिधि तस्वीर खींची जा चुकी थी। जिसके केंद्र में यह दो मुट्ठियाँ है।
एक मुट्ठी सत्ता की मयास में मदहोश दानव की है। भगवे और खाकी के चोले में उचित-अनुचित-सत्य -न्याय-अधिकार-संविधान से परे जान और सम्मान लेने को उतारू सत्ता है। यह पुलिस है, अफसरशाही है, सत्ता का रोड रोलर तंत्र है।
और जान लीजिए, कि इस औरत के दामन पर हाथ डालता वह दूसरा हाथ आपका है। आप, याने हजार साल बाद आई हिन्दू सत्ता के हिमायतियों की है। यह मुट्ठी नब्बे साल से फिजाओं में रक्त फैलाकर, उसमे अबाधित सत्ता की लालिमा खोजती रही है। याद कीजिये-"अंधेरा छंटेगा, सूरज उगेगा, कमल खिलेगा"। एक मजबूत औरत के दामन पर, यह खिले कमल का कीचड़ सना हाथ है।
यह आपका हाथ है। उन तटस्थों का, शिक्षितो का, प्रोफेशनल्स का, घटिया राजनीति को नापसंद करने का दम भरते हुए, बूथ के अकेलेपन में उन्हें दम दे आने वालों का। दिल से कहिये- भारत के "अघोषित राजपरिवार" के गिरहबान पर हाथ डालकर आपको छुपी खुशी मिली या नही?? "नकली गाँधीयो" को पटककर, घसीटकर जेल में डालने की कल्पना आपको तरावट देती है या नही।
अब जरा दूसरी मुट्ठी को भी देखिये। वह अपने कुर्ते से, आपकी मुट्ठी नही छुड़ा रही। उसके दुपट्टे की ओर बढ़ते हाथ को नही थाम रही। वह नकली ही सही, गांधी का नाम ओढ़े हुए है। वह अपनी मुट्ठी दृढ़ता से भींचे हुए है। और आपको विश्वास नही होगा, यह एक नही, करोड़ो मुट्ठियाँ है।
देश इन मुठ्ठियों में बदल रहा है। बुरी तरह से विभाजित और युद्धपिपासु हो चुके देश मे शांति और आराम से किनारे बैठने का विकल्प छीना जा चुका है। अब आपको और मुझे इन दो मुट्ठियों में से एक बनना है। यहां चयन सिर्फ दूसरी मुट्ठी बनने का है। पहली मुट्ठी तो आपको पूछे बगैर बनाया जा चुका है।
और अगर तय किया है पहली मुट्ठी होने का, तो परिवार को बुलाइये। बिठाइए, आंखों में आंखें डालकर बता दीजिए कि हम सबको दुपट्टे खींचने वाला हाथ, और दामन फाड़ने वाली मुट्ठी होना है। बताइये कि हमे एक हजार साल के अत्याचारों का न्याय चाहिए। हमे रक्त में डूबा भविष्य चाहिए। हिंसा और प्रतिहिंसा में घिरा समाज चाहिए।
इसलिए कि नफरत और बदले की औपचारिक पारिवारिक शिक्षा, इस क्लेरिटी के बगैर आपका भाई, बेटा, पति, पिता या बहन कहीं स्वेच्छा से दूसरी मुट्ठी बन गया .. तो रात के अंधेरे में जलती चिता की एक और तस्वीर आएगी।
सिर्फ तस्वीर ही आएगी.. यह होना लाजिम है। क्योंकि आने वाले कारवां का गुबार ये हाथ और ये मुट्ठियाँ हैं।