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जो धरती का सीना चीरकर अन्न उगाते हैं, वह किसान कहलाते हैं
जो दुश्मनों का सीना चीरकर
देश की रक्षा करते हैं ।
वह सैनिक कहलाते हैं ।
जय जवान,जय किसान
दिल्ली के सिंधु बॉर्डर पर क्या खूब नजारा है, किसान पिता कर रहा है विरोध कृषि कानून का और उस किसान का सैनिक बेटा कर रहा है देश की सीमा पर देश की रक्षा ।
कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का प्रदर्शन जारी है,सर्द मौसम में भी आंदोलनकारी किसान दिल्ली बॉर्डर पर डटे हुए हैं, सोनीपत के सिंधु बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में एक 32 वर्षीय किसान अजय की मौत हो गई है
अजय एक एकड़ जमीन का किसान था और किसान आंदोलन में वह भी हिस्सा ले रहा था,रात को खाना खाकर सोया था और सुबह नहीं उठा,परिजनों ने कहा कि उसकी ठंड के कारण मौत हुई है ।
वर्ष 2020 ने क्या-क्या रंग दिखाएं,पहले मज़दूर सड़क अब किसान धरने पर,अजीब सा माहौल है, हर शख्स डरा,सहमा,परेशान मुश्किल से घर का गुजारा कर रहा है, इस पर नए क़ानून, नए क़ानून से किसानो को कुछ समझ में नहीं आ रहा,सरकार किसानों की हितेषी है,या दलालों की ।
यह सफेद कॉलर के दलाल, धीरे धीरे पूरे भारत के कारोबार को अपनी मुट्ठी में ले रहे हैं,जैसे अंग्रेज भारत में व्यापार के नाम पर आए थे और सालों पूरे भारत पर राज किया था। अब धीरे-धीरे देश की बागडोर इन सफेद कॉलर वाले दलालों के हाथों में देने की तैयारीयां की जा रही है । भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री जी ने गेहूं की कमी के कारण भारत की जनता से हफ्ते में एक दिन उपवास रखने को कहा था,उन्होंने अन्न भंडारण को लेकर भारत में कानून बनाया था,इस कानून के तहत कोई भी तय सीमा से अधिक अन्न भंडारण नहीं कर सकता था। अब सरकार ने भंडारण की सीमा खत्म कर दी है,व्यापारी जितना चाहे उतना अन्न भंडारण कर सकते है,
किसान मंडियों में अपना गेहूं मात्र 1850 प्रति क्विंटल यानी
₹18: 50 पैसे प्रति किलो बेचता है। वहीं गेहूं बड़े-बड़े शॉपिंग मॉलों में ₹50 प्रति किलो के हिसाब से बेचा जाता है,यानी ₹5000 प्रति क्विंटल अब आप इस बात से अंदाजा लगा लीजिए बीच के दलाल कितना पैसा कमाते हैं,किसान जो दिन-रात खेतों में मेहनत करता है,रात भर खेतों में पानी डालता है,महंगा बीज खरीदना है,उसकी लागत भी मुश्किल से निकल पाती है। 120 करोड़ की आबादी वाले देश में 70 करोड़ किसान रहते हैं,अधिकतर छोटे किसान गरीबी रेखा से नीचे अपना जीवन यापन करते हैं, अगर भारत के छोटे किसानों को देखें तो उनकी स्थिति बड़ी दयनीय होती है,पैरो में फटा हुआ प्लास्टिक का जूता,मेले एवं फटे हुए कपड़े,साहूकारों की दुकानों पर अपने ज़ेवर गिरवी रखते हुए दिख जायेंगे ।
इस दौर में बड़े कारोबारी महंगे दामों में खेती की ज़मीन इसलिए खरीदते हैं,क्योंकि सरकार ने खेती की आमदनी पर इनकम टैक्स में छूट दी है, यह बड़े व्यापारी दिखाने के लिए खेती करते हैं,और अपने काले धन को खेती की आड़ में सफेद करते हैं।
जो किसान इन बड़े व्यापारियों को अपनी खेती की ज़मीन बेचते हैं,कुछ वर्ष तो ऐश से गुज़रते हैं इन किसानों का पैसा धीरे-धीरे खत्म होने लगता है, घर में खाने के फांकें पड़ने लगते हैं, तो यही किसान अपनी बेची हुई ज़मीन पर मज़दूरी करने के लिए मजबूर हो जाते हैं ,अगर किसानों की आत्महत्याओं के आंकड़े देखें तो समझ में आएगा हमारे किसान कितने परेशान हैं । राष्ट्रीय अपराध लेखा कार्यालय के आँकड़ों के अनुसार भारत भर में वर्ष 2008 में 16196 किसानों ने आत्महत्याएँ की थी। वर्ष 2009 में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या में 1172 की वृद्धि हुई। 2009 के दौरान 17368 किसानों द्वारा आत्महत्या की आधिकारिक रपट दर्ज हुई। राष्ट्रीय अपराध लेखा कार्यालय द्वारा प्रस्तुत किये गए आँकड़ों के अनुसार 1995 से 2011 के बीच 17 वर्ष में 7 लाख, 50 हजार, 860 किसानों ने आत्महत्याएं की थी। पिछले दस वर्षों में 70 लाख किसानों ने खेती करना बंद कर दिया। वर्ष 2018 में देश भर में 10000 से अधिक किसानों ने आत्महत्याएं की।
एक सच्ची घटना जिसका में साक्षी हूँ, मेरा एक परिचित किसान उसने अपने खेत में सब्जियां लगाई थी, वह खुशी-खुशी ट्रैक्टर की ट्रॉली में 10 क्विंटल कद्दू भरकर भोपाल सब्जी मंडी लाया। सब्जी तुड़वाई एवं ट्रैक्टर का भाड़ा तकरीबन ₹2000 का खर्चा आया था,मंडी में दलालों ने उसकी सब्जी की बोली लगाई तो पूरा कद्दू केवल 1850 रुपए में बिका, 5% दलाल का कमीशन लगभग ₹100 दलाल का कमीशन काटकर उसको 1750 रुपए दिए गए यह रकम देखकर मेरा परिचित किसान आंसुओं से रोने लगा । उसका वही कद्दू मंडी में ₹20 किलो बिका रहा था, बिचारे किसान को 1 रुपए 75 पैसे किलो के हिसाब से पैसे मिले और वही कद्दू ₹20 किलो में बिक रहा था। फिर से लूट गया एक किसान ।
ये सिलसिला क्या यूँ ही
चलता रहेगा,
दलाल अपनी चालों से
कब तक किसान को,
छलता रहेगा ।