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सुप्रीम कोर्ट के आदेश से हजारों इंजीनियरिंग डिग्रियां खारिज, सिर्फ इस तरीके से बच सकती है डिग्री
नई दिल्ली : डीम्ड विश्वविद्यालयों से पिछले 16 साल में पत्राचार से इंजिनियरिंग की डिग्री हासिल करने वाले हजारों छात्रों को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा झटका दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को देश के सभी डीम्ड विश्वविद्यालयों पर नियामक प्राधिकारों की पूर्व मंजूरी के बिना 2018-19 सत्र से कोई भी दूरस्थ पाठ्यक्रम चलाने पर रोक लगा दी है।
साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में देश की चार डीम्ड यूनिवर्सिटी में 2001-2005 सत्र के बाद से दूरस्थ शिक्षा के जरिए हजारों छात्रों को मिली इंजीनियरिंग की डिग्रियों को अमान्य घोषित कर दिया है। इसके बाद इन डिग्रियों के दम पर नौकरी हासिल करने वालों के सामने रोजगार का संकट खड़ा हो गया है।
इस मामले में जस्टिस एके गोयल और यूयू ललित की बेंच ने पाया कि यूनिवर्सिटी ग्रांट कमिशन (यूजीसी) और ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एआईसीटीई) ने इंजिनियरिंग की पढ़ाई के लिए पत्राचार की पढ़ाई को मान्यता नहीं दी थी। इसके अलावा डिस्टेंस एजुकेशन काउंसिल द्वारा ऐसे कोर्सेज को दी गई मान्यता गैरकानूनी थी।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से कुछ हद तक इस बात से भी पर्दा उठा है कि कैसे बिना किसी गहन जांच के इस तरह के कोर्स करवाए जा रहे थे। ये विश्वविद्यालय एआईसीटीई से मान्यता न होने के बावजूद 2001 से पत्राचार के जरिए इंजिनियरिंग की पढ़ाई करवा रहे थे। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से डीम्ड यूनिवर्सिटीज पर नजर रखने के लिए तंत्र बनाने का भी निर्देश दिया है।
कोर्ट ने कहा कि यूजीसी शिक्षा के व्यावसायीकरण को रोक पाने में पूरी तरह असफल रही है। कोर्ट ने डीम्ड यूनिवर्सिटीज की कई स्तर पर जांच करने को कहा है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे चार संस्थानों को पिछली तारीख से मंजूरी देने के मामले में सीबीआई जांच का भी आदेश दिया है।
दरअसल कोर्ट ने चार डीम्ड यूनिवर्सिटीज- जेआरएन राजस्थान विद्यापीठ, इंस्टिट्यूट ऑफ अडवांस स्टीज इन एजुकेशन, राजस्थान, इलाहाबाद एग्रीकल्चर इंस्टिट्यूट और विनायक मिशन रिसर्च फाउंडेशन, तमिलनाडु में करवाए जा रहे पत्राचार कोर्सेज की मान्यता को लेकर दाखिल हुईं कई याचिकाओं पर यह फैसला दिया।
छात्र इस तरीके से बचा सकते हैं डिग्री
आपको बता दें कोर्ट ने 2001 से 2005 के बीच इन विश्वविद्यालयों में इंजिनियरिंग के लिए दाखिला लेने वाले छात्रों को थोड़ी राहत दी है। छात्रों को अपनी डिग्री बचाने के लिए AICTE की परीक्षा में बैठना होगा। परीक्षा में सफल होने पर उनकी डिग्री बच सकती है। साथ ही विश्वविद्यालयों को इन सभी छात्रों से वसूली गई फीस व अन्य खर्च लौटाने होंगे। हालांकि कोर्ट ने 2005 के बाद दाखिला लेने वाले छात्रों के प्रति कोई सहानुभूति नहीं दिखायी क्योंकि उन्हें इस बात की जानकारी थी कि ये कोर्स मान्यता प्राप्त नहीं हैं।