राष्ट्रीय

तम्बाकू निषेध दिवस 31 मई पर विशेष, तम्बाकू कैंसर का सबसे अहम कारण - ज्ञानेन्द्र रावत

Shiv Kumar Mishra
30 May 2020 7:15 PM GMT
तम्बाकू निषेध दिवस 31 मई पर विशेष, तम्बाकू कैंसर का सबसे अहम कारण	- ज्ञानेन्द्र रावत
x


तम्बाकू एक ऐसा जहर है जो पच्चीस रोगों और चालीस तरह के कैंसर को जन्म देता है। अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो तम्बाकू के सेवन से इंसान जिन रोगों का शिकार होता है उनमें कैंसर, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, फेफड़े और श्वांस सम्बंधी रोग प्रमुख हैं। कैंसर में खासतौर से मुंह का कैंसर, गले का कैंसर, फेफड़े का कैंसर, प्रोस्टेट ग्रंथि का कैंसर, पेट का कैंसर और ब्रेन ट्यूमर आदि प्रमुख रूप से शामिल हैं। तम्बाकू सेवन के मामले में बांग्लादेश 43.3 फीसदी के साथ पहले, रूस 39.3 फीसदी के साथ दूसरे, 34.6 फीसदी के साथ भारत तीसरे नम्बर पर है। चीन 28.1 फीसदी के साथ चैथे स्थान पर है। गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रतिवर्ष 31 मई को विश्व तम्बाकू रहित दिवस के रूप में मनाता है। वह बरसों से तम्बाकू रहित विकास का नारा दे रहा है। उसके अनुसार सभी सरकारों का दायित्व है कि वे धूम्रपान के बढ़ते प्रचलन को खासकर बच्चों व नौजवानों पर विशेष ध्यान दें और उन्हें हमेशा के लिए इस अभिशाप से मुक्ति दिलाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करें। उस दशा में ही हम अपना और अपने बच्चों का भविष्य सुखी और स्वस्थ रखने में कामयाब हो सकेंगे। गौरतलब है कि धूम्रपान की लत जितनी जल्दी शुरू होती है, उसका दुष्परिणाम उतना ही गंभीर होता है। वयस्क व्यक्ति के नियमित धूम्रपान करने के कारण 50 फीसदी अधिक मृत्यु की संभावना रहती है। इनमें आधे से अधिक तो अधेड़ अवस्था में ही अपनी जीवन लीला समाप्त कर देते हैं। ऐसे लोगों की उम्र 22 साल कम हो जाती है।

असलियत यह है कि समूची दुनिया में धूम्रपान करने वालों की तादाद एक बिलियन है। इनमें 19 फीसदी वयस्क जिसमें 33 फीसदी पुरुष और 6 फीसदी महिलाएं हैं। 80 फीसदी मध्य एवं निम्न आय वर्ग के लोग हैं। 13 से 15 साल के धूम्रपान करने वाले युवाओं की तादाद 24 मिलियन है जिनमें 13 मिलियन तम्बाकू उत्पाद का प्रयोग करते हैं। तम्बाकू के सेवन से दुनिया में 7 मिलियन लोग हर साल मौत के मुंह में चले जाते हैं। 20 वीं सदी में धूम्रपान से 100 मिलियन लोगों की मौत हुई जबकि आशंका है कि 21 वीं सदी में तकरीब एक बिलियन लोग इसके शिकार होंगे। जहां तक अमेरिका का सवाल है वहां 40 मिलियन लोग धूम्रपान करते हैं। इनमें 4.7 मिलियन मध्यम आयु वर्ग यानी हाईस्कूल में पढ़ने वाले छात्र हैं। वहां धूम्रपान से हर साल मरने वालों की तादाद तकरीब 5 लाख है। हमारे देश में प्रतिवर्ष 120 मिलियन लोग धूम्रपान करते हैं। हमारे देश में धूम्रपान करने वालों की तादाद समूची दुनिया की 12 फीसदी है। यह जानते -समझते हुए कि यह एक बुरी आदत है। तम्बाकू में कैंसर के 70 रसायन पाये जाते हैं। एक सिगरेट में लगभग 400 रसायन तथा 20 कैंसर पैदा करने वाले पदार्थ होते हैं। एक धूम्रपान करने वाले व्यक्ति में सामान्य व्यक्ति की अपेक्षा हृदयरोग तथा कैंसर की संभावना 25 से 30 फीसदी अधिक होती है। इसके बावजूद 1998 से लेकर 2016 के बीच देश में तम्बाकू का सेवन करने वाले लोगों की तादाद में 36 फीसदी का इजाफा हुआ। यह जानने के बाद कि तम्बाकू के पौधे से कृषि, मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को काफी नुकसान होता है।

ग्लोबल एडल्ट टोबेको सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार भारत की कुल 130 करोड़ की आबादी में से 28.6 फीसदी लोग तम्बाकू का सेवन करते हैं। यही नहीं 18.4 फीसदी युवा न सिर्फ तम्बाकू, बल्कि बीड़ी, खैनी, गुटका और अफीम का भी सेवन करते हैं। एक अन्य आकलन के अनुसार देश में तकरीब 15 करोड़ पुरुष और 15 साल से अधिक की 7.8 करोड़ से अधिक महिलाएं नियमित रूप से धूम्रपान की लत की शिकार हैं। यही नही 40 लाख के करीब 15 साल से कम उम्र के बालक इस लत के शिकार हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो देश में मिजोरम ऐसा राज्य है जहां 34.4 फीसदी लोग धूम्रपान करते हैं जो पूरे देश में सबसे ज्यादा हैं। आजकल नवयुवतियों-कालेज छात्राओं और महिलाओं में धूम्रपान एक फैशन और नौजवान पीढ़ी की पहली पसंद हुक्का बन गया है। युवाओं में इसकी लत का बढ़ना खतरनाक संकेत है। मंुबई, दिल्ली जैसे महानगरों में हुक्का बारों की बढ़ोतरी पर सरकारों की चुप्पी समझ से परे है। हमारे यहां हर साल 85,000 पुरुषों में और 34,000 महिलाओं में कैंसर के नए मामले सामने आते हैं जिनमें 90 फीसदी से ज्यादा मामलों में तम्बाकू का प्रयोग होता है। धूम्रपान के कारण महिलाओं में कैंसर के मामलों के अलावा मासिक धर्म के कम होने, दर्द होने, जल्दी बंद होने, विटामिन सी की कमी होने, शरीर पर बाल अधिक होने, चेहरे पर झुर्रियां होने और उनके दूध में निकोटिन की मात्रा बढ़ने की शिकायतें आम होती हैं। साथ ही गर्भवती महिला के धूम्रपान करने से बच्चे के मंदबुद्धि होने, बजन कम होन और श्वांस नली में विकार होने की आशंका बनी रहती है।

तम्बाकू 41 फीसदी कैंसर से होने वाली मौतों के लिए तो जिम्मेवार है ही, वह न सिर्फ इसका सेवन करने वालों को बीमार कर रहा है बल्कि आसपास रहने वाले लोग भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। एम्स के सर्जिकल आॅन्कोलाॅजी डिपार्टमेंट के प्रोफेसर एस वी एस देव का कहना है कि एम्स में पिछले कई सालों से ऐसे रोगी आ रहे हैं जिनको ये बीमारी उनके आसपड़ोस, घर में रहने वाले लोगों से हुई। एक 45 वर्षीया महिला को इसलिए फेफड़े का कैंसर हुआ क्योंकि उसका पति बहुत धूम्रपान करता था और उसके छोटे से घर में धुआं भरा रहता था, उसकी वजह से उसके पति को भी गले का कैंसर हुआ। एम्स के ही एक अन्य प्रोफेसर डा. आलोक ठक्कर कहते हैं कि अब तो ऐसे बच्चों के केस आ रहे हैं जो घरवालों के धूम्रपान करने के कारण अस्थमा और कान की बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। यही नहीं घरवालों के धूम्रपान या तम्बाकू सेवन के कारण महिलाओं में बच्चेदानी के कैंसर के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। इस बात का खुलासा एमजीएम मेडीकल कालेज, जमशेदपुर के शोध में किया गया है। मेडीकल कालेज की गायनिक विभाग की प्रोफेसर डा. बनीता सहाय का कहना है कि तम्बाकू के सेवन से पुरुषों के वीर्य में एचपी वायरस फैल जाता है। एचपी वायरस को सर्विक्स यानी बच्चेदानी के मुख के कैंसर का प्रमुख कारणों में से एक माना जाता है। उनके अनुसार पहले महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के मामले अधिक पाये जाते थे लेकिन अब बीते बरसों से बच्चेदानी के मुख के कैंसर के मामले तेजी से बढ़े हैं। देश में ऐसे मामले दूसरे देशों की तुलना में अधिक सामने आ रहे हैं। ऐसे मामलों में देश में हर आठ मिनट में एक महिला की मौत हो रही है। एम्स की प्रोफेसर डा. नीरजा बटाला का कहना है कि यदि 45 साल तक की महिलाओं को एचपीवी का टीका लग जाय तो बच्चेदानी के मुख के कैंसर से 80 फीसदी तक बचा जा सकता है।

तम्बाकू के सेवन के चलते देश में हर साल एक मिलियन यानी दस लाख लोगों की मौत हो जाती है। जबकि 2 अक्टूबर 2008 से सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान करने पर पाबंदी है। लेकिन शुरू शुरू में तो इस पाबंदी का कुछ असर दिखाई भी दिया लेकिन उसके बाद यह बेमानी हो गयी और लोग खुलेआम धूम्रपान करने लगे। यही हाल तम्बाकू नियंत्रण एवं उद्योगों की जबावदेही के लिए बनी अंर्तराष्ट्र्ीय संधि ''फ्रेमवर्क कन्वेंशन आॅन टोबेको कन्ट्र्ौल'' का है। यह दुनिया में पहली ऐसी संधि है जो कि जन स्वास्थ्य व उद्योगों की जबावदेही के लिए बनी है लेकिन इसको भी प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया जा रहा है। विडम्बना यह कि सिगरेट निर्माता कंपनियां उपभोक्ताओं को ही केन्द्र बिन्दु नहीं बना रहीं बल्कि सरकारी माध्यमों का भी अपने हिसाब से इस्तेमाल कर रही हैं। अब सवाल यह उठता है कि प्रभावकारी तम्बाकू नियंत्रण एव उद्योगों की जबावदेही के लिए बनी राष्ट्र्ीय और अंर्तराष्ट्र्ीय संधि होने के बावजूद आखिर इन कंपनियों पर प्रभावकारी नियंत्रण क्यों नहीं लग पा रहा है। गौरतलब है कि यह उतना आसान नहीं है। कारण इनका वैश्विक स्तर पर इतना जबरदस्त जाल फैला हुआ है जिसके चलते केवल संधियों से तम्बाकू नियंत्रण की आशा बेमानी है। जबतक कि हम इनका सही ढंग से पालन नहीं करते और नीति निर्धारक ही उनका उल्लंघन ना करें। ऐसी स्थिति में हम दूसरे से कैसे अपेक्षा करेंगे कि वह उसका पालन करे। सबसे बड़ी बात यह कि तम्बाकू से होने वाली हर मौत को रोका जा सकता है यदि तम्बाकू सेवन पर अंकुश लगे। साथ ही धूम्रपान नियंत्रण में स्वास्थ्य सम्बंधी कार्यों में लगे लोगों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी क्योंकि उनके द्वारा प्रस्तुत उदाहरण अधिकांश समाज को स्वीकार्य होंगे। इस दिवस का यही पाथेय है।

Next Story