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आज हम एक आत्मविश्वासी राष्ट्र हैं, जो हमारी संस्कृति और मूल्यों में निहित है : एस. जयशंकर
पीआईबी, नई दिल्ली: 'आजादी का अमृत महोत्सव' के अंग के रूप में- भारत की गौरवशाली आजादी के 75वें वर्ष का उत्सव मनाते हुए, डीडी न्यूज ने सात एपिसोड की एक कॉन्क्लेव श्रृंखला का समापन किया। इस कार्यक्रम के अंतर्गत प्रतिष्ठित गणमान्य व्यक्तित्वों, नीति निर्माताओं और क्षेत्र विशेषज्ञों को एक साथ एक मंच पर आमंत्रित किया गया। कॉन्क्लेव में युवा शक्ति से लेकर सामाजिक सशक्तिकरण और इनके माध्यम से जीवन की सुगमता तक जैसे नए भारत के पहलुओं को शामिल करते हुए कई विषयों पर विचार-विमर्श किया गया।
इस श्रृंखला के समापन सम्मेलन में 'इंडिया फर्स्ट' विदेश नीति-एक विश्वगुरु का निर्माण विषय पर विचार-विर्मश किया गया जिसमें केंद्रीय विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर के साथ विशेष वार्तालाप भी किया गया। सत्र का संचालन ओआरएफ के विशिष्ट फेलो डॉ. हर्षवर्धन पंत द्वारा किया गया। इस सत्र में वाइस एडमिरल शेखर सिन्हा, एकीकृत रक्षा स्टाफ के पूर्व प्रमुख, डॉ. अरविंद गुप्ता, पूर्व डिप्टी एनएसए और स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज, जेएनयू से प्रो. स्वर्ण सिंह सहित विशेषज्ञों ने भागीदारी की। सत्र के दौरान, जेएनयू के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के शिक्षकों और छात्रों के साथ स्टूडियों में उपस्थित दर्शकों ने संवाद किया।
केंद्रीय विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने कहा कि भारत की विदेश नीति में क्षमता, विश्वसनीयता और संदर्भ के रूप में परिवर्तन हुआ है। कोविड-19 से निपटने के दौरान, भारत की क्षमताऐं वृद्धि के तौर पर सामने आई हैं। पीपीपी के मामले में विश्व की तीसरी सबसे बड़ी और तेजी से बढ़ती हुई भारत की अर्थव्यवस्था ने वैश्विक एजेंडे को आकार देने में अपने प्रभाव और वैश्विक मानवीय संकटों के लिए 'प्रथम प्रतिक्रिया' के रूप में अपनी भूमिका से इस दृष्टिकोण में भी बदलाव किया है कि दुनिया भारत की क्षमताओं को कैसे देखती है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि आत्मनिर्भर भारत संरक्षणवाद नहीं है, बल्कि यह भारत की क्षमताओं और शक्तियों के निर्माण का आह्वान है ताकि यह दुनिया के साथ मिलकर कार्य कर सके और उसमें योगदान दे सके। यह माननीय प्रधानमंत्री के 'मेक इन इंडिया के साथ मेक फॉर द वर्ल्ड' दृष्टिकोण के अनुरूप है। इसका एक प्रमुख उदाहरण टीके हैं जहां भारत न केवल स्वदेशी वैक्सीन का उत्पादन कर रहा है, बल्कि इसका घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में अंतरराष्ट्रीय सहयोग के रूप में भी उपयोग कर रहा है। उन्होंने कहा कि दीर्घकालिक अवधि के सकारात्मक दृष्टिकोण से ही भारत विकसित हो सकता है और अपनी अदम्य क्षमता का लाभ उठा सकता है।
'भारत-प्रशांत की धुरी' के संबंध में, विदेश मंत्री ने कहा कि हिंद और प्रशांत महासागर के बीच रहे पिछले फासले अब मिट चुके हैं, क्योंकि हमारे हित ऐसे पदचिह्नों के रूप में जिनकी सभ्यतागत विरासत है, हिंद महासागर से काफी आगे तक व्याप्त हैं। उन्होंने कहा कि व्यापार, संपर्क और सुरक्षा के क्षेत्र में हमारे कुछ प्रमुख साझेदार इस क्षेत्र में हैं और हम हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ हितों का तालमेल भी साझा करते हैं। भारत विस्तारित पड़ोस के साथ चाहे वह पूर्व में आसियान हो, फारस की खाड़ी हो या फिर पश्चिम में अफ्रीका सबके साथ अपने ऐतिहासिक संपर्क के पुनर्निर्माण पर भी ध्यान केंद्रित कर रहा है।
केंद्रीय मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने कहा कि भारत और चीन के बीच संबंधों का आधार शांति और अमन है। शांति बनाए रखते हुए, भारत और चीन सीमा वार्ता का समाधान निकालने और दुनिया भर में साझा हितों पर सहयोग करने की आशा कर सकते हैं। पुरानी सभ्यताओं के रूप में दोनों आज वैश्विक प्रमुखता के पथ पर हैं। उन्होंने कहा किन्तु यह भी महत्वपूर्ण है कि एक-दूसरे के स्थलों और भिन्न हितों को पहचानते हुए एक दूसरे का परस्पर सम्मान रखा जाए। उन्होंने कहा कि हमें एक बहुध्रुवीय एशिया की आवश्यकता है।
उन्होंने पुष्टि की कि 'पड़ोसी पहले' की नीति भारत के लिए लाभप्रद रही है। इसने बांग्लादेश के साथ भारत के संबंधों के लोकाचार को बदल दिया है, समुद्री और भूमि सीमा के मुद्दों का समाधान किया है, संपर्क और ऊर्जा जुड़ावों का पुनर्निर्माण भी किया गया है। उन्होंने कहा कि भूटान, नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका और मालदीव के संदर्भ में भी यही सत्य है कि यहाँ भी व्यापार और निवेश, लोगों के बीच संबंध, ऊर्जा और संपर्क के प्रवाह में बढ़ोतरी हुई है।